प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Pm Narendra Modi) ने देश को संबोधन में कहा कि आने वाले शीत सत्र में तीनों कृषि कानूनों ( New Farm Laws) को वापस लेने का ऐलान कर दिया है। कानूनों को वापस लेने का प्रोसेस शुरू हो जाएगा। कृषि कानून के विरोध में किसानों का करीब 12 महीनों से आंदोलन चल रहा है।
बिजनेस डेस्क। करीब एक साल से दिल्ली बॉर्डर पर चल रहा किसान आंदोलन ( Farmers Agitation) अब समाप्त हो जाए। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) देश को संबोधित करते हुए कृषि कानूनों ( New Farm Laws) को वापस लेने का ऐलान कर दिया है। सितंबर 2020 में इन कानूनों को संसद में पास किया गया। जिसके विरोध में पंजाब और यूपी के किसान 26 नवंबर को आंदोलन पर बैठक गए। उसके बाद देश के सभी हिस्सों के किसान इस आंदोलन से जुड़ गए। ऐसे में कृषि कानून और किसान आंदोलन के बारे में एक बार जानना फिर से जरूरी है। इस बात को भी जानना जरूरी है कि किसान इस कानून से क्यों नाराज थे। वहीं यह भी जानना काफी जरूरी है कि आखिर सरकार ने कृषि कानूनों में क्या रखा हुआ था।
क्यों शुरू हुआ किसानों का आंदोलन
भारत सरकार ने 20 और 22 सितंबर 2020 को संसद में कृषि से जुड़े तीन कानूनों को पास कराया। 27 सितंबर को इन कानूनों पर राष्ट्रपति ने अपनी मुहर लगा दी। जिनके विरोध में किसानों का पहले प्रदर्शन और फिर आंदोलन में बदल गया। इन कानूनों के माध्यम से एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केट कमिटी की मंडियों के साथ निजी कंपनियों को भी किसानों के साथ अनुबंधीय खेती, खाद्यान्नों की ख़रीद और भंडारन के अलावा बिक्री करने का अधिकार मिलता। आंदोलनकारी किसानों को आशंका है कि सरकार किसानों से गेहूं और धान जैसी फसलों की ख़रीद को कम या बंद कर सकती है। किसान पूरी तरह से बाजार के भरोसे पर आ जाएगा। इन कानूनों से प्राइवेट कंपनियों को फायदा होगा और एमएसपी खत्म होने से किसानों की मुश्किलें बढ़ेंगी। निजि कंपनियों की एंट्री से एपीएमसी मंडियों के बंद करने या एमएसपी सिस्टम पूरी तरह से खत्म हो जाएगा। वैसे यह बात कानून में नहीं है। यह किसानों की आशंका का एक हिस्सा है।
कौन से हैं वो तीन नए कृषि क़ानून
1. कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन व सरलीकरण) कानून-2020
2. कृषक (सशक्तीकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार कानून-2020
3. आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून-2020
इन कानूनों में कहा गया है कि किसान अपने प्रोडक्ट्स की खरीद और बिक्री मंडियों के अलावा खुले बाजार में भी कर सकते हैं, यहीं से किसानों का विरोध शुरू जाता है।
किसानों का मानना है कि खुले बाजार में फसल बेचने से कुछ समय के लिए तो फायदा हो सकता है, लेकिन एमएसपी से जो बंधी हुई कमाई है वो खुले बाजार की गारंटी नहीं है। वहीं किसान अनुबंधीय खेती का विरोध कर रहे हैं। किसानों का सवाल है कि क्या ग्रामीण किसान प्राइवेट कंपनियों से अपनी फसल के उचित दाम के लिए मोलभाव करने की स्थिति में होगा? वहीं दूसरा यह कि प्राइवेट कंपनियां क्वालिटी का सवाल उठाकर उनकी फसल की कीमत कम कर सकती हैं। नए कानूनों में सरकार ने दलहन, तिलहन, प्याज और आलू को आवश्यक वस्तुओं की लिस्ट से हटा चुकी है। इससे इन उत्पादों के स्टॉक पर रोक नहीं होगी, इससे निजी निवेश आएगा और क़ीमतें स्थिर रहेंगी। वहीं किसानों का कहना है कि इससे प्राइवेट कंपनियां इन उत्पादों का भंडारण करेंगी और अपने फायदे के लिए बाज़ार में आर्टिफिशियल कमी पैदा करेंगी।
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एपीएमसी क्या है?
कई राज्यों में स्थानीय नियमों के तहत सरकारी एजेंसी या आधिकारिक आढ़तियों के ज़रिए किसानों से कृषि उत्पादों की ख़रीद बिक्री के लिए एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केट कमेटी (एपीएमसी) का गठन हुआ। राज्य सरकारें इन मंडियों में होने वाली ख़रीद बिक्री पर टैक्स वसूलती हैं। मंडी में आढ़तियों और कमीशन एजेंट्स के नेटवर्क को भी आमदनी होती है। सरकार के अनुसार अगर परंपरागत एपीएमसी बाज़ार के साथ साथ निजी कंपनियों वाली वैकल्पिक व्यवस्था बनती है तो इससे किसान और उपभोक्ता, दोनों को फायदा होगा। एपीएमसी की मंडियों में किसानों को शुल्क चुकाना होता है। नए कानून में कंपनियां यह शुल्क नहीं लेंगी। किसानों को आशंका है कि पहले निजी कंपनियां किसानों को बेहतर क़ीमतें ऑफ़र करेंगी, जिससे एपीएमसी मंडियां बंद हो जाएंगी। जिसके बाद प्राइवेट कंपनियों की मनमानी शुरू हो जाएगी।
न्यूनतम समर्थन मूल्य पर क्यों हो रही है बात
किसानों किसी भी तरह की परिस्थिति में नुकसान से बचाने के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था को लागू किया गया था। अगर कीमत कम भी हो जाती हैं तो सरकार तय एमएसपी पर ही किसानों से सामान लेगी। इससे किसानों को वित्तीय नुकसान नहीं होता है। एक कृषि उत्पाद का एमएसपी देश भर में एक समान होता है। मौजूदा समय में सरकार 23 फसलों की ख़रीद एमएसपी के हिसाब से करती है। केंद्र सरकार के नए कृषि क़ानूनों के अनुसार किसान एपीएमसी मंडी के बाहर किसी भी कीमत पर अपना सामान बेच पाएंगे। लेकिन इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि उन्हें किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य जैसा फायदा मिलेगा। किसानों का आरोप है कि ये क़ानून एमएसपी को ख़त्म करने की दिशा में पहला क़दम है। वैसे सरकार ने इस दौरान कहा है कि वो एमएसपी को खत्म नहीं कर रही है।