एक बच्चे के पैदा होने के लिए माता-पिता की जरूरत होती है। लेकिन दुनिया में पहला बच्चा पैदा हुआ जिसके तीन माता-पिता हैं। वैज्ञानिक तरीके का इस्तेमाल करके तीन लोगों के डीएनए से तैयार करके इस बच्चे को दुनिया में लाया गया है।
हेल्थ डेस्क.हेल्थ के क्षेत्र में लगातार कुछ ना कुछ प्रयोग होते रहते हैं। कभी-कभी डॉक्टर्स और वैज्ञानिक मिलकर चमत्कार कर देते हैं। यूके से कुछ ऐसा ही मामला सामने आया है। जहां दुनिया का पहला बच्चा पैदा हुआ है जिसके तीन माता-पिता हैं। यानी तीन लोगों के डीएनए से यह बच्चा तैयार हुआ है।आईवीएफ तकनीक का इस्तेमाल करके पहले ब्रिटिश बच्चे को इस दुनिया में लाया गया है।
डॉक्टरों ने एक एडवांस आईवीएफ प्रक्रिया का इस्तेमाल करते हुए इस बच्चे को दुनिया में लाया है। इस प्रक्रिया से बच्चे को पैदा करने का मकसद शिशुओं के लाइलाज विरासत में मिली बीमारियों को विकसित होने से रोकना था। बच्चों में माइटोकॉन्ड्रियल बीमारी घातक बीमारी मानी जाती है। इसे रोकने के लिए इस तकनीक को विकसित किया गया है।बच्चे का 99.8 प्रतिशत डीएनए माता और पिता से होता है। लेकिन एक स्वस्थ महिला डोनर के अंडों से थोड़ी मात्रा में टिश्यू मिलाया जाता है।
"डिजाइनर शिशुओं" के खोलेगा दरवाजा
हालांकि अभी तक माता-पिता या बच्चे को लेकर कोई जानकारी नहीं दी गई है। लेकिन यह शोध न्यूकैसल फर्टिलिटी सेंटर में किया गया है। 2015 में इस शोध के लिए हरी झंडी दिखाई गई थी। हालांकि कुछ लोगों ने इस शोध की आलोचना की है। उनका कहना है कि यह "डिजाइनर शिशुओं" के लिए दरवाजा खोलता है।
वहीं, इस शोध के समर्थन में खड़े लोगों का कहना है कि इससे घातक बीमारियों से ग्रस्त ब्रिटेन की हजारों महिलाओं को सुरक्षित जन्म देने में मदद मिलेगी।ब्रिटेन के मानव निषेचन और भ्रूणविज्ञान प्राधिकरण (Human Fertilisation and Embryology Authority ) ने कम से कम 30 और मामलों को मंजूरी दी है।
माइटोकॉन्ड्रियल बीमारी रोकने में यह शोध कारगर
माइटोकॉन्ड्रियल बीमारी होने से रोकने के लिए एक हेल्दी फीमेल डोनर के अंडों के स्कीन की मदद से एम्ब्रियो को तैयार किया जाता है। जिसकी वजह से यह खतरनाक बीमारी को पैदा होने के लक्षण को शुरू से ही कम कर देता है। बाद में बच्चा इस तकनीक की मदद से पैदा होता है जो बीमारी से मुक्त होता है। माइट्रोकॉन्ड्रियल बीमारी लाइलाज होता है और मां से बच्चे के पास जाता है।
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