World Anti-Trafficking Day:झारखंड में मानव तस्करी बड़ी समस्या,रोजगार में कमी और भोले- भालें लोग होते है शिकार

झारखंड सहित पूरे विश्व में मानव तस्करी रोधी दिवस मनाया जा रहा है। इसी कड़ी में इस समस्या से सबसे ज्यादा जूझ रहे राज्य के बारे में जानते है कुछ हैरान और आश्चर्य में डालने वाली बाते। क्या कारण है, यहां इस समस्या के बढ़ने का....

Sanjay Chaturvedi | Published : Jul 30, 2022 1:35 PM IST

रांची (झारखंड). झारखंड सहित देशभर और पूरी दुनियां के मानव तस्करी एक बहुत बड़ी समस्या है। लाखों बच्चे हर साल लापता हो जाते हैं और इनमें हजारों बच्चे लौटकर कभी अपने मां बाप के पास नहीं जाते, क्योंकि वो या तो मर चुके होते हैं या फिर मानव तस्करों के चंगुल में फंस चुके होते हैं, जहां से लौटना नामुकिन होता है। आज झारखंड सहित पूरी दुनियां में विश्व मानव तस्करी रोधी दिवस मनाया जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र हर साल 30 जुलाई को मानव तस्करी के प्रति लोगों को जागरूक करने और मानव तस्करी का शिकार हुए लोगों की मदद करने के लिए यह दिवस मानाता है। 

क्या है 2022 की थीम
संयुक्त राष्ट्र ने इस साल विश्व मानव तस्करी रोधी दिवस की थीम “Use and abuse of technology” रखी है। बताया है कि मानव तस्करी में तकनीक का किस तरह से दुरुपयोग हो रहा है, और मानव तस्करों को पकड़ने में यह टेकनीक कितनी मददगार साबित हो रही है। 

झारखंड में मानव तस्करी बड़ी समस्या
झारखंड में मानव तस्करी एक बड़ी समस्या है। आज भारत में यह राज्य मानव तस्करी के लिए एक प्रमुख स्रोत क्षेत्र के रूप में उभरा है। झारखंड से अधिकांश तस्करी आदिवासियों की घरेलू श्रम के लिए महानगरों में होती है, जहां इनसे अनेक तरह के काम करवाए जाते हैं। दिल्ली जैसे शहरों में कई अवैध प्लेसमेंट एजेंसियां सामने आई हैं। ये एजेंसियां रोजगार मुहैया कराने के नाम पर ज्यादातर मासूम लड़कियों की तस्करी में कानूनी खामियों का फायदा उठाती हैं। इन लड़कियों के लिए प्रतिदिन 12-14 घंटे काम करना एक नियमित अभ्यास है। कई शारीरिक और यौन शोषण की भी शिकायत करती हैं। कुछ पीड़ितों को बंधुआ मजदूरी और जबरन विवाह के उद्देश्य से हरियाणा और पंजाब ले जाया जाता है। अक्सर मानव तस्कर गांव के भोले-भाले लोगों को नौकरी दिलाने का लालच देकर बड़े शहर ले जाते है और उसको बेच देते है। इसको कम करने के लिए पूरे राज्य में कई स्वयंसेवी संस्थाएं राज्य सरकार के साथ मिलकर काम कर रही है। सूचना मिलने पर ये संस्थाएं कैद में या दूसरी जगहों में फंसे लोगों को निकालने का काम करते हैं। झारखंड में मानव तस्करी के खिलाफ तत्परता से कार्रवाई की जा रही है। कुछ दिन पहले राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सभी जिलों के उपायुक्त को मानव तस्करों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का निर्देश दिया है।

झारखंड के 14 जिलों में अधिक होती है मानव तस्करी
तस्करी से प्रभावित जिलों में गुमला, गढ़वा, साहिबगंज, दुमका, पाकुड़, पश्चिमी सिंहभूम (चाईबासा), रांची, पलामू, हजारीबाग, धनबाद, बोकारो, गिरडीह, कोडरमा और लोहरदगा शामिल हैं. झारखंड से तस्करी की गई अधिकांश महिलाएं उरांव, मुंडा, संथाल (लुप्तप्राय पहाड़िया सहित) और गोंड जनजातियों से संबंधित होते हैं, जिनमें से अधिकांश उरांव और मुंडा ही होते हैं। पलामू और गढ़वा जिले उत्तर प्रदेश में कालीन उद्योग में बाल श्रम के लिए तस्करी के लिए जाना जाता हैं। झारखंड और छत्तीसगढ़ से लड़कियों की तस्करी करने वाले तस्करों के लिए भी एक पड़ाव है। छत्तीसगढ़, झारखंड, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल जैसे आदिवासी राज्यों के तस्कर प्लेसमेंट एजेंट के करीबी नेटवर्क में काम कर रहे हैं।

रैकेट की तरह काम करती है कई एजेंसियां
झारखंड के बच्चों की तस्करी ज्यादातर दिल्ली में सुव्यवस्थित प्लेसमेंट एजेंसी रैकेट के माध्यम से होती है। ये प्लेसमेंट एजेंसियां दिल्ली, फरीदाबाद, गुड़गांव और नोएडा सहित राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के घरों में आदिवासी बच्चों की आपूर्ति करती हैं। ये एजेंसियां ज्यादातर 11-16 आयु वर्ग के बच्चों को निशाना बनाती हैं जो शोषण के बाद भी चुप्पी साधे रहते हैं। कुछ को शादी के लिए बेच दिया जाता है जहां वे सभी रूपों में कभी न खत्म होने वाले दुर्व्यवहार का शिकार होती हैं। झारखंड के स्रोत क्षेत्रों और उत्तर भारत के गंतव्य क्षेत्रों में तस्कर नेटवर्क के रूप में काम करते हैं और बहुत संगठित हैं। दिल्ली के पंजाबी बाग पुलिस थाने के शकूरपुर इलाके में या तो झारखंड के प्लेसमेंट एजेंट हैं या झारखंड से संबंधित हैं। 

निरक्षरता और रोजगार की कमी मुख्य वजह
झारखंड से तस्करी काफी संगठित है। निरक्षरता, स्थायी रोजगार की कमी, कृषि के लिए खराब सिंचाई सुविधाएं, एकल फसल पैटर्न, जागरूकता की कमी, राजनीतिक अस्थिरता कुछ ऐसे कारण हैं जो लोगों को तस्करी के प्रति संवेदनशील बनाते हैं। अवैध व्यापार करने वाले इन स्थितियों का लाभ उठाते हैं। सुव्यवस्थित मार्गों और ट्रेनों का एक नेटवर्क है जो इसके लिए तस्करों द्वारा अक्सर उपयोग किया जाता है। तस्कर बच्चों को ले जाने के लिए ज्यादातर झारखंड संपर्क क्रांति एक्सप्रेस, मुरी एक्सप्रेस और स्वर्ण जयंती एक्सप्रेस का इस्तेमाल करते हैं।
 
सरकार के पास हजारों तस्करी का रिकॉर्ड भी नहीं
झारखंड के आदिवासी इलाकों से हजारों लड़कियां लापता हो गई हैं, लेकिन राज्य के पास कोई रिकॉर्ड नहीं है। झारखंड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल के आदिवासी जिले तस्करी के लिए सबसे अधिक संवेदनशील हैं। झारखंड में हजारों लड़कियां और लड़के लापता हैं। यह भी देखा गया है कि स्कूल जाने वाली लड़कियां और लड़के अवैध व्यापार के जोखिम के प्रति समान रूप से संवेदनशील हैं। 

सिमडेगा मानव तस्करी के लिए बना अभिशाप
मानव तस्करी यानी मनुष्य का सौदा समाज पर एक कलंक है। कई सरकारी तंत्र और निजी संस्थान आज मानव तस्करी को रोकने का प्रयास कर रही है। बावजूद इसके आज भी सिमडेगा में धड़ल्ले से मानव तस्करी का कारोबार फल-फुल रहा है। मानव तस्करों के दलाल सिमडेगा जैसे आदिवासी बहुल जिलों में आज भी काफी तादात में सक्रिय है। आदिवासी बहुल सिमडेगा जिला वर्तमान समय में मानव तस्करों के चंगुल में पूरी तरह से फंसा हुआ है। यहां के ग्रामीण इलाको में गरीबी और अशिक्षा इस कदर हावी है कि मानव तस्करों के दलाल यहां की बच्चियों और बच्चों को महानगरों के सब्जबाग दिखाते हैं, फिर वे इन्हें बहला-फुसलाकर महानगरों में काम दिलाने और पैसों की लालच देकर बेच देते हैं। जहां इन बच्चों का शोषण किया जाता है। सिमडेगा में आये दिन ऐसी घटनाये देखने को मिलती है। आकड़ों के अनुसार प्रत्येक वर्ष जिला से 500 से 1000 तक बच्चियों को मानव तस्कर अपने सब्जबाग में फांसाकर महानगरों के हवाले कर देते हैं। 

कोरोना काल में बढ़ी मानव तस्करी
कोरोना संक्रमण काल में तो मानव तस्करी को लेकर स्थिति और बदतर हुई है। सीमा पार से भी मानव तस्करी की घटनाएं इन दिनों बढ़ी हैं, जिसे देखते हुए हाल ही में बीएसएफ द्वारा ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए अलर्ट जारी किया गया है। बीएसएफ अधिकारियों का कहना है कि कोलकाता, गुवाहाटी, पूर्वोत्तर भारत के कुछ शहरों और दिल्ली तथा मुंबई जैसे शहरों में नौकरी दिलाने का लालच देकर गरीबों और जरूरतमंद लोगों को सीमा पार से लाने के लिए तस्करों ने कुछ नए तरीकों पर ध्यान केन्द्रित किया है। दरअसल कोरोना संक्रमण काल में रोजगार छिन जाने के चलते लोगों को लालच देकर सीमा पार से तस्करी के माध्यम से लाने के प्रयास किए जा रहे है।

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