कम उम्र में मर सकते हैं फिल्म देखते समय रोने वाले लोग: स्टडी

फिल्म देखते वक्त भावुक होकर रोने वालों की कम उम्र में मौत का खतरा ज्यादा! नई स्टडी में न्यूरोटिसिज्म का खुलासा, जानें कैसे ये बढ़ाता है जोखिम।

Vivek Kumar | Published : Oct 24, 2024 1:13 PM IST / Updated: Oct 24 2024, 06:59 PM IST

एक नई स्टडी में वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि जो लोग फिल्म देखते समय रोते हैं उनके कम उम्र में मरने का खतरा अधिक होता है। ऐसे लोग अस्वीकार किए जाने से डरते हैं। वे किसी सामान्य स्थिति को भी खतरे के रूप में देखते हैं। उनमें शीघ्र मृत्यु का खतरा अधिक होता है।

स्टडी से पता चला कि ऐसा व्यवहार वे लोग अधिक करते हैं जो न्यूरोटिसिज्म से पीड़ित होते हैं। ऐसे व्यक्तित्व लक्षण समय से पहले मौत के जोखिम को 10 प्रतिशत तक बढ़ा देते हैं। न्यूरोटिसिज्म उदासी, भय और चिड़चिड़ापन जैसी नकारात्मक भावनाओं से संबंधित है। इसमें पीड़ित को चिंता और अकेलेपन महसूस होता है। यह उसके मन और शरीर को प्रभावित करता है।

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वैज्ञानिकों के अनुसार अकेलापन अकाल मौत के लिए सबसे बड़ा कारण बन सकता है। इससे श्वसन और पाचन तंत्र संबंधी बीमारियां होने का खतरा रहता है। पीड़ित व्यक्ति के जानबूझकर खुद को नुकसान पहुंचाने की संभावना बढ़ जाती है। मूड स्विंग और ऊब महसूस करना न्यूरोटिसिज्म के अन्य पहलू हैं। ये सभी मौत के जोखिम को बढ़ाते हैं।

कैसे किया गया शोध?

अमेरिका के फ्लोरिडा स्टेट यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों की एक टीम ने यूनाइटेड किंगडम बायोबैंक के डेटा को देखा। बायोबैंक के पास पांच लाख लोगों के जैविक नमूनों, आनुवंशिकी, स्वास्थ्य संबंधी जानकारी और जीवनशैली का विशाल डेटाबेस है। इन पांच लाख लोगों का न्यूरोटिज्म मूल्यांकन 2006 और 2010 के बीच पूरा किया गया था।

वैज्ञानिकों ने इन लोगों के जीवन पर 17 साल तक नजर रखी। इनकी 'जीवन स्थिति' डेटा और न्यूरोटिसिज्म स्कोर का इस्तेमाल वैज्ञानिकों ने यह जांचने के लिए किया कि क्या व्यक्तित्व विशेषता और कुछ घटकों का समय से पहले मौत से कोई मजबूत संबंध है।

17 साल में 5 लाख लोगों में से 43,400 की मौत हुई। यह कुल सैम्पल साइज का लगभग 8.8 प्रतिशत है। मृत्यु की औसत आयु 70 वर्ष थी। मौत का प्राथमिक कारण कैंसर था। इसके बाद तंत्रिका तंत्र, श्वसन तंत्र और पाचन तंत्र की बीमारियां थीं।

जिन लोगों को श्वसन या पाचन संबंधी समस्याएं थीं वे मूल्यांकन में 'थके हुए' महसूस कर रहे थे। 5 लाख में से लगभग 291 लोग जानबूझकर खुद को नुकसान पहुंचाने के कारण मरे। इन लोगों ने कहा था कि उन्हें अपराध बोध और मूड में उतार-चढ़ाव महसूस होता था। वे लगातार तनाव में रहते थे। जिन लोगों में न्यूरोटिसिज्म का स्तर अधिक था उन्होंने अकेलापन महसूस किया।

फ्लोरिडा स्टेट यूनिवर्सिटी के जेरिएट्रिक्स के प्रोफेसर एंटोनियो टेरासियानो ने कहा कि जो लोग अकेलेपन की शिकायत करते हैं उनमें मौत का जोखिम उन लोगों की तुलना में अधिक है जो चिंतित या दोषी महसूस करते हैं।

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