जजों के प्रमोशन वाली कॉलेजियम की 10 फाइल सरकार ने लौटाई, सौरभ किरपाल बोले-समलैंगिक होना मेरे प्रमोशन में बाधा

पूर्व मुख्य न्यायाधीश बीएन किरपाल के पुत्र सीनियर एडवोकेट 50 साल के सौरभ किरपाल ने बताया कि मुझे लगता है कि सरकार खुले तौर पर एक समलैंगिक व्यक्ति को बेंच में नियुक्त करना नहीं चाहती। किरपाल की पदोन्नति 2017 से लंबित है।

Supreme Court Collegium: सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने जजों के प्रमोशन के लिए जो नाम अप्रूवल के लिए भेजे थे, उसमें से दस जजों के नामों को केंद्र सरकार ने वापस कर दिया है। केंद्र सरकार द्वारा 25 नवम्बर को जिन फाइलों को लौटाया है उसमें भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश बीएन किरपाल के पुत्र सीनियर एडवोकेट सौरभ किरपाल का नाम भी शामिल है। सूत्रों की मानें तो कॉलेजियम ने कुछ नामों को दोबारा भेजे थे, उनमें से भी तमाम फाइलें लौटा दी गई है। उधर, सोमवार को ही सु्प्रीम कोर्ट ने कॉलेजियम की संस्तुति को लटकाने पर सरकार के प्रति नाराजगी दर्ज कराई है। 

समलैंगिक होना एक जज के प्रमोशन में रोड़ा?

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एक मीडिया हाउस को दिए गए अपने इंटरव्यू में सौरभ किरपाल ने कहा था कि उनके सेक्सुअल ओरिएंटेशन की वजह से उनकी पदोन्नति को तिरस्कार के साथ देखा जा रहा है। 50 साल के श्री किरपाल ने बताया कि मुझे लगता है कि सरकार खुले तौर पर एक समलैंगिक व्यक्ति को बेंच में नियुक्त करना नहीं चाहती। दरअसल, किरपाल की पदोन्नति 2017 से लंबित है।

केंद्र सरकार के पास अटकी है कॉलेजियम की सिफारिश वाली फाइल्स

सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने जजों की पदोन्नति के लिए केंद्र सरकार के पास सिफारिश करते हुए नाम भेजे हैं लेकिन वह फाइल्स काफी समय से लंबित है। केंद्रीय कानून मंत्री किरन रिजिजू काफी बार कॉलेजियम सिस्टम पर सवाल खड़े कर चुके हैं। उधर, कॉलेजियम की सिफारिश की समय सीमा बीतने के बाद भी नियुक्ति अटकी पड़ी है। नियुक्तियों को लेकर अनिवार्य समय सीमा की जानबूझकर अवज्ञा का आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है। इस मामले को जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एएस ओका की बेंच सुनवाई कर रही है। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक नियुक्तियों के लिए केंद्रीय मंजूरी में देरी को लेकर अपनी नाराजगी जताई है। कोर्ट ने कहा कि एक बार जब कॉलेजियम एक नाम को दोहराता है तो उसका मतलब होता है कि केंद्र उसे मंजूरी दे दे लेकिन नामों को इस तरह लंबित रखना सिस्टम के लिए सही नहीं है।

आप नामों को रोक नहीं सकते हैं...

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "जमीनी हकीकत यह है... नामों को मंजूरी नहीं दी जा रही है। सिस्टम कैसे काम करेगा? कुछ नाम पिछले डेढ़ साल से लंबित हैं। ऐसा नहीं हो सकता है कि आप नामों को रोक सकते हैं, यह पूरी प्रणाली को निराश करता है ... और कभी-कभी जब आप नियुक्ति करते हैं, तो आप सूची से कुछ नाम उठाते हैं और दूसरों को स्पष्ट नहीं करते हैं। आप जो करते हैं वह प्रभावी रूप से वरिष्ठता को बाधित करता है। कई सिफारिशें चार महीने से लंबित हैं, और समय सीमा पार कर चुकी हैं। समयसीमा का पालन करना होगा। एपेक्स कोर्ट एक नाम का उल्लेख करते हुए बताया कि जिस वकील के नाम की सिफारिश की गई थी, उसकी मृत्यु हो गई है, जबकि दूसरे ने सहमति वापस ले ली है। Read this full story...

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