Tapti Jayanti 2022: सूर्य पुत्री है ताप्ती, इस नदी में स्नान से दूर होता है शनि दोष और नहीं होती अकाल मृत्यु

हमारे देश में कई ऐसी नदियां हैं, जिनका ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व है। ऐसी ही एक नदी है ताप्ती, जिसे तापी भी कहा जाता है। इस नदी का उद्गम बैतूल जिले के सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला में स्थित मुलताई तहसील के एक नादर कुंड से होता है।

उज्जैन. हमारे धर्म ग्रंथों में कई नदियों का वर्णन मिलता है, ताप्ती भी इनमें से एक है। विष्णु पुराण (Vishnu Purana 2022) में ताप्ती नदी का उद्मग स्थान ऋष्य पर्वत को माना गया है। प्रतिवर्ष की तरह इस बार भी आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि (6 जुलाई, बुधवार) को ताप्ती जयंती (Tapti Jayanti 2022) का पर्व मनाया गया। ये परंपरा सूरत के अश्विनीकुमार क्षेत्र स्थित वैजनाथ घाट पर डेढ़ सौ वर्ष पुराने तापी माता मंदिर (Tapi Mata Temple, Surat) में निभाई गई। इस मौके पर भक्तों ने ताप्ती नदी की पूजा की और चुनरी भी चढ़ाई। आगे जानिए ताप्ती नदी के बारे में खास बातें…

सूर्य पुत्री है ताप्ती नदी
धर्म ग्रंथों के अनुसार, भगवान सूर्य का विवाह विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा के साथ हुआ, जिससे उन्हें दो संतानें हुई यमराज और यमुना। इसके बाद जब संज्ञा सूर्यदेव का ताप न सह सकी तो उसने अपनी छाया को उनकी सेवा में लगा दिया और स्वयं वहां दूर चली गईं। तब सूर्यदेव और छाया से शनिदेव और ताप्ती का जन्म हुआ। सूर्य ने ही अपनी पुत्री ताप्ती को पृथ्वी पर जाकर मानवों का कल्याण करने के लिए प्रोत्साहित किया और आशीर्वाद दिया कि ताप्ती नदी के रूप में विनय पर्वत से पश्चिम दिशा की ओर बहेगी। 

कुरुवंश की जननी हैं ताप्ती
महाभारत के अनुसार, हस्तिनापुर में एक प्रतापी राजा थे, जिनका नाम संवरण था। इनका विवाह सूर्यदेव की पुत्री ताप्ती से हुआ था। ताप्ती और संवरण से ही कुरु का जन्म हुआ था। राजा कुरु के नाम से ही कुरु महाजनपद का नाम प्रसिद्ध हुआ, जो प्राचीन भारत के सोलह महाजनपदों में से एक था। भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र में ही अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। सूर्यपुत्री ताप्ती को उनके भाई शनिचर (शनिदेव) ने यह आशीर्वाद दिया कि जो भी भाई-बहन यम चतुर्थी के दिन ताप्ती और यमुनाजी में स्नान करेगा, उनकी कभी भी अकाल मौत नहीं होगी। इस नदी में दीपदान, पिंडदान और तर्पण का विशेष महत्व है। 

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