राजस्थान न्यूज। राजस्थान के सरकारी स्कूलों में चल रहे शाला स्वास्थ्य परीक्षण कार्यक्रम ने शिक्षकों और प्रशासन के बीच विवाद पैदा हो गया है। 31 अगस्त तक चलने वाले इस प्रोग्राम के अंतर्गत शिक्षकों को बच्चों के सिर में जूं, शरीर पर चकत्तों के निशान और छात्राओं की माहवारी से संबंधित परीक्षण करने के निर्देश दिए गए हैं। यह दिशा-निर्देश खासकर महिला शिक्षक रहित स्कूलों में कठिनाइयों का कारण बन रहे हैं।
स्वास्थ्य परीक्षण के दौरान शिक्षकों को पलक को नीचे करके आंखों के सफेद भाग में पीलेपन और झिल्ली का जांच करने के लिए कहा गया है। इसके अलावा बच्चों की नजर, मांसपेशियों में कमजोरी, दिल की बीमारियां और शरीर की गांठों का टेस्ट भी शिक्षकों से कराया जा रहा है। ये सारे काम डॉक्टर के जिम्मे होने चाहिए, लेकिन टीचर्स पर इनका बोझ डाल दिया गया है।
राजस्थान में क्लास 6 से 12 वीं तक की बच्चियों का हेल्थ टेस्ट
स्वास्थ्य परीक्षण कार्यक्रम को लेकर टीचर्स ने कई मुद्दों को उठाया है। उनका कहना है कि हमारा काम पढ़ाना है लेकिन सरकार इस तरह के काम करना चाह रही है। जिससे पढ़ाई असर पड़ रहा है। खासकर क्लास 6 से 12 वीं तक की बच्चियों के हेल्थ टेस्ट के लिए महिला शिक्षकों को प्राथमिकता दी गई है। अगर कोई स्टूडेंट अबसेंट हो तो टीचर को उसके घर जाकर 67 बिन्दुओं का विवरण भरने का आदेश भी दिया गया है।
राजस्थान के शिक्षक संगठनों ने उठाई आवाज
राजस्थान के शिक्षक संगठनों ने इस व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाई है। उनका कहना है कि बच्चों की स्वास्थ्य जांच को चिकित्सकों द्वारा चिकित्सा शिविर लगाकर करना चाहिए, ताकि रिपोर्ट सही और विश्वसनीय हो। इससे शिक्षकों को एक गैर-शैक्षिक कामों से राहत मिलेगी और पढ़ाई की गुणवत्ता पर भी असर नहीं पड़ेगा।
राजस्थान शिक्षक संघ के अधिकारियों का बयान
राजस्थान शिक्षक संघ के प्रदेश महामंत्री उपेंद्र शर्मा ने कहा कि शाला स्वास्थ्य परीक्षण के लिए स्कूलों में चिकित्सा शिविर लगाए जाने चाहिए। वहीं, बसंत कुमार ज्याणी.. प्रदेश प्रवक्ता, राजस्थान वरिष्ठ शिक्षक संघ रेस्टा ने भी कहा कि इस प्रकार के हेल्थ सर्वे से स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था प्रभावित हो रही है और शिक्षकों द्वारा इसका विरोध किया जा रहा है।
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