सचिन पायलट VS अशोक गहलोत: किसका कद बढ़ेगा और किसका घटेगा, 10 प्वाइंट में जानिए फ्यूचर पॉलिटिक्स और इफेक्ट

राजस्थान में मचे सियासी भूचाल के लिए आज का दिन बहुत खास है। क्योंकि  राजस्थान के मुख्यमंत्री पद के चेहरे से लेकर कांग्रेस अध्यक्ष पद के उम्मीदवार पर दिल्ली में बैठे पार्टी आलाकमान आज फैसला लेंगे। जिसके चलते अशोक गहलोत से लेकर सचिन पायलट तक दिल्ली में सोनिया गांधी के साथ मौजूद हैं।
 

जयपुर. राजस्थान को लेकर आज फैसले का दिन है दिल्ली में। दोनो ही नेताओं से अलग अलग और एक साथ बैठकें की जानी हैं और शाम को कुछ न कुछ बड़ा सुनने को मिल सकता है राजस्थान की सात करोड़ पचास लाख की जनता को। सीएम से लेकर राष्ट्रीय अध्यक्ष तक फैसले होने हैं। किस पद पर कौन रहेगा। जयपुर में हुए सियासी घमासान के बाद दोनो ही पक्ष कह चुके हैं कि अब आलाकमान जो भी करेगा वह मान लिया जाएगा। फैसला तो आलाकमान करेगा.... लेकिन आलाकमान के फैसले इन दस बिंदुओं के इर्द-गिर्द रह सकते हैं.....। जानिए पायलेट और गहलोत के भविष्य को लेकर ये दस बातें.....। 

राजस्थान में सचिन पायलट को सत्ता के मायने...

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- सचिन पायलट को अगर राजस्थान का सीएम चुना जाता है तो इसका प्रभाव राजस्थान की कांग्रेस के साथ ही दिल्ली तक कांग्रेस पर पडेगा। सचिन 2020 में सरकार गिराने के आरोप झेल चुके हैं। उनके खिलाफ देश द्रोह का केस तक दर्ज हो चुका है और उनके पास पार्टी में कोई मजबूत पद अभी नहीं है। ऐसे में उनका चुना जाता है तो बगावत का अंदाजा लगाना मुश्किल हो सकता है। 

- पायलेट को सीएम बनाया जाता है तो अगले साल होने वाले राजस्थान विधानसभा के चुनाव उनके अंडर में पार्टी को कराने होंगे। जबकि उनको इतने बड़े स्तर पर चुनाव का अनुभव नहीं है। ऐसे में पार्टी को बड़ा नुकसान उठाना पड सकता है। 

- सचिन पायलट को लेकर चुनिंदा नेता यानि करीब पंद्रह से 18 विधायक ही लामबंद हैं। उनमें से भी कुछ फिसल रहे हैं, ऐसे में उनके पास न तो बड़ा समूह है और न ही बड़ा अनुभव। इसी कारण आलाकमान उनको सीएम बनाने की जगह बीच का रास्ता निकाल सकता है। 

- दिल्ली में भी बेहद ही कम नजदीकी नेता हैं पायलेट के । राहुल गांधी से उनकी सीधी बातचीत है और प्रियंका गांधी से भी संपर्क है, लेकिन सोनिया गांधी का विश्वास अभी तक वे पूरी तरह से नहीं जीत सके हैं। इसका नुकसान भी उनको उठाना पड सकता है। 

- राजस्थान की राजनीति में भी कोई बड़ा नेता उनके साथ नहीं है चुनिंदा गुर्जर नेताओं और निर्दलीय विधायकों के अलावा। उनको बड़ी जिम्मेदारी देने से पहले पार्टी को कई बार सोचना होगा। हांलाकि इस बार पायलेट का रुख बेहद मैच्योर रहा। जयपुर में हुए बवाल पर उन्होनें एक शब्द तक नहीं कहा। यह उनके लिए पॉजिटिव जा सकता है। 

राजस्थान में अशोक गहलोत की सत्ता के मायने...

- राजनीति में चालीस साल का अनुभव रखने वाले सीएम अशोक गहलोत को लेकर बेहद कम माइनस प्वाइंट है आलाकमान के सामने....। गहलोत खांटी नेता है और कई बार सरकार बचा चुके हैं। गुजरात में भी पिछले चुनाव उनके सानिध्य में हुए। पार्टी जीत नहीं सकी लेकिन रिकॉर्डतोड प्रदर्शन किया। 

- वर्तमान में कांग्रेस के सबसे मजबूत नेता माने जाते हैं गहलोत जो पीएम तक से लोहा ले सकते हैं। इस साल नवम्बर में गुजरात में होने वाले चुनाव में पार्टी उनको फिर से जिम्मेदारी देने वाली है। इसलिए भी उनको राष्ट्रीय अघ्यक्ष चुनने की जिद है। 

- उनके पास खुद की तरह अनुभवी नेताओं का बड़ा समूह है जो उनकी गैर मौजूदगी में प्रदेश को संभाल सकता है और चुनाव तक के लिए संगठित हो सकता है। फिर चाहे सीपी जोशी हों, धारीवाल हो, बीडी कल्ला हो या फिर और बड़े नेता। 

- आलाकमान के सामने सबसे बड़ी समस्या ये है कि वे बड़े फायदे और प्रबंधन के लिए छोटे नुकसान को छोड़ना जरुरी है। यही कारण है कि अशोक गहलोत और उनके नजदीकी नेताओं के छोटी मोटी अनुशासनहीनता पर आलाकमान आंखे मूंद सकता है और इसका फायदा सीएम गहलोत मन मुताबिक उठा सकते हैं। 

- पार्टी के दिग्गज नेताओं का मानना है कि वैसे भी सीएम गहलोत का यह आखिरी चुनाव हो सकता है उसके बाद पार्टी को सैकेंड लाइन तैयार करनी ही होगी और फुल फ्लैश उन्हें पार्टी सौंपने में फिर कोई समस्या नहीं होगी। जबकि सचिन पायलेट के पास अभी बड़े पदों पर जाने के लिए लंबी उम्र पडी है। 

सभी की निगाहें दस जनपथ पर...बैठक जारी
खैर अब दिल्ली से आने वाले फरमान का सभी को इंतजार है। ये फरमान ही दोनो नेताओं का भविष्य तय करने वाला रहेगा। सभी की निगाहें दस जनपथ पर लगी हैं, आखिर सोनिया गांधी राजस्थान के मुख्यमंत्री पद और अशोक गहलोत से लेकर सचिन पायलट के लिए राजनीतिक फैसले लेंगी। दिल्ली में कांग्रेस आलाकमान की इस मामले को लेकर बैठक जारी है। जहां पार्टी के तमाम कद्दावर नेता मौजूद हैं।

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