Kharchi Puja 2023: कौन हैं 'शाही सुंदरी अंबू बच्ची, जो मासिक धर्म का प्रतीक हैं, त्रिपुरा के 14 देवताओं से जुड़े रोमाचंक पर्व की कहानी

त्रिपुरा का एक रोमांचक और परंपरागत त्योहार खर्ची पूजा(Kharchi Puja 2023) 26 जून से शुरू हुआ। यह 2 जुलाई तक चलेगा। यह त्रिपुरा के 14 देवताओं को याद करने का प्रमुख त्योहार है। इसमें जो अनुष्ठान(rituals) होता है, उसे खर्ची पूजा कहते हैं।

 

Contributor Asianet | Published : Jun 26, 2023 2:36 AM IST / Updated: Jun 26 2023, 08:09 AM IST
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अगरतला. त्रिपुरा का एक रोमांचक और परंपरागत त्योहार खर्ची पूजा(Kharchi Puja 2023) 26 जून से शुरू हुआ। यह 2 जुलाई तक चलेगा। यह त्रिपुरा के 14 देवताओं को याद करने का प्रमुख त्योहार है। इसमें जो अनुष्ठान( rituals) होता है, उसे खर्ची पूजा कहते हैं। यह हर साल जुलाई या अगस्त में अमावस्या के आठवें दिन मनाया जाता है। खर्ची पूजा शाही राजवंश की देवी त्रिपुरा सुंदरी को समर्पित है, जिन्हें खर्ची या खर्चा बाबा के नाम से भी जाना जाता है। यह त्यौहार अंबु बच्ची या अंबु पेची के 15 दिन बाद होता है। त्रिपुरी लोककथाओं के अनुसार अम्बु पेची(Ambu pechi) को देवी मां या धरती मां के मासिक धर्म का प्रतीक कहा जाता है।

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पुराने अगरतला के खयेरपुर में उत्सवी माहौल के साथ पारंपरिक खर्ची पूजा शुरू हुई। रविवार शाम को हावड़ा नदी में देवताओं को स्नान कराया गया।

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खर्ची पूजा 7 दिनों तक चलने वाला त्योहार है। खर्ची पूजा के दौरान भक्त पुराने अगरतला में चतुर्दश देवता मंदिर में आते हैं।

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खारची शब्द दो त्रिपुरी शब्दों 'खर' या खरता से बना है। इसके मायने होते हैं पाप, 'ची' इसका अर्थ है सफाई करना। यानी लोगों या राज्य के पापों की सफाई।

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एक त्यौहार अंबु बच्ची के 15 दिन बाद खाची पूजा की जाती है। ये देवता मूल रूप से आदिवासी हैं, जिन्हें बाद में हिंदू धर्म में परिवर्तित कर दिया गया था।

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सभी देवताओं के नाम आदिवासी भाषा कोक-बारोक में हैं। अनुष्ठान आदिवासी पुजारियों द्वारा कराया जाता है। मुख्य पुजारी को 'चंटाई-Chantai' कहा जाता है।

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खर्ची पूजा में एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान चतुर्दश मंडप(Chaturdasha Mandapa) का निर्माण है, जो बांस और फूस की छत से बना एक अस्थायी स्ट्रक्चर है। यह मंडप त्रिपुरी राजाओं के शाही महल का प्रतीक है। इसका निर्माण पारंपरिक कारीगर करते हैं।

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खर्ची पूजा का मुख्य आकर्षण प्राचीन उज्जयंत महल से चतुर्दश मंडप तक चौदह देवताओं की भव्य शोभा यात्रा है।

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खर्ची पूजा में देवताओं की मूर्तियों को फूलों, पारंपरिक पोशाक और आभूषणों से खूबसूरती से सजाया जाता है।

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खर्ची पूजा में देवताओं के जुलूस में ढोलवादक, संगीतकार और उत्साही भक्त शामिल होते हैं।

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