क्यों मनाते हैं Raksha Bandhan का पर्व, कैसे शुरू हुई ये परंपरा? धर्म ग्रंथों में मिलती हैं ये 3 कथाएं

रक्षाबंधन (Raksha Bandhan) की शुरूआत कैसे हुई, इस संबंध में कई कथाएं प्रचलित हैं। रक्षाबंधन की एक कथा वामन अवतार से जुड़ी है। इसके अलावा दो अन्य कथाएं भगवान श्रीकृष्ण (Shri Krishna) और द्रौपदी तथा देवराज और उनकी पत्नी शचि के बारे में भी मिलती है।

उज्जैन. 22 अगस्त, रविवार को रक्षाबंधन (Raksha Bandhan 2021) है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर रक्षासूत्र यानी राखी बांधती हैं। इस पर्व की शुरूआत कैसे हुई, इस संबंध में कई कथाएं प्रचलित हैं। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार, रक्षाबंधन की एक कथा वामन अवतार से जुड़ी है। इसके अलावा एक कथा भगवान श्रीकृष्ण और द्रौपदी से संबंधित है। वहीं एक अन्य कथा देवराज और उनकी पत्नी शचि के बारे में भी मिलती है। आगे जानिए इन कथाओं के बारे में...

कथा 1

राजा बलि देवताओं के स्वर्ग को जीतने के लिए यज्ञ कर रहे थे। तब देवताओं की रक्षा के लिए भगवान विष्णु वामन अवतार लेकर एक ब्राह्मण के रूप में राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंचे। वामनदेव ने बलि से दान में तीन पग भूमि मांगी। बलि ने उन्हें तीन पग भूमि दान करने का वचन दे दिया। 
वामनदेव ने अपना आकार बढ़ाकर एक पग में पृथ्वी और दूसरे में ब्राह्मांड नाप लिया। वामनदेव  ने बलि से पूछा कि अब मैं तीसरा पैर कहां रखूं? तब बलि ने तीसरा पैर रखने के लिए अपना सिर आगे कर दिया। बलि के सिर पर पैर रखने से वह पाताल लोक पहुंच गया। प्रसन्न होकर वामनदेव ने उनसे वरदान मांगने को कहा। 
राजा बलि ने भगवान विष्णु से कहा कि आप हमेशा मेरे साथ पाताल में रहें। भगवान ने ये बात मान ली।जब ये बात देवी महालक्ष्मी को पता चली तो वे पाताल गईं और राजा बलि की कलाई पर रक्षासूत्र बांधकर उसे भाई बना लिया। इसके बाद बलि ने देवी से उपहार मांगने के लिए कहा, तब लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को मांग लिया। राजा बलि ने अपनी बहन लक्ष्मी की बात मान ली और विष्णुजी को लौटा दिया।

कथा 2
महाभारत काल में युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ किया। यज्ञ में श्रीकृष्ण को मुख्य अतिथि बनाया गया। ये देखकर शिशुपाल आगबबूला हो गया और श्रीकृष्ण को अपमानित करने लगा। श्रीकृष्ण ने शिशुपाल की मां को वरदान दिया था कि वे शिशुपाल की सौ गलतियां माफ करेंगे। जैसे ही शिशुपाल की सौ गलतियां पूरी हो गईं, श्रीकृष्ण ने सुदर्शन से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। 
जब सुदर्शन चक्र वापस श्रीकृष्ण की उंगली पर आया तो उनकी उंगली पर चोट लग गई, जिससे खून बहने लगा, तब द्रौपदी ने अपनी साड़ी में से एक टुकड़ा फाड़ा और श्रीकृष्ण की उंगली पर लपेट दिया। उस समय श्रीकृष्ण ने वरदान दिया था कि वे द्रौपदी की इस पट्टी के एक-एक धागे का ऋण जरूर उतारेंगे। जब युधिष्ठिर जुए में द्रौपदी को हार गए और दु:शासन ने भरी सभा में द्रौपदी के वस्त्रों का हरण करने की कोशिश की, उस समय श्रीकृष्ण ने द्रौपदी की साड़ी लंबी करके उसकी लाज बचाई थी। इस कथा को भी रक्षासूत्र से जोड़कर देखा जाता है। अगर हम अपने इष्टदेव को रक्षासूत्र अर्पित करते हैं तो उनकी कृपा जरूर मिलती है।

कथा 3
एक बार देवता और दानवों में 12 वर्षों तक युद्ध हुआ, पर देवता विजयी नहीं हुए। तब इंद्र हार के भय से दु:खी होकर देवगुरु बृहस्पति के पास गए। गुरु बृहस्पति ने कहा कि युद्ध रोक देना चाहिए। तब उनकी बात सुनकर इंद्र की पत्नी महारानी शची ने कहा कि कल श्रावण शुक्ल पूर्णिमा है, मैं रक्षा सूत्र तैयार करूंगी। जिसके प्रभाव से इनकी रक्षा होगी और यह विजयी होंगे। इंद्राणी द्वारा व्रत कर तैयार किए गए रक्षा सूत्र को इंद्र ने मंत्रों के साथ ब्राह्मण से बंधवाया। इस रक्षा सूत्र के प्रभाव से इंद्र के साथ समस्त देवताओं की दानवों पर विजय हुई।

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