बेहद खास अंदाज में गूगल ने याद किया अमृता प्रीतम को, 100वीं जयंती पर बनाया डूडल

पंजाबी भाषा की सर्वश्रेष्ठ कवयित्री अमृता प्रीतम को गूगल की श्रद्धांजलि, 100वीं जयंती पर खास डूडल बना कर किया याद

Asianet News Hindi | Published : Aug 31, 2019 5:49 AM IST / Updated: Aug 31 2019, 11:26 AM IST

नई दिल्ली. अमृता प्रीतम पंजाबी भाषा की सर्वश्रेष्ठ कवयित्री थीं। उनकी आज 100वी जयंती है। उनकी 100वीं जयंती पर गूगल ने एक बहुत ही प्यारा-सा डूडल उन्हें समर्पित करते हुए याद किया है। डूडल का बेहद खास अंदाज आपके मन को भी भा जाएगा। इसमें एक साधारण-सी लड़की सलवार-सूट पहनकर बैठी है और सिर पर दुपट्टा लिए कुछ लिख रही है। अमृता कवयित्री होने के साथ-साथ उपन्यासकार और निबंधकार भी थीं। 

लेखन ने अमृता को बचपन से ही आकर्षित किया
उनका जन्म  31 अगस्त, 1919 को गुजरांवाला, पंजाब (जो अब पाकिस्तान) में हुआ था। उन्हें बचपन से ही लिखने का शौक था। अमृता प्रीतम ने किशोरावस्था से ही पंजाबी में कविता, कहानी और निबंध लिखना शुरू कर दिया। जब वह 11 साल की थीं, तभी उनकी मां ने दुनिया से अलविदा कह दिया था। उनके जाने के बाद लेखिका के कंधों पर काफी जिम्मेदारियां आ गईं।

महज 16 साल की उम्र में पहला संकलन हुआ प्रकाशित
महज 16 साल की उम्र में अमृता का पहला संकलन प्रकाशित हुआ था। उस समय 1947 में विभाजन का दौर आया, जिसे उन्होंने अपने लेखन में उतार दिया और उस पर कई कहानियां लिखीं। विभाजन के बाद उनका परिवार दिल्ली आकर बस गया। दिल्ली आने के बाद उन्होंने पंजाबी के साथ-साथ हिंदी में भी लिखना शुरू किया। 

शादी फिर कुछ साल बाद ही हो गया था तलाक 
बता दें, उनकी शादी 16 साल की उम्र में एक संपादक से हुई। इसके बाद साल 1960 में उनका तलाक हो गया। अमृता प्रीतम ने लगभग 100 पुस्तकें लिखीं, जिनमें उनकी सबसे फेमस आत्मकथा 'रसीदी टिकट' भी शामिल है। 

पहली महिला जिन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया
अमृता को कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। वे पहली महिला थीं जिन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके साथ ही वे पहली पंजाबी महिला थीं जिन्हें 1969 में पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया। वहीं 1956 में साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1958 में पंजाब सरकार के भाषा विभाग द्वारा पुरस्कार, 1988 में बल्गारिया वैरोव पुरस्कार (अंतरराष्ट्रीय) और 1982 में भारत के सर्वोच्च साहित्यिक पुरस्कार ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित हुईं।

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