'टर्टल' जैसी नेशनल अवॉर्ड विजेता फिल्म के डायलॉग लिखने वाले राइटर सूर्यपाल सिंह मध्यप्रदेश के धार के रहने वाले हैं। उन्होंने लगभग 3 साल पहले डायरेक्टर सुदीप्तो सेन के साथ मिलकर 'द केरल स्टोरी' का स्क्रीनप्ले लिखना शुरू किया था।
एंटरटेनमेंट डेस्क. फिल्म 'द केरल स्टोरी' बॉक्स ऑफिस पर जबर्दस्त कमाई कर रही है। पहले सप्ताह में इस फिल्म ने 80 करोड़ रुपए की कमाई का आंकड़ा छू लिया है। क्या आप जानते हैं कि कितनी ही असल और झकझोर देने वाली कहानियां हैं, जो इस फिल्म की रिसर्च के दौरान सामने आईं। एशियानेट न्यूज़ हिंदी के लाइए गगन गुर्जर और अमिताभ बुधौलिया से बातचीत में सूर्यपाल सिंह ने फिल्म का विरोध कर रहे लोगों को करारा जवाब दिया। पेश हैं फिल्म के स्क्रीनप्ले राइटर सूर्यपाल सिंह से हुई बातचीत का पहला पार्ट....
सवाल: सबसे पहले तो आपको बधाई। आपकी फिल्म 'केरल स्टोरी' बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचा रही है और दर्शकों का दिल भी जीत रही है। इस सफलता को कैसे देखते हैं?
जवाब: जी धन्यवाद। जो हमने प्रयास किए, जो मेहनत करी वो सफल रही। जनता ने हमें आशीर्वाद दिया है और जो भी जिससे भी पूछो तो वो कहता है कि बड़ी टाइट फ़िल्म है, वो हमें बांधे रखती है। लोगों की प्यार भरी प्रतिक्रिया मुझे बड़ी खुशी प्रदान करती है कि मेरी मेहनत सफल रही और जो संदेश हम देना चाहते थे, जनता तक उन पीड़ित बेटियों और परिवार का जो दर्द हम पहुंचाना चाहते थे, वो उन तक आसानी से पहुंचा पाने में हम सफल रहे हैं।
सवाल: दिमाग में यह आइडिया कैसे आया कि केरल के इस तरह के ज्वलंत मुद्दे पर कहानी लिखकर उस पर फिल्म बनाई जा सकती है?
जवाब: ये कहानी जो है, इसका रिसर्च वर्क और आइडिया मेरे डायरेक्टर सुदीप्तो सेन का है। उन्होंने करीबन 7-8 साल इस पर रिसर्च वर्क किया और काफी पीड़ित परिवारों से मिले। उन बेटियों से मिले, जो कि जो कन्वर्ट हो चुकी थीं, उन परिवारों से मिले, जिनकी बेटियां देश से बाहर जा चुकीं और अभी तक वापस नहीं आईं। उन्होंने काफी रिसर्च करके उन लड़कियों के बारे में और उन परिवारों से मिल कर एक डॉक्यूमेंट्री भी बनाई थी। उनकी ये स्टोरी है और वो चाहते थे कि इसके ऊपर फिल्म बने। 3 साल पहले मैं उनके साथ इस प्रोजेक्ट पर जुड़ा। उसके बाद मैंने इस पर काम किया। बाद में इस पर जो बाकी की रिसर्च हुई है उसमें मैं साथ में रहा। लेकिन जो मूल कोर आइडिया है, वो उन्ही का ही है। उन्हें इस फिल्म का आइडिया तब आया, जब अफगानिस्तान पर वापस तालिबान की हुकूमत हो गई थी। एक लड़की जो अफगानिस्तान की जेल में बंद है, उसकी मां का इंटरव्यू एक अंग्रेजी न्यूज़ पेपर में आया था। उन्होंने कहा था कि मेरी बेटी और मेरी मेरी नातिन दोनों ही वहां जेल में बंद है और अब तालिबान वहां अपनी हुकूमत करेगा तो वो उनको मार डालेगा। उसे प्लीज़ भारत लेके आइए। जब ये ये न्यूज वापस उनके जेहन में आई तो उन्हें लगा कि यार मैं इतने दिन से जिस पर काम कर रहा था, रिसर्च कर रहा था, आज भी वो मुद्दा वहीं का वहीं बरकरार है। तो उनको लगा कि अब इस पर फ़िल्म बनाना चाहिए और लोगों के सामने सच लाना चाहिए।
सवाल: आप जब रिसर्च कर रहे थे, पीड़ित परिवारों से मिल रहे थे, कन्वर्ट हो चुकीं बेटियों से मिल रहे थे, तब ऐसी कोई कहानी आई हो, जिसने झकझोर कर रख दिया हो...?
जवाब : जी बिलकुल, मैं प्रत्यक्ष रूप से वहां नहीं जा पाया, क्योंकि वहां जाना बड़ा मुश्किल काम है। मेरे डायरेक्टर बड़ा रिस्क लेके वहां जाके इंटरव्यू ले के आए हैं। इतना आसान नहीं है वहां घुस के इंटरव्यू निकाल कर ला पाना, क्योंकि सबकी नजरें आप पर बनी रहती हैं। वहां काफी अलग तरह के लोग एक्टिव रहते हैं। स्टडी पर नजर रखते हुए मैंने जितना भी फुटेज देखा, इंटरव्यू देखा या जो बाइट्स देखीं, वो जो शूट कर कर लाए, वो देखी है। मैं प्रत्यक्ष रूप से उनसे मिला नहीं हूं, लेकिन मैंने जो कन्टेन्ट देखा, जो उनका रिसर्च वर्क देखा, वो बहुत ही हृदय विदारक है, एकदम अंदर से झकझोर देता है। वही सब देख कर मैंने यह फ़िल्म लिखने के लिए हामी भरी। अगर मैं उनके रिसर्च से सहमत नहीं होता तो शायद मैं इस फ़िल्म में हाथ नहीं डालता।
सवाल : क्या ऐसा मान सकते हैं कि 'द कश्मीर फाइल्स' की सफलता ने आपको यह फिल्म बनाने के लिए प्रेरित किया?
जवाब: ऐसा नहीं है कि सत्यघटित घटनाओं पर पहले फ़िल्में नहीं बनी हैं। कश्मीर पर बनी हैं, गुजरात दंगों पर फ़िल्में बनी हैं, भोपाल गैस त्रासदी पर फिल्म बन चुकी है। ऐसे कई संजीदा मुद्दों और सत्यघटित घटनाओं पर फ़िल्में बन चुकी हैं। कश्मीर फाइल्स आई, वह एक अलग मुद्दा था। वह ऐसी घटना है, जो घट चुकी है। उनका मुद्दा था न्याय की तलाश में भटक रहे कश्मीरी पंडितों के दर्द को दिखाना। हमारा मुद्दा यह है कि अभी भी वहां कुछ एक्टिविटी चालू हैं। ये सिर्फ केरल की बात नहीं है। जिस तरह से बरगलाकर धर्मांतरण कराया जाता है, उसकी कहानी भारत में हर जगह कहीं ना कहीं दिख जाएगी। अगर ट्रेलर पर आए कमेंट देखेंगे तो पाएंगे कि सैकड़ों लोग इस कहानी को अपने आसपास और अपनों के साथ घटी हुई बता रहे हैं। हमने सिर्फ केरल का बैकड्रॉप रखा है। बाकी यह कहानी पूरे भारत के परिदृश्य को बताती है कि कैसे कुछ लोग धर्म की गलत व्याख्या कर लोगों को बरगलाकर धर्मांतरण कराने में लगे हुए हैं।
सवाल: फिल्म को लेकर विवाद छिड़ा हुआ है, कई राज्यों में इसे बैन कर दिया गया है या इसकी स्क्रीनिंग रोक दी गई है। इसे आप कैसे देखते हैं?
जवाब : यह जो विवाद है, वह जनता का विरोध नहीं है। यह राजनीतिक विरोध है। जनता तो फिल्म देख रही है। विरोध सिर्फ राजनेता कर रहे हैं और अपनी राजनीतिक पावर का इस्तेमाल कर रहे हैं। वो अपने राज्य में फिल्म नहीं लगने दे रहे हैं। अगर जनता का विरोध होता तो वह फिल्म देखने थिएटर में ही नहीं जाती। जहां फिल्म लगी है, वहां लोग इसे देख रहे हैं। पश्चिम बंगाल में दो दिन तक फिल्म चली। वहां भी लोगों को थिएटर में जाकर जबरदस्ती निकालकर थिएटर बंद किया गया है। ये तो जबरदस्ती ना, लोग तो फिल्म देखना चाहते हैं, पुलिस ने उन्हें जबरदस्ती निकाला है। ये पॉलिटिकल विरोध इसलिए है, क्योंकि लव जिहाद का मुद्दा हमेशा से भाजपा के पक्ष का रहा है। स्वाभाविक है कि अगर भाजपा इसका पक्ष ले रही है तो विपक्षी पार्टियां इसका विरोध करेंगी ही। तो क्या भाजपा का इसमें इंटरेस्ट होने की वजह से कभी हम इस पर फिल्म ही नहीं बनाएंगे? आज ना बनाएं, भविष्य में भी ना बनाएं। क्योंकि जब भी बनाएंगे, इसमें फायदा बीजेपी का होगा। हमारा उद्देश्य किसी एक पार्टी के पक्ष का नहीं है। हमारा उद्देश्य था पीड़ित लड़कियों का दर्द बताना और कट्टरपंथी संगठनों की करतूत को उजागर करना। अगर कुछ लोग इसे राजनीतिक चश्मे से देखते हैं और इसमें लाभ-हानि निकालते हैं तो हम इसमें कुछ नहीं कर सकते। प्रतिबंध लगाने से कुछ नहीं होता। आप थिएटर में रोकेंगे तो लोग कल जाकर OTT पर देख लेंगे। वहां नहीं देख पाएंगे तो TV पर देखेंगे। कभी ना कभी देख ही लेंगे।
सवाल : फिल्म को मुस्लिम विरोधी कहा जा रहा है?
जवाब : यह तो संकीर्ण मानसिकता है। फिल्म मुस्लिम विरोधी कैसे है? दुनियाभर में आतंकवाद फैला हुआ है। अगर हम आतंकवाद की बात कर रहे हैं, उसे रोकने की बात कर रहे हैं, उसे खत्म करने की बात कर रहे हैं तो वह मुस्लिम विरोधी कैसे हो गई। मुझे नहीं लगता कि मेरे देश का राष्ट्रवादी, देशभक्त और सौहार्पूर्ण मुसलमान इस बात पर सहमति जताएगा कि भाई मेरा इससे कोई सरोकार है। मेरे देश का कोई भी मुसलमान कभी नहीं कहेगा कि मैं आतकवादी के साथ हूं। राजनीतिज्ञ लोग हैं, जो उन्हें भिड़ाने की कोशिश करते हैं। मेरे कई मुस्लिम दोस्त हैं, जिन्होंने यह फिल्म देखी है और बाहर आकर तारीफ़ भी की है और कहा है कि ऐसी फ़िल्में बननी चाहिए, ताकि समाज की आंखें खुल सकें। जो लोग अतीक अहमद जैसे माफिया की मौत पर विलाप करते हैं, तेरे कातिल जिंदा हैं, जैसे नारे लगाते हैं, ओसामा जी ओसामा जी कर-कर के बात करते हैं, वे तो जाहिरतौर पर इसमें धर्म ढूंढ ही लेंगे। लेकिन जो व्यक्ति यह मानता है कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, उसे इस फिल्म में कहीं भी मजहब देखने को नहीं मिलेगा।
नोट : सूर्यपाल सिंह ने फिल्म की कास्टिंग समेत कई अन्य पहलुओं पर महत्वपूर्ण और रोचक बातें साझा की हैं, जो आपको इंटरव्यू के अगले पार्ट में पढ़ने को मिलेंगी। इंटरव्यू का दूसरा भाग आप एशियानेट न्यूज हिंदी पर रविवार (14 मई 2023) को सुबह 9 बजे से पढ़ सकते हैं।
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