मुनि विमद सागर सुसाइड केस: जानिए कैसा था मुनि का बचपन, कैसे बन गए संत, गांव में किस बात पर चिढ़ाते थे बच्चे

मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के इंदौर (Indore) में दिंगबर जैन संत आचार्य विमद सागर महाराज (Dingbar Jain saint Acharya Vimad Sagar Maharaj) ने दो दिन पहले फांसी लगाकर आत्महत्या (Suicide) कर ली। इस घटना के बाद से हर कोई हैरान है। किसी को भी इस घटना पर भरोसा नहीं हो रहा है। मुनि आचार्य विमद सागर वे 3 दिन पहले ही इंदौर में चातुर्मास के सिलसिले में आए थे। यहां परदेशीपुरा के दिगंबर जैन मदिंर में ठहरे हुए थे। जानिए विमद सागर के संत बनने की कहानी। 
 

Asianet News Hindi | Published : Nov 1, 2021 4:08 AM IST

इंदौर। जैन मुनि आचार्य विमद सागर महाराज (Dingbar Jain saint Acharya Vimad Sagar Maharaj) को बचपन से ही वैराग्य से लगाव था। वे 10 साल की उम्र में ही संत बनने के लिए उत्सुक होने लगे थे। उन्होंने अपने हाथ से ही पिच्छी-कमंडल भी बना लिया था। इसे हाथों में लेकर गांव में घूमा करते थे। यह देखकर गांव के बच्चे उन्हें महाराज कहकर चिढ़ाया करते थे। महाराज बच्चों को देखकर खुश होते थे। विमद सागर महाराज मूलत: सागर (Sagar) जिले के शाहगढ़ (Shahgarh) के रहने वाले थे। घटना के बाद संत के गांव और इलाके में शोक की लहर है। हर कोई उन्हें याद कर रहा है।

संत का शाहगढ़ में 9 नवंबर 1976 को जन्म हुआ था। कस्बे के शासकीय माध्यमिक स्कूल में 9वीं कक्षा तक पढ़ाई की। इसके बाद वह संत बनने की इच्छा रखने लगे। पहले उनका नाम संजय कुमार उर्फ चम्मू जैन था। बाद में संत बने तो मुनि विमद सागर महाराज कहलाने लगे। उनके साथ पढ़ने वाले बताते हैं कि आचार्य जब 10 साल के थे, तब से उन्हें वैराग्य प्रिय था। वह संत बनने की तरह-तरह की कोशिशें करते थे। उन्होंने अपने हाथ से ही पिच्छी-कमंडल बना लिया था। इसे हाथ में लेकर गांव में घूमा करते थे। यह देखकर गांव के बच्चे उन्हें महाराज कहकर चिढ़ा देते थे। बच्चों को देखकर विमद सागर खुश होते और आगे निकल जाते थे। वे घर में भी खाना खाने से पहले संतों की तरह क्रियाएं करते थे।

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ऐसे बदल गया जीवन
बताते हैं कि साल 1991 में आचार्य श्री विराग सागर महाराज शाहगढ़ आए थे। यहां संजय कुमार उनके सान्निध्य में आए। उन्होंने संत बनने की क्रियाएं शुरू कर दी थीं। संत बनने से पहले वे कैरम, क्रिकेट, कंचा, चानिस चेकर खेला करते थे। गुरुसेवा और आहार दान करना उनकी रुचि थी। करीब 16 वर्ष की उम्र में उन्होंने 1992 में आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत ग्रहण किया था। मुनि दीक्षा 1998 में अतिशय क्षेत्र बरासो भिंड में हुई थी। उनके मुनि दीक्षा गुरु आचार्य श्री विराग सागर महाराज हैं। संत बनने से पहले उनके परिवार के लोगों ने उन्हें कई बार मनाया था, लेकिन उन्होंने किसी की नहीं सुनी और मुनि दीक्षा ले ली थी।

पिता रिटायर्ड मलेरिया इंस्पेक्टर, भाई बैंक मैनेजर
परिचित बताते हैं कि विमद सागर महाराज के पिता शीलचंद जैन मलेरिया इंस्पेक्टर थे। हालांकि, अब वे रिटायर्ड हो चुके हैं। मां सुशीला जैन गृहिणी हैं। जबकि बड़े भाई संतोष जैन सेंट्रल बैंक में मैनेजर हैं। तीन बहनें मीना, ममता और माधुरी जैन हैं। उनकी शादियां हो चुकी हैं। आचार्य विमद सागर महाराज के सुसाइड की खबर मिलते ही शाहगढ़ में शोक की लहर दौड़ गई। घर पर दो दिन से सन्नाटा छाया है।

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