यमराज ने भी लिया था धरती पर जन्म, कैसे और क्यों ? जाने पूरी कहानी

माण्डव्य नाम के एक ऋषि थे, जिन्हें एक राजा ने बिना सच्चाई जाने चोरी के आरोप में सूली पर चढ़ाने की सजा दे दी थी। लेकिन सूली पर कई दिनों तक चढ़े रहने के बाद भी जब ऋषि के प्राण नहीं निकले, तो राजा को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने ऋषि माण्डव्य से क्षमा मांगकर उन्हें छोड़ दिया।


उज्जैन. हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार, मनुष्य की मृत्यु के बाद यमदूत उसकी आत्मा को यमराज के पास ले जाते हैं। यहां यमराज उसके कर्मों के अनुसार उसे स्वर्ग या नरक में भेजते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं, यमराज को भी एक ऋषि के श्राप के कारण धरती पर मनुष्य के रूप में जन्म लेना पड़ा था। जानिए क्या है पूरी कहानी...

माण्डव्य ऋषि ने दिया था यमराज को श्राप
महाभारत की एक कथा में  माण्डव्य नाम के एक ऋषि थे, जिन्हें एक राजा ने बिना सच्चाई जाने चोरी के आरोप में सूली पर चढ़ाने की सजा दे दी थी। लेकिन सूली पर कई दिनों तक चढ़े रहने के बाद भी जब ऋषि के प्राण नहीं निकले, तो राजा को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने ऋषि माण्डव्य से क्षमा मांगकर उन्हें छोड़ दिया। इसके बाद ऋषि माण्डव्य यमराज के पास पहुंचे और उनसे पूछा कि मैंने अपने जीवन में ऐसा कौन-सा अपराध किया था कि मुझे इस झूठे आरोप की सजा मिली। तब यमराज ने बताया कि जब आप 12 वर्ष के थे, तब आपने एक फतींगे (कीड़े) की पूंछ में सींक चुभाई थी, उसी के फलस्वरूप आपको यह कष्ट सहना पड़ा।

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तब ऋषि माण्डव्य ने यमराज से कहा कि 12 वर्ष की उम्र में किसी को भी धर्म-अधर्म का ज्ञान नहीं होता। तुमने छोटे अपराध का बड़ा दण्ड दिया है। इसलिए मैं तुम्हें श्राप देता हूं कि तुम्हें शुद्र योनि में एक दासी पुत्र के रूप में धरती पर जन्म लेना पड़ेगा। ऋषि माण्डव्य के इसी श्राप के कारण यमराज ने महात्मा विदुर के रूप में जन्म लिया।

युधिष्ठिर के सामने निकले थे विदुर के प्राण
जब धृतराष्ट्र, गांधारी, कुंती व विदुर वानप्रस्थ आश्रम में रहते हुए कठोर तप कर रहे थे, तब एक दिन युधिष्ठिर सभी पांडवों के साथ उनसे मिलने पहुंचे। धृतराष्ट्र, गांधारी व कुंती के साथ जब युधिष्ठिर ने विदुर को नहीं देखा तो धृतराष्ट्र से उनके बारे में पूछा। धृतराष्ट्र ने बताया कि वे कठोर तप कर रहे हैं। तभी युधिष्ठिर को विदुर उसी ओर आते हुए दिखाई दिए, लेकिन आश्रम में इतने सारे लोगों को देखकर विदुरजी पुन: लौट गए। युधिष्ठिर उनसे मिलने के लिए पीछे-पीछे दौड़े। तब वन में एक पेड़ के नीचे उन्हें विदुरजी खड़े हुए दिखाई दिए। उसी समय विदुरजी के शरीर से प्राण निकले।

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