सीखो कुछ इनसे: घरेलू तौर-तरीके से कोरोना संक्रमण को पास नहीं फटकने दे रहे आदिवासी


कोरोना संक्रमण को रोकने अभी तक कोई दवाई नहीं बन पाई है। हालांकि, इससे बचने के उपाय जरूर हैं। झारखंड के आदिवासी परंपरागत तरीके से कोराना से खुद का बचाव कर रहे हैं।
 

Asianet News Hindi | Published : Apr 13, 2020 12:55 PM IST

चाईबासा, झारखंड. कोरोना संक्रमण को रोकने अभी तक कोई दवाई नहीं बन पाई है। हालांकि, इससे बचने के उपाय जरूर हैं। झारखंड के आदिवासी परंपरागत तरीके से कोराना से खुद का बचाव कर रहे हैं। यहां के रानाबुरु गांव में रहने वाले आदिवासी पुराने तौर-तरीके अपनाकर कोरोना को अपने पास नहीं फटकने दे रहे। अकेला रानाबुरु नहीं, यहां के कई गांवों में ऐसा देखा जा सकता है।


मेहमानों को पिलाया जाता है हल्दी-पानी
यह सबको पता है कि हल्दी-दूध या हल्दी मिला पानी पीने से संक्रमण से लड़ने की क्षमता मिलती है। सर्दी-जुकाम होने पर हल्दी-दूध या हल्दी मिला पानी पीने से आराम मिलता है। कोरोना संक्रमण भी सर्दी-जुकाम वालों पर ज्यादा असर करता है। लिहाजा आनंदपुर ब्लॉक के झाड़बेड़ा पंचायत के रानाबुरु के आदिवासी उनके यहां आने वाले मेहमानों का स्वागत हल्दी-पानी पिलाकर कर रहे हैं। करीब 500 की आबादी वाले इस घर में आने वाले हर मेहमान को कांसे या पीतल के लोटे में यह पानी दिया जाता है। कांसा या पीतल पानी को शुद्ध कर देता है।

घरों के बाहर लटका रखी हैं नीम की पत्तियां
आदिवासियों ने अपने घरों के बाहर नीम की पत्तियां लटका रखी हैं। नीम कितना गुणकारी होती है, यह जाहिर है। यह संक्रमण को रोकता है। आदिवासी नीम की पत्तियां भी चबा रहे हैं। इससे उन्हें बीमारियों से लड़ने की ताकत मिलती है। गांववाले रात को खटिया पर सोते हैं। लेकिन इसका पूरा ख्याल रखा जाता है कि खटिया एक-दूसरे से दूर बिछी हों। मतलब, सोशल डिस्टेंसिंग का पूरा पालन किया जा रहा है। वैसे भी आमतौर पर गांवों में आपने देखा होगा कि खटिया अकसर दूर ही बिछाई जाती हैं। आदिवासी मीलों दूर हाट बाजार में खरीददारी करने जाते हैं, लेकिन वहां भी सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर रहे हैं।

Share this article
click me!