PM Modi: मजहबी कट्टरता के सामने गुरु तेग बहादुर डटे रहे, औरंगजेब ने सिरों को कटवा दिया, लेकिन आस्था जिंदा रही

Published : Apr 21, 2022, 08:21 PM ISTUpdated : Apr 21, 2022, 10:42 PM IST
PM Modi: मजहबी कट्टरता के सामने गुरु तेग बहादुर डटे रहे, औरंगजेब ने सिरों को कटवा दिया, लेकिन आस्था जिंदा रही

सार

सिख गुरु तेग बहादुर (Guru Teg Bahadur) के 400वें प्रकाश पर्व पर लाल किले में आयोजित कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को संबोधित किया। उन्होंने स्मारक सिक्का व डाक टिकट भी जारी किया।

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने दिल्ली के लाल किला से देश को संबोधित किया। यह पहली बार है जब प्रधानमंत्री ने रात में लाल किले से भाषण दिया। वह सिख गुरु तेग बहादुर (Guru Teg Bahadur) के प्रकाश पर्व पर आयोजित कार्यक्रम में शामिल हुए। उन्होंने सबसे पहले गुरु के दरबार में मत्था टेका। इसके बाद गुरु दरबार में बैठकर शबद कीर्तन सुना। लाल किला में गुरु तेग बहादुर की 400वीं जयंती मनाई जा रही है। इस मौके पर पीएम मोदी ने एक स्मारक सिक्का और एक डाक टिकट जारी किया। 

पीएम नरेंद्र मोदी का भाषण

-आज का भारत पूरी स्थिरता के साथ शांति के लिए काम करता है।  हमें अपनी पहचान पर गर्व करना है। आत्मनिर्भर भारत का निर्माण करना है। ऐसा भारत बनाना है जिसका सामर्थ दुनिया देखे। देश का विकास हम सबका कर्तव्य है। इसके लिए सबके प्रयास की जरूरत है। मुझे पूरा भरोसा है कि गुरुओं के आशीर्वाद से भारत अपने गौरव के शिखर पर पहुंचेगा। हमें अपने जीवन का प्रत्येक क्षण देश के लिए लगाना है। 

-जब अफगानिस्तान में संकट पैदा हुआ तो भारत सरकार ने पूरी ताकत लगा दी। गुरु ग्रंथ साहिब को सिर पर रखकर लाया गया। सिख भाइयों को भी बचाकर लाया गया। हमारे गुरुओं ने हमें मानवता को सबसे पहले रखने की सीख दी है। भारत ने कभी किसी देश या समाज के लिए खतरा पैदा नहीं किया। आज भी हम पूरे विश्व के कल्याण के लिए सोचते हैं। भारत विश्व में योग का प्रसार करता है तो पूरे विश्व के स्वास्थ्य के लिए। 

- हमारे गुरुओं ने हमेशा ज्ञान और आध्यात्म के साथ समाज और संस्कृति की जिम्मेदारी उठाई। गुरु तेग बहादुर ने संस्कृति की रक्षा के लिए बलिदान दे दिया। उस समय देश में मजहबी कट्टरता हावी थी। भारत को अपनी पहचान बचाने के लिए बड़ी उम्मीद गुरु तेग बहादुर के रूप में दिखी थी। औरंगजेब की आततायी शक्ति के सामने गुरु तेग बहादुर चट्टान बनकर खड़े हो गए थे। औरंगजेब और उसके जैसे अत्याचारियों ने भले ही अनेकों सिर को धड़ से अलग कर दिया, लेकिन हमारी आस्था को हमसे अलग नहीं कर पाए। गुरु तेग बहादुर के बलिदान ने भारत की आने पीढ़ियों को अपनी संस्कृति के लिए मर मिटने की प्रेरणा दी। 

- ये लाल किला इतिहास के अहम कालखंडों का गवाह है। लालकिले ने देश के हौसले को परखा है। इस लाल किले ने गुरु तेग बहादुर साहब की शहादत को देखा है। आजादी के अमृत महोत्सव के दौरान हो रहा गुरु तेग बहादुर के 400वे प्रकाश पर्व का आयोजन बहुत खास है। हम आज जहां हैं। अपने लाखों करोड़ों स्वाधीनता सेनानियों के त्याग और बलिदान के कारण हैं। आजाद भारत अपने फैसले खुद कर रहा है। 

- अभी शबद किर्तन सुनकर जो शांति मिली उसे शब्दों में बताना मुश्किल है। 2019 में हमें गुरुनानक देव जी का 550 प्रकाश पर्व और 2017 में गुरु गोविंद सिंह का 350वां प्रकाश पर्व मनाने का सौभाग्य मिला था। आज हमारा देश पूरी निष्ठा के साथ हमारे गुरुओं के आदशों पर आगे बढ़ रहा है। 

लाल किले पर 1 हजार से अधिक जवान तैनात
लाल किले पर सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं। दिल्ली पुलिस के 1 हजार से अधिक जवानों को तैनात किया गया है। इसके साथ ही एनएसजी के स्नाइपर्स और स्वाट कमांडो भी मौजूद हैं। लाल किला परिसर में सौ से अधिक सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं। 

400 सिख संगीतकारों ने दी प्रस्तुति
केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन मंत्रालय के अनुसार इस मौके पर 400 सिख संगीतकारों ने शबद कीर्तन प्रस्तुति दी। कई राज्यों के मुख्यमंत्री और देश-विदेश की विभिन्न प्रमुख हस्तियां समारोह का हिस्सा हैं। कार्यक्रम नौवें सिख गुरु गुरु तेग बहादुर की शिक्षाओं को जन-जन तक पहुंचाने पर केंद्रित है। 

गुरु तेग बहादुर ने धर्म और मानवीय मूल्यों, आदर्शों और सिद्धांतों की रक्षा के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया था। उनकी गिनती दुनिया के इतिहास के सर्वश्रेष्ठ बलिदानियों में होती है। उन्होंने कश्मीरी पंडितों की धार्मिक स्वतंत्रता का समर्थन किया था, जिसके चलते मुगल शासक औरंगजेब के आदेश पर उनकी जान ले ली गई थी।

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अमृतसर में हुआ था गुरु तेग बहादुर का जन्म 
गौरतलब है कि गुरु तेग बहादुर का जन्म पंजाब के अमृतसर में हुआ था। वह गुरु हरगोबिंद सिंह के बेटे थे। उनके बचपन का नाम त्यागमल था। 14 साल की उम्र में उन्होंने पिता के साथ मुगलों के खिलाफ हुई लड़ाई में हिस्सा लिया था। इस दौरान उन्होंने अपनी तलवारबाजी से दुश्मनों के दिलों में खौफ भर दिया था। इसके बाद पिता गुरु हरगोबिंद सिंह ने उन्हें नया नाम तेग बहादुर (तलवार के धनी) दिया था।

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