कपड़े की थैली वाला कबाड़ी कैसे बना करोड़पति, जानिए हेलमेट मैन के संघर्ष की सबक देने वाली कहानी

नई दिल्ली. स्टीलबर्ड हाई-टेक इंडिया अब पब्लिक लिमिटेड कंपनी बन चुकी है और हेलमेट निर्माण में अग्रणी है। ये कंपनी न सिर्फ भारत में बल्कि पूरी दुनिया में हेलमेट निर्माता कंपनी के तौर पर प्रसिद्ध है। इसी कंपनी के चेयरमैन सुभाष कपूर का संघर्ष बहुत बड़ा और दर्दभरा रहा है। उन्होंने न सिर्फ गरीबी झेली है बल्कि वो बुरे दिन भी देखें उन्होंने कबाड़ में जिंदगी गुजारी। कपड़े की थैलियां सिलने से लेकर 200 करोड़ के कारोबार वाली कंपनी के मालिक बनने तक हम आपको आज इस बिजनेसमैन के प्रेरणा देने वाली कहानी सुना रहे हैं। 

Asianet News Hindi | Published : Feb 21, 2020 8:37 AM IST / Updated: Feb 22 2020, 03:45 PM IST
19
कपड़े की थैली वाला कबाड़ी कैसे बना करोड़पति, जानिए हेलमेट मैन के संघर्ष की सबक देने वाली कहानी
सुभाष कपूर आज भले बिजनेस की दुनिया में एक चमचमाता नाम हो लेकिन उनका पास कभी खाने के पैसे तक नहीं थे। वे अपने संघर्ष के दिनों को याद करते हुए बताते हैं कि, कई बार हमें भूखे पेट सोना पड़ता था। हमारा परिवार झेलम जिले (अब पाकिस्तान) के पिंड ददन खान का चौथा स्तंभ था, लेकिन बंटवारे ने हमें तबाह कर दिया।” सुभाष का प्रतिष्ठित परिवार 26 तरह के कारोबार से जुड़ा था, जिनमें बर्तन, कपड़े, जेवर और खेती शामिल थे। (कहानी दर्शाने के लिए बच्चे की फोटो प्रतीकात्मक तौर पर इस्तेमाल की गई है)
29
उनके परिवार के पास 13 कुएं थे। एक कुआं 30-40 एकड़ खेती की ज़मीन को सींच सकता था। साल 1903 में कश्मीर का पहला पेट्रोल पंप सुभाष के परदादा ने शुरू किया था। वक्त बदला और बंटवारे ने इस समृद्ध परिवार को सड़क पर ला दिया। सब तहस-नहस हो गया। अगस्त 1947 में उनकी मां लीलावंती जब अपने चार बेटों और डेढ़ साल के सुभाष के साथ हरिद्वार तीर्थ (वर्तमान में उत्तराखंड में) करने आई थीं, तभी बंटवारे की घोषणा हो गई थी। उनके पास बच्चों के साथ हरिद्वार में ही रहने के अलावा कोई चारा नहीं था। उस वक्त उनके पति तिलक राज कपूर पाकिस्तान में ही थे। जान बचाकर बमुश्किल सुभाष के पिता भारत आकर बस और परिवार एक हो गया। सुभाष याद करते हैं, “भारत में परिवार एक बार फिर इकट्ठा तो हुआ, लेकिन हालत ऐसी थी कि गुज़र करना मुश्किल था। हमारे पास घर और खाने को कुछ नहीं था। हम सड़क पर थे परिवार कबाड़ में जिंदगी गुजारने को मजबूर था।”
39
हरिद्वार में चार मुश्किल साल गुज़ारने के बाद 1951 में परिवार दिल्ली आ गया। यह संघर्ष 1956 तक चला। उनके पिता ने यहां कारोबार शुरू करने का फ़ैसला किया। उन्होंने अपनी पत्नी के जेवर बेच दिए और साल 1956 में नमक की पैकिंग के लिए कपड़े की थैलियां बनाने का छोटा कारोबार चालू कर दिया। सुभाष कहते हैं, “उन्होंने कंपनी का नाम ‘कपूर थैली हाउस’रखा। परिवार ने एक किलो और ढाई किलो के हिसाब से कपड़े की थैलियां सिलना शुरू की और कारोबार चल पड़ा। ”
49
उन्हीं दिनों सुभाष के भाई कैलाश कपूर के दोस्त सुरिंदर अरोड़ा ऑयल फ़िल्टर बनाने का बिज़नेस आइडिया लेकर आए। शुरुआत में उन्होंने 12 ऑयल फ़िल्टर बनाए और करोल बाग स्थित ओरिएंटल ऑटो सेल्स को 18 रुपए में बेच दिए। उन्हें बनाने की लागत 12 रुपए थी यानी उन्हें सीधा छह रुपए का मुनाफ़ा हुआ, इससे उनका उत्साह बढ़ गया। फिर सुभाष हेलमेट और उससे जुड़े साजो-सामान के निर्माण की दुनिया में क़दम रखने से पहले उन्होंने फ़ाइबरग्लास प्रोटेक्शन गियर बनाने की भी कोशिश की। फिर उन्होंने एक दोस्त से सारी मशीनें खरीद लीं और थैली बनाने के काम को बंद कर अपनी खुद की कंपनी शुरू कर दी।
59
आख़िरकार 13 मार्च 1963 को सुभाष ने दिल्ली के नवाबगंज में जमीर वाली गली में अपने परिवार के साथ पार्टनरशिप में स्टीलबर्ड इंडस्ट्री की स्थापना की। सुभाष अब स्टीलबर्ड के चेयरमैन हैं। पिछले चार दशक में वे आठ हेलमेट निर्माण इकाई की स्थापना कर चुके हैं। कंपनी के हिमाचल प्रदेश के सोलन जिले और दिल्ली में तीन-तीन व नोएडा में दो प्लांट हैं। 1,700 से अधिक कर्मचारियों की मदद से उनकी कंपनी हर दिन 9,000 से 10,000 हेलमेट और उससे जुड़ा सामान बनाती है।
69
इन उत्पादों की क़ीमत 900 रुपए से 15,000 रुपए तक होती है। साल 1996 से स्टीलबर्ड और इटली की सबसे बड़ी हेलमेट कंपनी बियफ़े के बीच हुआ करार जारी है। क़रीब 4,000 तरह के हेलमेट बनाने वाली स्टीलबर्ड के उत्पाद श्रीलंका, बांग्लादेश, पाकिस्तान, नेपाल, ब्राजील, मॉरीशस और इटली को निर्यात होते हैं।
79
सुभाष गर्व से बताते हैं, “उसके बाद मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।”कुछ ही सालों में वो इतने सफल हुए कि उनके दोस्त उनसे कारोबार की सलाह लेने के लिए आने लगे। उन्होंने दोस्तों को हेलमेट का निर्माण शुरू करने की सलाह दी क्योंकि सरकार हेलमेट पहनना अनिवार्य करने वाली थी। पिल्किंगटन लिमिटेड पहली कंपनी थी जिसने भारत में फ़ाइबरग्लास का प्लांट लगाया था। (सुभाष कपूर अपने परिवार के साथ)
89
सुभाष इस कंपनी में कुछ लोगों को जानते थे, जिन्होंने सुभाष को हेलमेट के निर्माण से जुड़ी सभी ज़रूरी जानकारी दी। धीरे-धीरे हेलमेट का निर्माण शुरू हो चुका था। उन्होंने दिल्ली की कुछ दुकानों में अपने हेलमेट की मार्केटिंग शुरू कर दी और हेलमेट अनिवार्य होने के बाद ग्राहक उनकी दुकान पर लंबी लाइन लगाकर खड़े रहते थे। उन्होंने रातोंरात लाखों का फायदा मिलने लगा और आज कंपनी सारी दुनिया में पहचान रखती है। ” उन्हें कई बार कारोबार में घाटा भी हुआ लेकिन वे अपने हौसले से डिगे नहीं। आज उनका बेटा राजीब कपूर उनके पूरे बिजनेस को संभाल रहा है।
99
वो हंसते हुए कहते हैं, “मेरा बचपन रोजी-रोटी जुटाने में बीत गा। शरारत क्या होती है मैं यह जान नहीं पाया, लेकिन अब मैं पोते-पोतियों के साथ उन बीते दिनों को दोबारा जीने की कोशिश कर रहा हूं।” तीन मई साल 1971 में उन्होंने ललिता से शादी की उनके दो बच्चे हैं- राजीव और अनामिका। वो कहते हैं, “मैंने पूरी ज़िंदगी चुनौतियों के सामने घुटने टेकने के बजाय उनका मुकाबला किया। अगर आप मजबूती से खड़े हों तो कोई बाधा भी आपके सामने आने से डरती है।”
Share this Photo Gallery
click me!

Latest Videos

Recommended Photos