न नेता न VIP: फिर कौन था ये दूल्हा, जिसकी सुरक्षा में चारों तरफ खड़े पुलिसवाले

Published : Jan 22, 2025, 10:55 AM ISTUpdated : Jan 22, 2025, 10:56 AM IST
Ajmer News

सार

राजस्थान में एक दलित दूल्हे की बारात पुलिस सुरक्षा में निकली। 20 साल पहले इसी गांव में दलित दूल्हे को घोड़ी पर बैठने से रोका गया था, इस घटना के बाद यह कदम उठाया गया।

अजमेर. राजस्थान के अजमेर जिले के श्रीनगर थाना क्षेत्र के लवेरा गांव में मंगलवार को एक अनोखी बारात निकली, जहां दूल्हा विजय रैगर पुलिस सुरक्षा में घोड़ी पर बैठकर बारात लेकर निकला। इस बारात में 75 पुलिसकर्मियों की तैनाती की गई, जिनमें 20 महिला कांस्टेबल भी शामिल थीं। यह कदम 20 साल पहले हुई एक घटना को ध्यान में रखते हुए उठाया गया, जिसमें इसी गांव में दलित दूल्हे को घोड़ी पर बैठने नहीं दिया गया था।

पुलिस जीप में बैठकर शादी की रस्में पूरी करनी पड़ी

20 साल पुरानी घटना की छाया 2005 में लवेरा गांव में नारायण रैगर की बहन सुनीता की शादी के दौरान दलित दूल्हे को घोड़ी पर बैठने से रोका गया था। उस समय तनावपूर्ण माहौल के कारण दूल्हे दिनेश को पुलिस जीप में बैठकर शादी की रस्में पूरी करनी पड़ी थीं। यह घटना न केवल नारायण रैगर के परिवार, बल्कि पूरे दलित समुदाय के लिए गहरी कड़वाहट का कारण बनी रही।

सुरक्षा में बैरिकेड्सऔर ड्रोन कैमरे भी लगाए

पुलिस सुरक्षा और सामाजिक जागरूकता का असर 21 जनवरी को विजय रैगर की बारात के लिए पुलिस प्रशासन ने चाक-चौबंद सुरक्षा व्यवस्था की। गांव में जगह-जगह बैरिकेड्स लगाए गए और ड्रोन कैमरों से निगरानी की गई। एडिशनल एसपी दीपक कुमार शर्मा और अन्य पुलिस अधिकारियों ने ग्रामीणों और दोनों पक्षों से चर्चा कर विवाद टालने के लिए बारात के मार्ग और नियम तय किए।

ढोल-नगाड़ों के साथ नाचते-गाते लगी बारात

समानता और अधिकारों की जीत राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग तक मामले की शिकायत दर्ज कराई गई थी, जिसके बाद प्रशासन हरकत में आया। पुलिस सुरक्षा के बीच विजय रैगर की बारात घोड़ी पर निकली। ढोल-नगाड़ों के साथ नाचते-गाते बाराती खुशी से झूम रहे थे। विजय और उसकी दुल्हन अरुणा ने इस अवसर पर खुशियों के साथ अपने जीवन की नई शुरुआत की।

अधिकारों की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम

समाज में बदलाव की झलक इस घटना ने दिखाया कि भले ही सामाजिक असमानता की चुनौतियां बनी हुई हैं, लेकिन पुलिस और प्रशासन की सक्रियता और लोगों की जागरूकता से सकारात्मक बदलाव संभव है। विजय की बारात न केवल एक व्यक्तिगत जीत थी, बल्कि दलित समुदाय के अधिकारों की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम भी।

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