कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी (Devuthani Ekadashi 2021) कहा जाता है। इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु चार माह की निद्रा से जागते हैं। इस वर्ष देवउठनी एकादशी 15 नवंबर, सोमवार को है। भगवान विष्णु को तुलसी बहुत प्रिय है। भगवान विष्णु के जागने के बाद सबसे पहले जल के साथ उन्हें तुलसी दी जाती है।
उज्जैन. धर्म ग्रंथों के अनुसार, भगवान विष्णु आषाढ़ मासे शुक्ल पक्ष की एकादशी से कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तक पाताल लोक में शयन करते हैं। इसे चातुर्मास कहते हैं। जब भगवान विष्णु नींद से जागते हैं तो उसे देबप्रबोधिनी या देवउठनी एकादशी ((Devuthani Ekadashi 2021)) कहा जाता है। इस दिन से मांगलिक कार्यों की शुरूआत भी होती है। देवउठनी एकादशी पर तुलसी और भगवान विष्णु के विग्रह स्वरूप शालिग्राम के विवाह का परंपरा है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व है।
देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा इस विधि से करें-
- हिंदू शास्त्रों के अनुसार, कार्तिक शुक्ल एकादशी को पूजा-पाठ, व्रत-उपवास किया जाता है। इस तिथि को रात्रि जागरण भी किया जाता है। देवप्रबोधिनी एकादशी पर भगवान विष्णु को धूप, दीप, नैवेद्य, फूल, गंध, चंदन, फल और अर्घ्य आदि अर्पित करें।
- भगवान की पूजा करके घंटा, शंख, मृदंग आदि वाद्य यंत्रों के साथ निम्न मंत्रों का जाप करें-
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविंद त्यज निद्रां जगत्पते।
त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम्।।
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ वाराह दंष्ट्रोद्धृतवसुंधरे।
हिरण्याक्षप्राणघातिन् त्रैलोक्ये मंगलं कुरु।।
- इसके बाद भगवान की आरती करें और फूल अर्पण करके निम्न मंत्रों से प्रार्थना करें-
इयं तु द्वादशी देव प्रबोधाय विनिर्मिता।
त्वयैव सर्वलोकानां हितार्थं शेषशायिना।।
इदं व्रतं मया देव कृतं प्रीत्यै तव प्रभो।
न्यूनं संपूर्णतां यातु त्वत्वप्रसादाज्जनार्दन।।
- इसके बाद प्रहलाद, नारदजी, परशुराम, पुण्डरीक, व्यास, अंबरीष, शुक, शौनक और भीष्म आदि भक्तों का स्मरण करके चरणामृत और प्रसाद का वितरण करना चाहिए।
देवउठनी एकादशी का महत्व
जिस तरह मानव रात होते ही सोने चला जाता है, ठीक उसी तरह पुराणों की मान्यता है कि देवता भी एक नियत समय पर सोते और जागते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान विष्णु साल के चार माह शेषनाग की शैय्या पर सोने के लिये क्षीरसागर में शयन करते हैं तथा कार्तिक शुक्ल एकादशी को वे उठ जाते हैं। इसलिए इसे देवोत्थान, देवउठनी या देवप्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है। भगवान विष्णु के उठ जाने के बाद अन्य देवता भी निद्रा त्यागते हैं। व्यवहार जगत की दृष्टि से देवप्रबोधिनी का अर्थ होता है- स्वयं में देवत्व को जगाना। प्रबोधिनी एकादशी का तात्पर्य एकमात्र यह है कि व्यक्ति अब उठकर कर्म-धर्म के रूप में देवता का स्वागत करें। भगवान के साथ अपने मन के देवत्व अर्थात् मन को जगा दें। हम हमारे जीवन को जगा दें। मूलत: देवता कभी सोते नहीं किंतु हम सोए रहते हैं। मूल भाव यह है कि किसी को कष्ट न पहुंचाएं, ईष्र्या, द्वेष के भाव न रखें। सत्य आचरण करें, स्वस्थ प्रतियोगी बनें। यह दृढ़ संकल्प अपने मन में जगाना ही प्रबोधिनी है। ऐसा संकल्प ले कि जो मन को प्रसन्न रखें। हमें अज्ञानता रूपी अंधकार से ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर ले जाएं। इस प्रकार दीपक की भांति जल कर दूसरों को प्रकाश देना ही सच्चा प्रबोधन है।
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