Chaitra Navratri 2024: 15 अप्रैल को 2 शुभ योगों में करें देवी कालरात्रि की पूजा, जानें किस चीज का भोग लगाएं?

Chaitra Navratri 2024 Devi Kalratri Puja Vidhi: चैत्र नवरात्रि के सातवें दिन यानी सप्तमी तिथि पर देवी कालरात्रि की पूजा की जाती है। देवी दुर्गा का ये रूप काल का भी नाश करने में सक्षम है, इसलिए इन्हें कालरात्रि कहा जाता है।

 

Manish Meharele | Published : Apr 14, 2024 9:58 AM IST

Chaitra Navratri 2024 Devi Kalratri Puja Vidhi: चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि बहुत ही खास है क्योंकि वासंती नवरात्रि का सातवां दिन होता है। इस बार ये तिथि 15 अप्रैल, सोमवार को है। इस तिथि पर देवी दुर्गा के कालरात्रि स्वरूप की पूजा करने का विधान है। इस दिन सुकर्मा और धृति नाम के शुभ योग होने से इस तिथि का महत्व और भी बढ़ गया है। देवी कालरात्रि की पूजा करने से शत्रुओं पर विजय मिलती है। आगे जानिए कैसा है देवी कालरात्रि की कथा, पूजा विधि,आरती सहित पूरी डिटेल…

देवी कालरात्रि की कथा (Devi Kalratri Ki Katha)
देवी पुराण के अनुसार, महिषासुर नाम का एक राक्षस था। जब देवी दुर्गा और महिषासुर का युद्ध हुआ तो उसकी सेना में रक्तबीज नाम का एक दैत्य था। उसे वरदान था कि जहां भी उसका रक्त गिरेगा, वहां से अन्य रक्तबीज उत्पन्न हो जाएंगे। जब-जब भी देवी दुर्गा रक्तबीज वर वार करती, उसके खून से हजारों रक्तबीज पैदा हो जाते। तब देवी ने मां कालरात्रि का रूप लेकर रक्तबीज का वध किया। रक्तबीज से शरीर से निकलने वाले रक्त को माता ने पी लिया। इस तरह रक्तबीज का अंत हुआ।

ऐसा है मां कालरात्रि का स्वरूप (Navratri ke Satve Din Kis Devi Ki Puja Kare)
पुराणों के अनुसार, नवरात्रि के सातवें दिन की देवी मां कालरात्रि का रंग अत्यंत काला है। इनकी तीन आंखें हैं। इनका वाहन गधा है। वाघम्बर यानी शेर की खाल इनका वस्त्र है। इनके बाल बिखरे हैं और युद्ध के लिए तैयार नजर आती हैं। इनकी 4 भुजाएं हैं, जिसमें विभिन्न अस्त्र-शस्त्र हैं।

इस विधि से करें देवी कालरात्रि की पूजा (Devi Kalratri Ki Puja Vidhi-Mantra)
- 15 अप्रैल, सोमवार की सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद हाथ में जल-चावल लेकर व्रत-पूजा का संकल्प लें।
- इसके बाद घर में किसी साफ स्थान पर चौकी स्थापित कर उसके ऊपर देवी कालरात्रि की तस्वीर रखें।
- देवी कालरात्रि के सामने सरसों के तेल का दीपक लगाएं, कुमकुम से तिलक करें और इसके बाद फूलों की माला पहनाएं।
- चावल, अबीर, गुलाल आदि चीजें एक-एक करके चढ़ाते रहें। देवी को गुड़ का या गुड़ से बनी चीजों का भोग लगाएं।
- नीचे लिखे मंत्र का जाप करें और अंत में आरती करें-
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टक भूषणा।
वर्धन्मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी॥

मां कालरात्रि की आरती (Devi Kalratri Ki Aarti)
कालरात्रि जय-जय-महाकाली। काल के मुंह से बचाने वाली॥
दुष्ट संघारक नाम तुम्हारा। महाचंडी तेरा अवतार॥
पृथ्वी और आकाश पे सारा। महाकाली है तेरा पसारा॥
खडग खप्पर रखने वाली। दुष्टों का लहू चखने वाली॥
कलकत्ता स्थान तुम्हारा। सब जगह देखूं तेरा नजारा॥
सभी देवता सब नर-नारी। गावें स्तुति सभी तुम्हारी॥
रक्तदंता और अन्नपूर्णा। कृपा करे तो कोई भी दुःख ना॥
ना कोई चिंता रहे बीमारी। ना कोई गम ना संकट भारी॥
उस पर कभी कष्ट ना आवें। महाकाली माँ जिसे बचाबे॥
तू भी भक्त प्रेम से कह। कालरात्रि माँ तेरी जय॥


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