Farm Bills Repeal: Punjab में Election से पहले बदले सियासी समीकरण, भाजपा बन सकती है गेमचेंजर, जानिए क्यों?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने शुक्रवार को तीन कृषि कानूनों (Three Agricultural Laws) की वापसी की घोषणा करके आंदोलनरत किसानों (Farmers) के चेहरे पर खुशियां लौटाईं तो राजनीतिक दलों (Political parties) को चौंका दिया है। कृषि कानून वापसी के बाद पंजाब (Punjab) में चुनावी समीकरण भी बदल गए हैं। अब हर दल को नए सिरे से समीकरण तैयार करने होंगे। पहले भाजपा (BJP) के लिए सियासी रास्ता काफी मुश्किल हो गया था। पार्टी नेताओं का प्रदेश में किसान लगातार विरोध कर रहे थे। यहां तक कि पार्टी के नेताओं के घर के बाहर किसानों ने डेरा डाल लिया था।
 

Udit Tiwari | Published : Nov 20, 2021 3:53 AM IST / Updated: Nov 20 2021, 10:28 AM IST

चंडीगढ़। गुरु पर्व पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने कृषि कानूनों की वापसी (Repeals Farm Bills) का ऐलान करके पंजाब (Punjab) के सियासी समीकरण बदल दिए हैं। यहां 117 विधानसभा सीटों पर होने वाले चुनाव (Punjab Assembly Elections 2022) में अब भाजपा (BJP) गेमचेंजर की स्थिति में आ गई है। इसकी बड़ी वजह ये भी है कि खेती-किसानी करने वाले पंजाब की 75 प्रतिशत आबादी का 77 विधानसभा सीटों में ज्यादा प्रभाव है। आने वाले चुनावों में सियासी जानकार इन सीटों पर भाजपा के बढ़ते फायदे को देख रहे हैं। जबकि किसान आंदोलन के सहारे सियासत कर रही पार्टियों को बड़ा झटका लगा है। इसके साथ ही राज्‍य की सियासत में पूर्व सीएम कैप्‍टन अमरिंदर सिंह और भाजपा की जुगलबंदी सामने आने से कांग्रेस और शिअद के लिए बड़ी चुनौती खड़ी हो जाएगी।

दरअसल, पंजाब में भाजपा के लिए तीन कृषि कानूनों के कारण सियासी रास्ता पेंचीदा और मुश्किल भरा हो गया था। स्थानीय पार्टी नेताओं का प्रदेश के किसान लगातार विरोध कर रहे थे। हालात ये हो गए थे कि वे पिछले कुछ दिनों से किसी कार्यक्रम में शामिल होने पहुंचते तो किसान संगठन वहां पहले से ही विरोध के लिए डटे मिलते थे। कई जगह तो तोड़फोड़ और बवाल होने से पुलिस को लाठीचार्ज तक करना पड़ा। हरियाणा में भी कई शहरों में ये हालात देखने को मिले थे। किसान संगठनों ने भाजपा नेताओं का विरोध करने और दबाव डालने का निर्णय लिया था। किसानों ने भाजपा नेताओं के घर के बाहर डेरा डाल लिया था। सड़कों पर निकले नेताओं को भी किसानों का विरोध झेलना पड़ रहा था। हाल ही में पंजाब में हुए निगम चुनाव में भी किसानों के विरोध के कारण पार्टी के सामने प्रत्याशी खड़े करने का संकट खड़ा हो गया था। बाद में पार्टी ने पदाधिकारियों को चुनाव मैदान में उतारा, लेकिन बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा। ऐसे में कृषि कानूनों की वापसी का फैसला बेहद जरूरी हो गया था। 

ऐसे रखी गई कृषि कानून वापसी की बुनियाद
इधर, करतारपुर कॉरिडोर (Kartarpur Corridor) खोलने के साथ ही पंजाब के अन्य मसलों को लेकर भाजपा हाईकमान लगातार फीडबैक ले रहा था। दिल्ली (Delhi) में कई दौर की बैठकें भी हुईं। पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह (Former CM Capt Amarinder Singh) की भी गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) से कई दौर की बातचीत हुई। हाल ही में पंजाब के नेताओं का एक प्रतिनिधिमंडल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा (JP Nadda), गृह मंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह (Rajnath Singh) से मिला और उन्हें पंजाब के बदलते सियासी समीकरणों की जानकारी दी। इसके बाद प्रधानमंत्री की शीर्ष नेतृत्व के साथ बैठक हुई और कृषि कानूनों के वापसी की बुनियाद रखी गई। हालांकि, अब कहा जा रहा है कि कृषि कानून के वापसी के फैसले से पंजाब में सियासी समीकरण बदल गए हैं। जानकार तो यहां तक कह रहे हैं कि इस फैसले से भाजपा को पंजाब में गेमचेंजर पार्टी के रूप में देखा जा रहा है।

समझिए बीजेपी का पंजाब में सियासी गणित और चुनावी मुद्दे
पंजाब में कुल 117 विधानसभा सीटें हैं। इनमें 91 शहरी और 26 सीटें ग्रामीण इलाके में आती हैं। जानकार बताते हैं कि इनमें 77 सीटें ऐसी हैं जिन पर किसानों का सबसे ज्यादा प्रभाव है। कृषि कानूनों के वापसी के फैसले से इन सीटों पर भाजपा को विधानसभा चुनाव 2022 में अन्य दलों की अपेक्षा ज्यादा फायदा मिल सकता है। इसके अलावा, केंद्र के फैसले भी बड़ी राहत का काम करेंगे। पार्टी नेता और कार्यकर्ता कृषि कानूनों की वापसी के साथ ही करतारपुर कॉरिडोर खोले जाने के फैसले को भी चुनावी मुद्दा बनाएंगे। सिख वर्ग में इससे पार्टी को बड़ा फायदा मिलने की उम्मीद है।

मालवा इलाके में सबसे ज्यादा किसान
पंजाब को तीन क्षेत्रों मालवा, माझा और दोआबा में बांटा गया है। प्रदेश के इन क्षेत्रों में सबसे ज्यादा मालवा क्षेत्र में 69 विधानसभा सीटें हैं। यहां सबसे ज्यादा किसानों का प्रभाव है। इससे पहले भी सरकार बनाने में हमेशा से ये इलाका निर्णायक भूमिका निभाता रहा है। जबकि माझा इलाके में 23 सीटों हैं और ज्यादातर सीटें अनुसूचित जाति बाहुल्य हैं। दोआबा में 25 सीटें हैं, जहां सिख जनसंख्या ज्यादा है। इसका लाभ उठाने की बीजेपी पूरी कोशिश करेगी।

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