कम उम्र में शादी ले रही है जान! डिप्रेशन और सुसाइड की शिकार हो रही हैं जवान होती बेटियां

भारत के अभी भी कई हिस्सों में कम उम्र की लड़कियों की शादी करा दी जाती है। बाल विवाह अपराध की श्रेणी में होने के बाद भी माता-पिता बिना किसी डर के उनका विवाह करा देते हैं। जिसका खामियाजा बेचारी बच्चियों को भुगतना पड़ रहा है। वो डिप्रेशन की शिकार हो रही हैं। इसका खुलासा  द लैंसेट मेडिकल जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में हुआ है।

हेल्थ डेस्क. शादी के लिए लड़का और लड़की दोनों को शारीरिक और मानसिक दोनों रूप से परिवक्व होना चाहिए। लेकिन कम उम्र की लड़कियों की शादी उन्हें मानसिक तौर पर अस्वस्थ कर रहा है। वो डिप्रेशन में जा रही हैं। जिसके चलते वो सुसाइड कर लेती हैं या कोशिश करती हैं। द लैंसेट मेडिकल जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में हैरान करने वाला खुलासा हुआ है।ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न स्थित किशोर स्वास्थ्य केंद्र के शोधार्थियों ने यह स्टडी  पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के साथ मिलकर किया है।

यूपी और बिहार में बच्चियों की हालत सबसे बुरी
स्टडी के मुताबिक यूपी और बिहार में बाल विवाह की हालत एक जैसी है। इन राज्यों में 24 प्रतिशत यानी एक चौथाई लड़कियों का समय से पहले विवाह होने पर उनमें मानसिक हेल्थ से जुड़ी समस्याएं और आत्महत्या का प्रयास करने जैसे मामले सामने आए हैं। जिन लड़कियों ने आत्महत्या का विचार किया या कोशिश की, उनका विवाह उन लड़कियों की तुलना में जल्दी हुआ, जिन्हें अवसाद नहीं था, या फिर वो सुसाइड करने की कोशिश नहीं की थी।

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16 प्रतिशत लड़कियों की शादी कम उम्र में होती है

बेटियों के लिए जल्दी शादी और मानसिक स्वास्थ्य को लेकर कई तरह की अटकलें लगाई जा रही थी। लेकिन किसी अध्यन ने इसकी पुष्टि नहीं की थी। लेकिन अब जाकर यह साबित हो गया है। बता दें कि भारत में 15 से 19 साल के बीच 16 प्रतिशत लड़कियों की शादी होती है। आंकड़ों को देखें तो 
भारत समेत दक्षिण एशिया में एक-तिहाई लड़कियों की शादी 18 साल की उम्र से पहले कर दी जाती है।  8% की शादी 15 साल से पहले हो जाती है। भारत में विश्वस्तर पर बाल वधुओं का एक तिहाई हिस्सा है, जिसमें 15-19 साल की 16% लड़कियों की शादी होती है।

बाल विवाह घरेलू हिंसा और अनचाही प्रेग्नेंसी का जोखिम पैदा करता है

अध्ययन में 7864 किशोरियों को शामिल किया गया।  जिनमें 1,825 (23%) का विवाह सर्वे के दौरान ही हुआ। 11 प्रतिशत नवविवाहिता ने बताया कि वो स्कूल नहीं जा पाई क्योंकि घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। वहीं,37 प्रतिशतने अवसाद के चलते सुसाइड करने का मन में विचार लाया या फिर कोशिश की। 61 प्रतिशत  वविवाहित लड़कियां बिहार में पिछड़ा वर्ग, जनजाति या फिर गरीब परिवारों से थीं। 24प्रतिशथ सामान्य वर्ग परिवारों से थीं। शोधकर्ता डॉ. शिल्पा अग्रवाल ने बताया कि बाल विवाह से घरेलू हिंसा और अनचाही प्रेग्नेंसी का जोखिम पैदा होने लगता है। जिसकी वजह से लड़कियों में आत्महत्या का लक्षण दिखाई देने लगता है।  

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