
जयपुर. राजस्थान में इतना कुछ हुआ जो आज से पहले कभी नहीं हुआ। आरोप प्रत्यारोप, गुटबाजी, अर्नगल बयानबाजी, बिना सिर पैर की संभावनाएं और भी न जाने क्या क्या हो गया रविवार से मंगलवार तक राजस्थान में। मंगलवार रात जब आलाकमान ने फैसले सुनाना और बोलना शुरु किया तो अब शांति है। फिलहाल अशोक गहलोत को क्लीन चिट दे दी गई है। जबकि यह सब उनके इर्द गिर्द ही चलता रहा.....। ऐसे में अब सबसे बड़ा सवाल उठता है कि क्या पार्टी आलाकमान की पहली पसंद अशोक गहलोत ही हैं..... तो वर्तमान परिस्थितियों में इसका जवाब है.... हां ।
वो पांच5 कारण जिससे हाईकमान की पहली पसंद हैं गहलोत
- फिलहाल सोनिया गांधी के बाद चुनिंदा नेताओं में अशोग गहलोत शामिल है जिनको राजनीति का चालीस साल से भी ज्यादा का अनुभव है। चालीस साल में कई बार अशोक गहलोत पार्टी के लिए संकट मोचन की भूमिका निभा चुके हैं।
- दिवाली के बार नवम्बर में गुजरात विधानसभा चुनाव हैं। पूरे चुनाव का दारोमदार राष्ट्रीय अघ्यक्ष कांग्रेस पर ही होना है। पिछले चुनाव में भी गहलोत खेमे ने गुजरात में काम संभाला था और भाजपा को जबरदस्त टक्कर दी थीं। इस बार पार्टी को अशोक गहलोत से और ज्यादा उम्मीद है। आलाकमान का मानना है जो गहलोत कर सकते हैं वह कोई नहीं कर सकता।
- दिवंगत नेता अहमद पटेल की जगह भरने वाले वे इकलौते नेता बचे हैं पार्टी में। जिसकी पैंठ गांधी परिवार के साथ ही विपक्ष के नेताओं में है। पिछले दो साल में एक एक कर पार्टी को दर्जन भर से ज्यादा दिग्गज नेताओं ने छोड़ दिया। आजाद जैसे नेताओं ने तो अलग पार्टी बना ली, लेकिन गहलोत ही ऐसा नाम जो हर बार आलाकमान के साथ खड़े रहे और अंतिम समय तक नेताओं को पार्टी नहीं छोड़ने के लिए मनाते रहे। वे एक बार सरकार तक गिरने से बचा चुके हैं प्रदेश में।
- सियासी संकट को पहले से ही भांप जाने की कला उनको औरों से अलग बनाती है, राजनीति के जादूगर इसलिए भी क्यों कि प्रदेश में किसी बड़ी पार्टी को पनपने ही नहीं दिया। जो छोटी पार्टियां बड़ी होने की कोशिश में लगीं, उनका विलय पार्टी में ही करा लिया। फिर चाहे वह बसपा हो, बीटीपी हो या अन्य कोई पार्टी।
- सबसे महत्वपूर्ण कारण जिसमें सोनिया गांधी उनको सबसे ज्यादा पसंद करती है वह है मेंटोर की भूमिका निभाना। फिर चाहे राहुल गांधी का मेंटोर बनना हो या फिर प्रियंका गांधी वाड्रा हो। सोनिया परिवार पर चल रहे ईडी के छापों में सबसे आगे अशोक गहलोत और उनका खेमा ही नजर आता है। फिर चाहे वह दिल्ली हो या राजस्थान।
सबसे बड़ी बात आलाकमान के पास अशोग गहलोत का कोई विकल्प नहीं है और जो नेता विकल्प हो सकते थे उनका धैर्य जवाब दे चुका है और अधिकतर पार्टी से दूर जा चुके हैं।
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