आर्थिक सलाहकार परिषद ने वैश्विक सूचकांकों की पारदर्शिता पर उठाए सवाल, कहा- विश्वबैंक सुनिश्चित करे जवाबदेही

पिछले कुछ सालों में लोकतंत्र, प्रेस और स्वतंत्रता जैसे मुद्दों पर धारणा आधारित वैश्विक सूचकांकों (Opinion Based Global Indices) में भारत की रैंकिंग में गिरावट देखी गई है। ऐसा वैश्विक सूचकांकों की कमजोर और अपारदर्शी कार्यप्रणाली के चलते हुआ है। ये कहना है भारत के प्रमुख अर्थशास्त्री संजीव सान्याल का, जो कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आर्थिक सलाहकार परिषद (EAC) का हिस्सा हैं।

Asianet News Hindi | Published : Nov 23, 2022 8:10 AM IST / Updated: Nov 23 2022, 02:40 PM IST

Opinion Based Global Indices: पिछले कुछ सालों में लोकतंत्र, प्रेस और स्वतंत्रता जैसे मुद्दों पर धारणा आधारित वैश्विक सूचकांकों (Opinion Based Global Indices) में भारत की रैंकिंग में गिरावट देखी गई है। ऐसा वैश्विक सूचकांकों की अपारदर्शी कार्यप्रणाली के चलते हुआ है। ये कहना है भारत के प्रमुख अर्थशास्त्री संजीव सान्याल का, जो कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आर्थिक सलाहकार परिषद (EAC) का हिस्सा हैं। संजीव सान्याल ने EAC की डिप्टी डायरेक्टर आकांक्षा अरोड़ा के साथ मिलकर एक वर्किंग पेपर तैयार किया, जिसमें कहा गया है कि वैश्विक सूचकांकों में भारत की कम रैंकिंग सर्वे में इस्तेमाल की गई मेथेडोलॉजी से जुड़ी खामियों की वजह से है। 

EAC ने किया इन 3 सूचकांकों का विश्लेषण : 
प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद द्वारा तैयार किया गया वर्किंग पेपर धारणा-आधारित 3 सूचकांकों का एनालिसिस करता है। ये सूचकांक फ्रीडम इन द वर्ल्ड इंडेक्स, वी-डीईएम (वैरायटी ऑफ डेमोक्रेसी) इंडेक्स और इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट (EIU) डेमोक्रेसी इंडेक्स हैं। इस वर्किंग पेपर का विषय 'क्यों भारत वैश्विक धारणा सूचकांकों में खराब प्रदर्शन करता है: तीन राय आधारित सूचकांकों का अध्ययन' है। 

वैश्विक सूचकांकों के लिए तय हो जवाबदेही :  
आर्थिक सलाहकार परिषद ने इन धारणा आधारित सूचकांकों के जरिए उपयोग की जाने वाली कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि ये किसी छोटे और अज्ञात एक्सपर्ट्स के ओपिनियन पर बेस्ड सूचकांक हैं। ऐसे में इन सूचकांकों द्वारा उपयोग किए जाने वाले सवाल सभी देशों में लोकतंत्र का एक उचित पैमाना नहीं हो सकते हैं। वर्किंग पेपर में कहा गया है कि सभी तीन सूचकांक पूरी तरह से धारणा पर आधारित हैं। इसमें कहा गया है कि सरकार को विश्व बैंक से वैश्विक शासन संकेतकों (WGI) के लिए इनपुट देने वाले थिंक टैंकों से पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग करनी चाहिए।

रिपोर्ट और फैसला देने के लिए सिलेक्टेड मुद्दे : 
इस वर्किंग पेपर में बताया गया है कि धारणा आधारित वैश्विक सूचकांक सवालों के एक सेट पर आधारित होते हैं। विशेषज्ञों द्वारा इन सवालों का उत्तर बहुत अलग तरीके से दिया जा सकता है। ऐसे में सभी देशों के लिए समान सवाल देने का मतलब अलग-अलग देशों के लिए कम्पेरेबल (तुलनात्मक) स्कोर प्राप्त करना नहीं है। इसके अलावा सवालों को तैयार करने के तरीके भी स्कोर या रैंकिंग को प्रभावित करते हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक, फ्रीडम हाउस की सालाना रिपोर्ट के उनके विश्लेषण से पता चलता है कि वे कुछ मुद्दों को चुनते हैं और फैसला लेने के लिए कुछ मीडिया रिपोर्टों का ही उपयोग करते हैं।  

वैश्विक सूचकांक में भारत का स्तर 70 के दशक का बताया : 
वर्किंग पेपर में संजीव सान्याल और आकांक्षा अरोड़ा ने कहा है कि फ्रीडम इन द वर्ल्ड इंडेक्स, वी-डीईएम (वैरायटी ऑफ डेमोक्रेसी) इंडेक्स और इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट (EIU) डेमोक्रेसी इंडेक्स में भारत को उसी स्तर पर रखा गया, जहां वो इमरजेंसी के दौर यानी 1970 में था। इतना ही नहीं, भारत की रैंकिंग साइप्रस जैसे देशों से भी नीचे रखी गई है, जो विश्वास करने लायक नहीं है। 

वैश्विक सूचकांकों की कमजोर और अपारदर्शी कार्यप्रणाली जिम्मेदार : 
संजीव सान्याल ने एक ट्वीट में कहा कि मेरी रिपोर्ट इस विषय पर आधारित है कि लोकतंत्र, प्रेस और स्वतंत्रता जैसे गंभीर मुद्दों पर धारणा आधारित वैश्विक सूचकांकों में 2014 से भारत की रैंकिंग कम क्यों बताई जा रही है। इस वर्किंग पेपर में मुख्य रूप से तीन मशहूर पश्चिमी थिंक-टैंकों की जांच की गई और देखा गया कि इसके लिए कमजोर और अपारदर्शी कार्यप्रणाली को जिम्मेदार ठहराया गया है। 

पश्चिमी संस्थानों का एकाधिकार खत्म करने की जरूरत : 
इस वर्किंग पेपर में सुझाव देते हुए कहा गया है कि भारत सरकार को विश्व बैंक से बात कर इन सूचकांकों को और अधिक जवाबदेह और पारदर्शी बनाने की मांग करनी चाहिए। साथ ही दुनिया के लिए समान धारणा-आधारित सूचकांक (Similar Perception Based indices) तैयार करने वाले पश्चिमी संस्थानों के एकाधिकार को तोड़ने की जरूरत है, ताकि स्वतंत्र भारतीय थिंक टैंक को प्रोत्साहित किया जा सके। 

कौन हैं संजीव सान्याल?
संजीव सान्याल प्रसिद्ध अर्थशास्त्री और इतिहासकार हैं। उन्हें प्रधानमंत्री (EAC-PM) की आर्थिक सलाहकार परिषद में पूर्णकालिक सदस्य के तौर पर शामिल किया गया है। कोलकाता में जन्मे सान्याल फरवरी 2017 में मुख्य आर्थिक सलाहकार के रूप में वित्त मंत्रालय में शामिल हुए थे। इससे पहले वो ड्यूश बैंक में ग्लोबल स्ट्रेटजिस्ट और मैनेजिंग डायरेक्टर के रूप में काम कर चुके हैं। उन्होंने ‘लैंड ऑफ द सेवन रिवर ए ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ इंडियाज ज्योग्राफी’, ‘द इंडियन रेनेसां इंडियाज राइज आफ्टर ए थाउजेंड ईयर्स ऑफ डिक्लाइन’ और ‘द इनक्रेडिबल हिस्ट्री ऑफ इंडियाज ज्योग्राफी’ सहित कई किताबें लिखी हैं। सान्याल को 2010 में वर्ल्ड इकॉनोमिक फोरम की ने ‘यंग ग्लोबल लीडर’ अवॉर्ड से सम्मानित किया था। 

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