International Mother Language Day : डिजिटल युग बना मातृभाषा के लिए चुनौती, हर हफ्ते गायब हो रही एक बोली

Published : Feb 21, 2022, 02:36 PM ISTUpdated : Feb 21, 2022, 02:39 PM IST
International Mother Language Day : डिजिटल युग बना मातृभाषा के लिए चुनौती, हर हफ्ते गायब हो रही एक बोली

सार

अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस (International Mother Language Day) मनाया जा रहा है। इस दिन का उद्देश्य भाषाई और सांस्कृतिक विविधता के बारे में लोगों को जागरूक करना और भाषाओं का संरक्षण करना है. आइए जानते हैं इस दिन क्यों मनाया जाता है और कब से हुई इसकी शुरुआत   

करियर डेक्स :   दुनियाभर में आज अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस (International Mother Language Day) मनाया जा रहा है। इस दिन का उद्देश्य भाषाई और सांस्कृतिक विविधता के बारे में लोगों को जागरूक करना और भाषाओं का संरक्षण करना है, क्योंकि वैश्ववीकरण के इस दौर में रोजगार के अवसरों के लिए लोग विदेशी भाषा सीखने पर ज्यादा जोर दे रहे हैं। इससे कहीं न कहीं क्षेत्रीय भाषाएं विलुप्त हो रही हैं. बता दें कि साल 2000 से हर वर्ष 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जाता है। इस दिन को सेलिब्रेट करने के लिए हर साल युनेस्को द्वारा एक थीम चुनी जाती है। आइए जानते हैं इस दिन को मनाने की शुरुआत कैसे हुई और क्यों मनाया जाता है यह दिन...

यह भी पढ़ें- ECL Recruitment 2022 : माइनिंग सरदार के 313 पदों पर ऑनलाइन आवेदन शुरू, ऐसे करें अप्लाई, जानिए वेतन और योग्यता

इस साल की थीम-बहुतभाषी शिक्षा के लिए प्रोद्यौगिकी का उपयोग
हर साल इस दिन को मनाने के लिए युनेस्को एक थीम चुनता है, इस बार की थीम  'बहुतभाषी शिक्षा के लिए प्रोद्यौगिकी का उपयोग: चुनौतियां और अवसर' है। यह थीम बेहद ही अनूठी है। यह बहुभाषी शिक्षा को आगे बढ़ाने और सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षण और सीखने के विकास को सहायता करने के लिए प्रौद्योगिकी की संभावित भूमिका पर केंद्रित है।

कब से हुई शुरुआत 
यूनेस्को ने 17 नवंबर 1999 मातृभाषा दिवस मनाने एलान किया था और पहली बार पहली बार साल 2000 में संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) ने एक सम्मेलन में इस दिन को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मनाया गया था। यूनेस्को को इस बात का सुझाव कनाडा में रहने वाले बांग्लादेशी नागरिक रफीकुल इस्लाम ने दिया था। दरअसल, उन्होंने बांग्ला भाषा आंदोलन के दौरान ढाका में 1952 में हुई नृशंस हत्याओं को याद करने के लिए उस दिन को मनाने का प्रस्ताव दिया था। यूनेस्को ने दुनिया भर में भाषाओं के लुप्त होने पर चिंता व्यक्त की। यूनेस्को का कहा कि विश्व स्तर पर, 40 प्रतिशत आबादी के पास उस भाषा में शिक्षा तक पहुंच नहीं है, जो वे बोलते या समझते हैं। जिसकी वजह से यूनेस्को ने यह दिन मनाने का निर्णय लिया, जिससे लोग अपने मातृभाषा में शिक्षा अर्जित कर सकें।

हर सप्ताह विलुप्त हो रही एक भाषा
दुनियाभर में विभिन्न प्रकार की भाषा बोली जाती हैं, संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों की माने तो दुनिया भर में 6900 भाषाएं बोली जाती है और हर सप्ताह एक भाषा विलुप्त हो रही है। यह आंकड़े बेहद चौंकाने वाले है, इन आंकड़ों के देखकर यही लग रहा है कि अगर इन भाषाओं का संरक्षण नहीं किया गया तो आने वाले कुछ सालों में बहुत सारी बोलियां विलुप्त हो जाएंगी, ऐसे में जरूरी सांस्कृतिक एवं बौद्धिक विरासत को बचाने के लिए यह जरूरी है कि बच्चों को प्राथमिक स्तर पर उनकी ही भाषा में शिक्षा दी जाए। 

सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाएं
दुनियाभर में सबसे ज्यादा अंग्रेजी भाषा बोली जाती है, इसके बाद जापानी, स्पैनिश, हिंदी, बांग्ला, रूसी, पंजाबी, पुर्तगाली, अरबी भाषा बोली जाती है। 

क्यों विलुप्त हो रही भाषाएं
वैश्वीकरण के इस दौर में बेहतर रोजगार के अवसरों के लिए विदेशी भाषा सीखने की होड़ मची हुई है और  लोग अपने बच्चों को अंग्रेजी भाषा सीखने पर जोर डाल रहे हैं, जिससे  उसे किसी दूसरे देश या अपने देश में अच्छी नौकरी मिल सके है, देखा जाए तो यह ही मातृभाषाओं के लुप्त होने के प्रमुख कारणो में से एक है. डिजिटल क्रांति में पिछड़ती छोटी भाषाएं अपना अस्तित्व नहीं बचा पा रही है। डिजिटल प्लेटफॉर्म  में सौ से भी कम भाषाओं का उपयोग होता है।  

यह भी पढ़ें- Job Alert: कोल इंडिया में चीफ और जनरल मैनेजर के पदों पर निकली भर्ती, जानिए चयन प्रक्रिया और कैसे करें अप्लाई

PREV

Recommended Stories

कोहरे के दौरान रेलवे कैसे तय करता है कि कौन सी ट्रेन सबसे पहले रद्द होगी? जानिए
इंटरनेट पर 404 Not Found Error का मतलब क्या होता है? जानिए