
मनोज ठाकुर, चंडीगढ़। तो क्या पंजाब में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिल रहा है। कम से कम जिस तरह की बातें अलग-अलग पार्टियों की ओर से आ रही हैं, वह तो इसी ओर इशारा करती नजर आ रही हैं। पहले कांग्रेस ने माना कि पार्टी इस बार 40 सीट ही जीत सकती है, अब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भी पंजाब में किसी पार्टी को स्पष्ट बहुमत ना मिलने की संभावना जता रहे हैं।
हालांकि पंजाब स्पष्ट बहुमत देता है। 2012 में अकाली और भाजपा मिलकर सरकार बनाने में सफल रहे थे। 2017 में कांग्रेस स्पष्ट बहुमत के साथ सरकार बनाने में सफल रही। पंजाब में 1969 में ऐसा मौका आया था, जब सियासी तस्वीर साफ नहीं थी। यानी कि 53 साल हो गए, पंजाब का मतदाता हर बार किसी ना किसी दल को सत्ता की कुर्सी पर बिठा ही देता है। वह असमंजस में नहीं रहता। फिर इस बार ऐसे हालात क्यों बनेंगे? फिर इस बार क्यों बार-बार यह बात उठ रही है कि पंजाब में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिलेगा।
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पहली बार चार और पांच कोणीय मुकाबला
पंजाब में ज्यादा बार आमने-सामने की टक्कर होती रही है। पिछले विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की उपस्थिति से मुकाबला त्रिकोणीय हुआ। यह पहला मौका है, जब मुकाबला चार कोणीय और कुछ जगह तो पांच कोणीय होने जा रहा है। इस वजह से सभी पार्टियों के सियासी समीकरण गड़बड़ाते नजर अा रहे हैं। कांग्रेस का मानना है कि यदि उन्हें एससी वोटर का 60 प्रतिशत हिस्सा मिल जाता है तो वह सरकार बनाने के नजदीक पहुंच सकती है। लेकिन यदि यह समीकरण यदि फिट नहीं बैठता तो कांग्रेस को दिक्कत आ सकती है।
गठबंधन में अकाली दल सबसे आगे
भाजपा की नजर हिंदू वोटर पर है। अकाली दल अपने पारंपरिक वोटर के सहारे रेस में बना हुआ है। राजनीतिक समीक्षक वीरेंद्र भारत ने बताया कि किसी भी दल को बहुमत ना मिले, ऐसा होता नजर तो आ रहा है। उन्होंने बताया कि फिर भी ऐसे समीकरण हैं तो यह बता रहे हैं कि सरकार जरूर बनेगी। गठबंधन की संभावना तो अकाली दल की प्रबल है। उन्होंने बताया कि कांग्रेस और आप का किसी भी दल के साथ गठबंधन संभव नहीं है। आप और कांग्रेस एक दूसरे के कट्टर प्रतिद्वंद्वी है। इसलिए यह साथ आ जाए तो ऐसा संभव नहीं है।
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वोटिंग कम होने से समीकरण गड़बड़ाए
आप को स्पष्ट बहुमत मिलता नजर नहीं आ रहा है। वहीं, कांग्रेस के तो नेता ही स्वीकार कर रहे हैं कि शायद बहुमत से चूक जाएं। जानकारों का तर्क है कि पांच प्रतिशत कम वोटिंग इस बार हुई है। 2017 में 77.95 प्रतिशत मतदान हुआ था। इस बार यह 71.95 प्रतिशत हुआ है। दोआबा और माझा में वोटिंग कम हुई है। मालवा में मतदान ठीक रहा है। इस वजह से सारी संभावनाएं अकाली दल की ओर आकर ठहर जाती है। अकाली दल भाजपा का पुराना साथी है।
एनडीए में अकाली दल फिर आ सकता है
दोनों दल मिलकर कई बार सरकार बना चुके हैं। इस बार चुनाव प्रचार के दौरान भी दोनों दल एक दूसरे के प्रति ज्यादा आक्रमक नजर नहीं आ रहे थे। उनके साथ पंजाब लोक कांग्रेस के कैप्टन अमरिंदर सिंह और अकाली दल संयुक्त के सुखदेव सिंह ढींढसा भी आ सकते हैं। इसलिए यदि किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता तो कम से कम अकाली दल भाजपा-गठबंधन इसके लिए तैयार हैं। कहना गलत नहीं होगा, इस बारे में तैयारी हो भी चुकी है। बिक्रमजीत सिंह मजीठिया ने अपने एक बयान में यह संभावना व्यक्त की थी। इसके बाद भाजपा की ओर से भी इस तरह का इशारा हुआ है।
बड़ा सवाल- क्यों पंजाब में किसी को बहुमत नहीं?
इसकी वजह जानकार यह बता रहे हैं कि पंजाब का मतदाता इस बार नया प्रयोग करना चाह रहा है। इसके लिए वह तैयार भी था। लेकिन हुआ यह कि बाद में कुछ ऐसे स्थानीय फैक्टर काम कर गए, जिससे मतदाता भ्रम की स्थिति में आ गया। मसलन डेरा फैक्टर ने आखिर में बड़ी भूमिका निभाई। भाजपा ने इस तरह से चुनाव को आगे बढ़ाया कि इसके आगे सारे मुद्दे गौण से होते नजर आ रहे थे। इसके साथ साथ संयुक्त किसान मोर्चा ने ग्रामीण मतदाताओं को आप से मोड़ दिया।
53 साल बाद इतिहास खुद को दोहरा सकता है?
सबसे बड़ी बात तो यह नजर आई कि आम आदमी पार्टी अपने वोटर को संभाल ही नहीं पायी। हालांकि आप के समर्थक खूब थे, लेकिन इसे वोट में तब्दील करने में आप चूकती नजर आ रही है। यह भी एक कारण रहा कि पंजाब में किसी एक पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता नजर आ रहा है। 53 साल के बाद पंजाब में एक बार फिर से कोई एक पार्टी या गठबंधन पूर्ण बहुमत से पीछे रहता नजर आ रहा है।
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