mahabharat interesting facts: कौरवों के मामा शकुनि महाभारत के प्रमुख पात्रों में से एक थे। वे हमेशा पांडवों का सर्वनाश करना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने कईं चालें भी चली, लेकिन हर बार वे नाकाम रहे।
Interesting facts about Shakuni: महाभारत की कथा में अनेक खलनायक हैं, जैसे जयद्रथ, दुर्योधन, दु:शासन आदि, लेकिन इन सभी में मामा शकुनि सबसे प्रमुख हैं। शकुनि ने ही बचपन से दुर्योधन के मन में पांडवों के खिलाफ नफरत पैदा की और उसके राजा बनने के सपने को बढ़ावा दिया। इसलिए इन्हें ही कौरवों और पाडंवों के बीच हुए भीषण युद्ध का मुख्य कारण भी माना जाता है। मामा शकुनि से जुड़ीं कईं ऐसी बातें हैं, जिनके बारे में कम ही लोगों को पता है। आगे जानिए शकुनि से जुड़ी खास बातें…
कहां के राजा थे शकुनि?
महाभारत के अनुसार, शकुनि के पिता का नाम राजा सुबल और माता का नाम सुदर्मा था। राजा सुबल गांधार (वर्तमान अफगानिस्तान) के राजा थे। राजा सुबल की मृत्यु के बाद शकुनि गांधार के राजा बने, इसलिए इन्हें गांधारराज भी कहा जाता था। शकुनि की बहन गांधारी का विवाह हस्तिनापुर के राजा धृतराष्ट्र से हुआ था। अपने पुत्र उलूक को गांधार का राजा बनाकर शकुनि काफी समय हस्तिनापुर में ही रहे।
क्यों चाहते थे पांडवों का सर्वनाश?
महाभारत के अनुसार, जब भीष्म पितामह धृतराष्ट्र के विवाह का प्रस्ताव लेकर गांधार गए तो शकुनि को ये रिश्ता स्वीकार नहीं था क्यों वो नहीं जाना था उसकी बहन का विवाह एक अंधे से हो, लेकिन उस समय भीष्म पितामह के सामने वो कुछ कर नहीं पाए। इसी बात का बदला लेने के लिए वे हस्तिनापुर आ गए और दुर्योधन को पांडवों के विरुद्ध भड़काने लगे, क्योंकि वे जानते थे कि ऐसा होने से सबसे ज्यादा कष्ट भीष्म पितामह को ही होगा।
कैसे हुई शकुनि का मृत्यु?
महाभारत युद्ध के 18वें दिन सहदेव का मामा शकुनि से भयंकर युद्ध हुआ। इस युद्ध में सहदेव ने शकुनि का वध कर दिया और इसके बाद उसके पुत्र उलूक को भी मार दिया। शकुनि का एक और वृकासुर नकुल के हाथों मारा गया। इन सभी की मृत्यु के बाद शकुनि का सबसे छोटा पुत्र वृप्रचिट्टी गांधार का राजा बना।
कहां है शकुनि का मंदिर?
आपको जानकर आश्चर्य होगा लेकिन भारत में शकुनि का एक मंदिर भी है। ये मंदिर केरल के कोट्टारक्कारा में स्थित है। इस मंदिर को मायम्कोट्टू मलंचारुवु मलनाड मंदिर के नाम से जाना जाता है। ये मंदिर यहां कब और किसने किसने बनवाया, इस बारे में कोई नहीं जानता। मान्यता है कि शकुनि ने इसी स्थान पर शिवजी को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस मंदिर में हर साल विशेष उत्सव मनाया जाता है, जिसे मलक्कुडा महोलसवम उत्सव कहते हैं। हजारों लोग इस उत्सव में शामिल होते हैं।
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