रेहाना फातिमा POCSO मामला: आखिर महिला ने अपने बच्चों के लिए सेमी न्यूड पोज क्यों दिया?

महिला एक्टिविस्ट रेहाना फातिमा पर POCSO का आरोप लगाया गया था। अर्धनग्न अवस्था में वो अपने बच्चों से शरीर पर पेंटिंग बनवा रही थीं। जिसका वीडियो उन्होंने सोशल मीडिया पर अपलोड किया और बवाल मच गया।

रिलेशनशिप डेस्क. मां और बच्चों के बीच कोई पर्दा नहीं होता है। जो मां अपनी कोख से जन्म देती है, अपने सीने से लगाकर दूध पिलाती हैं। अपने बच्चे की साफ और सफाई करती उनके बीच नग्नता जैसे शब्द कैसे आ सकते हैं। ये अलग बात है कि बच्चा जब बड़ा हो जाता है और उसके अंदर समझादारी आने लगती है तो चीजें बदल जाती हैं। केरला हाईकोर्ट ने एक मां के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा कि हर नग्नता अश्लील नहीं होती है। चलिए पूरा मामला बताते हैं और ये भी बताते हैं कि आखिर महिला क्यों बच्चों के सामने सेमी न्यूड हुई।

महिला एक्टिविस्ट रेहाना फातिमा (Rehana Fathima) बीते कुछ महीने पहले अपने बच्चों के सामने अर्धनग्न पोज दिए थे। बच्चों से अपने शरीर पर पेटिंग करवाई। इसके बाद इस वीडियो को सोशल मीडिया पर शेयर कर दिया। इस वीडियो को देखकर कुछ समूहों ने आपत्ति जताई और पॉस्को (POCSO) एक्ट के तहत मामला दर्ज करा दिया। जिसकी सुनवाई केरल हाईकोर्ट में हुई। पूरे मामले को सुनने और वीडियो को देखने के बाद कोर्ट ने रेहाना को बरी कर दिया यह कहते हुए कि 'न्यूड होना हमेशा अश्लील नहीं होता'।

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महिला का शरीर हमेशा क्यों यौनकृत से जोड़कर देखा जाता है?

कोर्ट में सुनवाई के दौरान रेहाना ने अपने ऊपर लगे आरोप पर सफाई देते हुए कहा कि उन्होंने यह वीडियो जानबूझकर समाज में फैली हुई पुरुष सत्ता और महिला शरीर को अश्लील बनाए जाने के खिलाफ बनाया था। उन्होंने अपने बॉडी को एक कैनवास की तरह पेश किया था। उन्होंने कहा कि महिला की न्यूड बॉडी के ऊपरी हिस्से को यौनकृत से जोड़कर देखा जाता है। जबकि नग्न पुरुष के ऊपरी शरीर को इसे डिफॉल्ट सेक्सुलाइजेशन के रूप में नहीं माना जाता है।

केरल हाई कोर्ट ने क्या कहा

केरल हाई कोर्ट ने 33 साल के रेहाना फातिमा को आरोपों से मुक्त करते हुए कहा कि किसी के लिए यह अनुमान लगाना संभव नहीं था कि उन्होंने अपने बच्चों का इस्तेमाल यौन संतुष्टि को पूरा करने के लिए किया था।।एक महिला का अपने शरीर के बारे में स्वायत्त निर्णय लेने का अधिकार समानता और गोपनीयता के मौलिक अधिकार के मूल में है। यह संविधान के अनुच्छेद 21 में व्यक्तिगत स्वतंत्रता के दायरे में आता है।

न्यूडिटी हमेशा अश्लीलता नहीं होती

कोर्ट ने कहा कि हमारे समाज में पुरुष के नग्न शरीर और उसकी स्वतंत्रता पर शायद ही कभी सवाल उठाया जाता है, लेकिन महिलाओं के शरीर की स्वतंत्रता हमेशा से ही सवालों के घेरे में रही है। उनके साथ इस मामले में भेदभाव किया जाता राहा है। अगर वो ऐसा कुछ करती है तो धमकाया जाता है। अलग-थलग कर दिया जाता है। उनपर केस दर्ज करा दिया जाता है।बेंच ने आगे कहा, एक मां को अपने ही बच्चे से अपने शरीर पर पेंटिंग करवाने को यौन अपराध नहीं करार दिया जा सकता है। वीडियो में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे अश्लील कहा जा सकें। यह महज कलात्मक अभिव्यक्ति है जिसमें महिला अपने शरीर को अश्लील नहीं बनाए जाने की बात कह रही है।हर बार न्यूडिटी को अश्लीलता से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए।

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