बच्चे संग खेलें Traditional Games, पेरेंट्स ना करें भविष्य से खिलवाड़

Traditional Indian Games: छुट्टियों में भी बच्चे 'प्ले स्टेशन' में ही खेलने में व्यस्त रहते हैं। बड़े शहरों के मॉल में बच्चे घंटों खेलते रहते हैं। 

बच्चों की ज़िंदगी को बर्बाद न करें..! क्या आपका बच्चा ऐसे खेलता था? 

बचपन दौड़ने-भागने और खेलने-कूदने का समय होता है। लेकिन आजकल बच्चे खेल ही भूल गए हैं। क्योंकि उनके पास मोबाइल और कंप्यूटर पर खेलने का ही समय नहीं है।

Latest Videos

छुट्टियों में भी बच्चे 'प्ले स्टेशन' में ही खेलने में व्यस्त रहते हैं। बड़े शहरों के मॉल में बच्चे घंटों खेलते रहते हैं। इसे माता-पिता गर्व की बात समझते हैं। लेकिन वे यह भूल जाते हैं कि वे बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। आज बच्चे बच्चे नहीं रहे, यही सच्चाई है।

6 साल से छोटा है बच्चा, तो भूलकर भी न करें उनके सामने ये 5 बातें

कन्ना-मुच्ची रे रे…..पकड़ो यारू…..

बच्चों का सबसे पसंदीदा खेल कन्ना-मुच्ची। आँखों पर पट्टी बाँधकर छिपे हुए लोगों को पकड़ने में उन्हें बहुत मज़ा आता है। भंवरा, किट्टी-पुल, पच्चीस कुद्रे, कबड्डी, कंचे, सेदुकु मुथु, चोर-पुलिस, गिल्ली-डंडा, पतंग उड़ाना, गेंद से खेलना, एक्का-दुक्का, तैराकी जैसे खेल कहाँ गए?

लड़कियों के खेल नोन्डी, टट्टांगल, चौपड़, पल्लांगुली, कन्ना-मुच्ची, फूल चुनना, कर कर वन्दी, झूला जैसे खेल कहाँ गए? आजकल गाँवों में भी ये खेल देखने को नहीं मिलते। ये खेल सिर्फ़ समय बिताने के लिए नहीं खेले जाते थे। ये बच्चों के शारीरिक स्वास्थ्य, शारीरिक शक्ति, सोचने की क्षमता और सामंजस्य बिठाने की बुद्धि को विकसित करते थे। 

ऐतिहासिक दस्तावेज बताते हैं कि ग्रामीण इलाकों में 126 तरह के खेल खेले जाते थे। दुख की बात है कि आजकल गाँवों में भी ये दिलचस्प खेल देखने को नहीं मिलते। कार्टून चैनल और वीडियो गेम ने बच्चों की दुनिया पर कब्ज़ा कर लिया है, जिससे देसी खेल अब सिर्फ़ कहानियों में ही रह गए हैं।

महाभारत से 5 दोस्ती के सबक, जो हर युवा को जानने चाहिए

लुप्त होते खेल

बच्चे खेलने के लिए लकड़ी के बर्तन खरीदते थे। मिट्टी में पानी डालकर इडली बनाना, पत्ते और टहनियों से खाना पकाना, ये सब बड़े उत्साह से किया जाता था। कल्याण मुर्गे के पेड़ के पत्तों पर मिट्टी की इडली परोसी जाती थी। सभी बच्चे उसे खाने का नाटक करते थे। कुछ बच्चे नकली डकार भी लेते थे। बड़े बच्चे चुपके से घर से गुड़, चावल, मूंगफली लाकर खेलते थे। वे इसे बाँटने में कभी झिझकते नहीं थे। 

सिर्फ़ एक आम होने पर भी, उसे कपड़े से ढँककर 'काऊ-काऊ' कहते हुए सबको बाँटते थे। इस तरह साथ मिलकर इधर-उधर दौड़कर खेलने से बच्चों में समझौता करने की भावना आती है। चीज़ें बाँटकर खाने की आदत पड़ती है। दौड़-भाग से बच्चों का अतिरिक्त वज़न भी कम होता है। बच्चों के खेल की दुनिया में ईर्ष्या के लिए कोई जगह नहीं होती। लेकिन घर के अंदर कंप्यूटर पर खेलने से आजकल के बच्चों में सहनशीलता कम हो जाती है। 

मिट्टी में खेलने दें 

अमेरिकी शोध के अनुसार, बच्चों को मिट्टी में खेलने दें, इससे उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।

स्कूलों में शारीरिक शिक्षा की कक्षाएं ?

तमिलनाडु के ज़्यादातर स्कूलों में शारीरिक शिक्षा सिर्फ़ टाइम टेबल में ही होती है, इसे लागू करने में कोई स्कूल दिलचस्पी नहीं दिखाता। 

सोचने की क्षमता बढ़ाने वाले खेल

खेल किसी भी जाति के साहस और संस्कृति को दर्शाते हैं। खेल हड्डियों और मांसपेशियों को मज़बूत बनाते हैं। शरीर के लचीलेपन को बढ़ाते हैं। खेलने से पाँचों इंद्रियों का विकास होता है। शारीरिक स्वास्थ्य अच्छा रहता है। हृदय और फेफड़ों का काम सुचारू रूप से चलता है। खेलने से बच्चों की सीखने की क्षमता बढ़ती है। आत्मविश्वास बढ़ता है। समस्याओं का समाधान ढूँढने में मदद मिलती है। 

जीत-हार को समान रूप से स्वीकार करने की भावना पैदा होती है। बच्चे टीम वर्क करना सीखते हैं। दूसरों की मदद करने की भावना विकसित होती है। एकता की भावना आती है। नेतृत्व क्षमता का विकास होता है। स्पष्ट सोच विकसित होती है। बच्चों में भाईचारा और समझौता करने की भावना पैदा होती है।

अकेला रहने दो! 6 पल जब खलती है लोगों की मौजूदगी 

खेलों में आतंकवाद नहीं: 

मशीन के साथ खेलना, टीवी देखना, कंप्यूटर पर खेलना, वीडियो गेम में समय बिताना, इन सब से बच्चों में हिंसक विचार आते हैं। 

आजकल प्ले स्कूल बढ़ रहे हैं। हज़ारों रुपये खर्च करके वहाँ भी बच्चा बैठा ही खेलता है। समय बीतता जा रहा है। आजकल रविवार को भी गलियों में खेलते हुए बच्चे नहीं दिखते। कई लोग गंदगी के डर से बच्चों को घर से बाहर नहीं निकलने देते। आज बच्चों की दुनिया 'टीवी' के इर्द-गिर्द घूमती है। सैकड़ों खेलों से भरी बच्चों की दुनिया अब सिर्फ़ इतिहास की बात हो गई है। बच्चों से खेल छीनकर ढाई साल की उम्र में ही स्कूल भेजने वाले माता-पिता बढ़ रहे हैं, यही इस सदी का सबसे बड़ा दुख है।

Share this article
click me!

Latest Videos

पेशवाई का अद्भुत वीडियोः साधुओं का शंखनाद-सिर पर रुद्राश्र की पगड़ी
महाकुंभ 2025: पेशवाई के दौरान महिला विंग ने बरपाया कहर, क्या ढोल बजाया
LIVE: Chief Election Commissioner के ऑफिस पहुंचे Arvind Kejriwal ने पूछे सवाल !
महाकुंभ 2025: पेशवाई का अद्भुत VIDEO, ढोल की थाप ने रोक दी भीड़
1st टाइम देखें महाकुंभ 2025 में पेशवाई का विहंगम VIDEO, साधुओं का डांस