आज ही के दिन भारत-पाकिस्तान की बीच बांट दी गई थी सरहद, जानिए क्या है इतिहास

भारत-पाकिस्तान के बीच सीमा विभाजन को अंतिम रूप दिए जाने से पहले मुस्लिम लीग और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की तरफ से कई मांग की गई थी। सीमा बंटवारे के वक्त प्राकृतिक सीमाएं, संचार माध्‍यम, जलमार्ग और सिंचाई प्रणाली के साथ ही सामाजिक-राजनीतिक विचारों को भी ध्‍यान में रखा गया था।

करियर डेस्क :  आजादी के बाद आज ही का वह दिन था, जब भारत-पाकिस्तान (India-Pakistan) के बीच एक सीमा रेखा खींच दी गई थी। 17 अगस्त, 1947 में दोनों देशों के बीच सरहद बांट दी गई थी। जिसका नाम सर सिरिल रेडक्लिफ (Cyril Radcliffe) के नाम पर रेडक्लिफ लाइन (Radcliffe Line) रखी गई। इस दिन बड़ी संख्या में लोग भारत के इस पार से उस पार पाकिस्तान चले गए थे और हिंदुस्तान दो हिस्सों में बंट गया था।

2900 किलोमीटर लंबी सीमा
भारत-पाकिस्तान के बीच 175,000 वर्ग मील क्षेत्र को समान रूप से विभाजित करने की जिम्मेदारी सर रेडक्लिफ को दी गई थी। उन्हें दोनों देशों के सीमा आयोगों का संयुक्त अध्यक्ष बनाया गया था। भारत की स्वतंत्रता 15 अगस्त, 1947 से तीन दिन पहले यानी 12 अगस्त, 1947 को सीमांकन रेखा को फाइनल रुप दिया गया था। इसके बाद 17 अगस्त 1947 को इस रेखा को लागू कर दिया गया। रेडक्लिफ रेखा तो भारत पाकिस्तान की सरहद बना वह पश्चिमी भाग भारत-पाकिस्तान सीमा के रूप में जाना जाता है। जबकि पूर्वी भाग में भारत-बांग्लादेश की सीमा है। भारत-पाकिस्तान के बीच 2900 किलोमीटर लंबी सीमा रेखा है लेकिन क्रॉसिंग पॉइंट सिर्फ 5 बनाए गए है। 

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कुछ नक्शों की मदद से बांटी गई सरहद
दोनों देशों के बीच सीमा रेखा के लिए सिर्फ एक महीने और कुछ दिन का वक्त ही मिला था। 8 जुलाई, 1947 को जब सर रेडक्लिफ भारत आए तो उन्हें यह जिम्मेदारी दी गई। उन्हें एक महीने का वक्त दिया गया। इसके बाद उनकी टीम इस काम में जुट गई। जनगणना रिपोर्ट और कुछ नक्शों की मदद से उन्होंने सीमा रेखा पर काम शुरू किया। धार्मिक जनसांख्यिकी के आधार पर सीमा को बांटने का काम किया गया। 

सीमां बंटवारें में इन बातों का ध्यान रखा गया
सीमा बंटवारे में जो आयोग काम कर रही थी, उसने मुसलमान और गैर-मुसलमानों की ज्यादा संख्या वाले पास के क्षेत्रों का पता लगाया। पंजाब को दो हिस्सों में बांटने में भी इसी आधार को अपनाया गया। दोनों देशों के सीमा निर्धारण में प्राकृतिक सीमाएं, संचार माध्‍यम, जलमार्ग और सिंचाई सिस्टम के साथ सामाजिक-राजनीतिक विचारों को भी ध्‍यान में रखा गया। कहा जाता है कि सीमांकन से पहले मुस्लिम लीग और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस दोनों ने अपनी-अपनी मांग आयोग के सामने रखी थी लेकिन कम समय से चलते उनकी सारी मांगों पर ध्यान नहीं दिया जा सका।

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