EPF नियमों में बदलाव, पीएफ कॉन्ट्रिब्यूशन पर टैक्स को लेकर कन्फ्यूजन बरकरार, जानें इसकी वजह

Published : Apr 05, 2021, 01:03 PM IST
EPF नियमों में बदलाव, पीएफ कॉन्ट्रिब्यूशन पर टैक्स को लेकर कन्फ्यूजन बरकरार, जानें इसकी वजह

सार

अप्रैल 2021 से पीएफ (PF Rules) से जुड़े नियमों बड़ा बदलाव हुआ है, लेकिन पीएफ (PF) पर टैक्स को लेकर अभी भी कन्फ्यूजन की स्थिति बनी हुई है।  

बिजनेस डेस्क। अप्रैल 2021 से पीएफ (PF Rules) से जुड़े नियमों बड़ा बदलाव हुआ है, लेकिन पीएफ (PF) पर टैक्स को लेकर अभी भी कन्फ्यूजन की स्थिति बनी हुई है। बता दें कि आम बजट 2021 में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ( Nirmala Sitharaman) ने ईपीएफ (EPF) में 2.50 लाख रुपए से ज्यादा सालाना जमा पर मिलने वाले ब्याज को टैक्सेबल बना दिया था। यानी एक साल में 2.5 लाख रुपए से ज्यादा कॉन्ट्रिब्यूशन पर मिलने वाले ब्याज पर टैक्स देना होगा। वहीं, इम्प्लॉयर के कॉन्ट्रिब्यूशन पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा।

बना हुआ है कन्फ्यूजन
वित्त मंत्रालय द्वारा जारी किए गए नियमों को लेकर इसमें कुछ कन्फ्यूजन देखने को मिला। इसके बाद कर्मचारियों और टैक्स जानकारों ने इसको ठीक से समझने के लिए कुछ समय की मांग की। पिछले वर्ष के बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने प्रोविडेंट फंड, नेशनल पेंशन सिस्टम (NPS) में नियोक्ताओं के योगदान का फैसला किया था और सालाना 7.5 लाख रुपए से ज्यादा के सुपरएनुऐशन फंड को मंजूरी दी थी। जानकारी के मुताबिक, आयकर अधिकारियों को यह नियम तैयार करने में 13 महीने लगे। 

पहले क्या था नियम
पहले के नियमों के मुताबिक, इपीएफ (EPF), वीपीएफ (VPF) और एग्जेम्प्टेड प्रोविडेंट फंड ट्रस्ट्स के ब्याज पर इनकम टैक्स में छूट मिली हुई है, भले ही पीएफ (PF) कॉन्ट्रिब्यूशन कितना ही ज्यादा क्यों न हो। केंद्र सरकार के इस नए नियम का सीधा असर ज्यादा सैलरी वाले लोगों पर पड़ेगा, जो टैक्स-फ्री इंटरेस्ट के लिए वॉलियन्टरी प्रोविडेंट फंड (VPF) का इस्तेमाल करते हैं। पीएफ नियमों के मुताबिक, कंपनी का योगदान बेसिक सैलरी का 12 फीसदी तय किया गया है। हालांकि, अगर कोई कर्मचारी चाहे तो वह अपने योगदान को बढ़ा सकता है।

कितने कर्मचारियों पर पड़ेगा असर
बता दें कि सरकार के इस फैसले का असर करीब 1 फीसदी से भी कम कर्मचारियों पर पड़ेगा। सरकार का कहना है कि जो लोग EPF में सालाना 2.5 लाख रुपए से ज्यादा का योगदान कर रहे हैं, उनकी संख्या 1 फीसदी से भी कम है।
 

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