गया में ही क्यों किया जाता है पितरों का पिंडदान? जानें कारण और महत्व

गया में पिंडदान करने की परंपरा हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखती है। यह स्थान पितृ कर्म और पिंडदान के लिए पवित्र माना जाता है, जहां पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और परिवार को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है।

गया में पितरों का पिंडदान करने की परंपरा हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। गया को पितृ कर्म और पिंडदान के लिए एक पवित्र स्थल माना गया है और यहाँ पिंडदान करने का धार्मिक, आध्यात्मिक और पौराणिक महत्व है। यह परंपरा हजारों साल पुरानी है और इसके पीछे कई धार्मिक और ऐतिहासिक कारण हैं। आज के इस लेख में हम आपको गया में पिडदान करने का महत्व और कारण बताएंगे।

गया में पिंडदान करने के मुख्य कारण और महत्व क्या है?

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1. पौराणिक कथा और धर्मिक महत्व:

हिंदू धर्म के विभिन्न ग्रंथों में गया का उल्लेख पवित्र स्थल के रूप में किया गया है, खासकर विष्णु पुराण, वायुपुराण और रामायण में कहा गया है कि भगवान विष्णु ने स्वयं यहाँ (गया) में पिंडदान की प्रक्रिया स्थापित की थी।

क्या है गयासुर की कथा?

पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक गयासुर नाम राक्षस को भगवान से वरदान प्राप्त था कि उसका शरीर इतना पवित्र होगा कि उसके संपर्क में आने से कोई भी व्यक्ति स्वर्ग प्राप्त कर सकेगा। इसके बाद सभी लोग मोक्ष के लिए गया की शरण में आने लगे, जिससे पृथ्वी पर धर्म और कर्म का पालन कमजोर होने लगा। तब देवताओं ने गयासुर से यह वरदान वापस मांग लिया। गयासुर ने अपनी देह भगवान विष्णु को अर्पित कर दी और भगवान विष्णु ने उस स्थान को पवित्र तीर्थ के रूप में स्थापित किया, जिसे आज के समय गया के नाम से जाना जाता है। इस प्रकार यहाँ पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

2. गया को लेकर मोक्ष प्राप्ति की मान्यता:

हिंदू धर्म में माना जाता है कि गया में पिंडदान करने से हमारे पितरों को मोक्ष की प्राप्ती होती है और वे पुनर्जन्म के चक्र और बंधन से मुक्त हो जाते हैं। यह कर्म परिवार के लोगों द्वारा उनके पितरों (पूर्वजों) की आत्मा की शांति के लिए किया जाता है। गया में पिंडदान करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और वे स्वर्ग लोक को जाते हैं।

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3. धार्मिक तीर्थ स्थल:

गया को तीर्थ स्थल के रूप में भगवान विष्णु से जोड़ा जाता है। यहाँ पर प्रसिद्ध विष्णुपद मंदिर स्थित है, जिसे लेकर यह माना जाता है कि यह भगवान विष्णु के चरण चिन्हों का स्थल है। इस मंदिर में जाकर पिंडदान करना विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान विष्णु ने यहां पिंडदान की प्रक्रिया को स्थापित किया और पितरों को शांति और मुक्ति दिलाने के लिए यह स्थान सर्व श्रेष्ठ है।

4. गया का महत्व विष्णु और राम से जुड़ा:

भगवान राम ने भी अपने पिता राजा दशरथ के पिंडदान के लिए गया की यात्रा की थी। यह कथा रामायण में विस्तार से वर्णित है, जो गया की पवित्रता को और भी बढ़ाता है। भगवान विष्णु से जुड़े होने के कारण गया का धार्मिक महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है। विष्णु भगवान को संसार के पालनहार और मोक्षदाता के रूप में पूजा जाता है, इसलिए यहाँ पिंडदान का विशेष महत्त्व है। भगवान राम ने अपने पिता राजा दशरथ के पिंडदान के लिए गया को चुना था।

5. प्राकृतिक स्थिति और पवित्रता:

गया का प्राकृतिक और भौगोलिक स्थिति भी इसे पवित्र बनाती है। यह स्थान फल्गु नदी के तट पर बसा है, जिसे पवित्र माना जाता है। पिंडदान के समय लोग फल्गु नदी के किनारे अपने पितरों का तर्पण और श्राद्ध करते हैं। इस फाल्गु नदी को रामायण काल से पौराणिक दृष्टि से विशेष मान्यता प्राप्त है।

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6. पितृपक्ष में पिंडदान का महत्व:

हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से लेकर अमावस्या तक 15 दिनों का समय पितृपक्ष के नाम से जाना जाता है। इस दौरान गया में हजारों लोग अपने पितरों का पिंडदान करने के लिए इकट्ठा होते हैं। यह समय पितरों की आत्मा की शांति और मोक्ष प्राप्ति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।

7. सामाजिक और पारिवारिक महत्व:

गया में पिंडदान करने से न केवल पितरों को मोक्ष मिलता है, बल्कि परिवार के लोग भी इसका पुण्य प्राप्त करते हैं। यह माना जाता है कि इससे परिवार में सुख-समृद्धि और शांति बनी रहती है और पूरे परिवार को पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

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