पिता 5वीं पास, परिवार में कोई पढ़ा-लिखा नहीं, लेकिन तीनों भाई-बहन बन गए डॉक्टर

कहते हैं जज्बा और कड़ी मेहनत हो तो हर स्टूडेंट करियर में सफलता प्राप्त कर सकता है। ऐसी ही कहानी राजस्थान के झालावाड़ जिले के तीन भाई-बहनों की है। जो नीट एग्जाम पास कर डॉक्टर बन गए हैं। जबकि उनके परिवार में कोई पढ़ा-लिखा नहीं है।

Arvind Raghuwanshi | Published : Jun 10, 2024 11:46 AM IST

झलावाड़. ऐसा परिवार जिन्हें मूलभूत सुविधाएं यानी बिजली , पानी जैसी सुविधाएं भी नहीं मिली लेकिन उसके बावजूद भी 3 साल में तीन भाई, बहनों ने रिकॉर्ड तोड़ डालें । हम बात कर रहे हैं राजस्थान के झालावाड़ जिले में रहने वाले दो भाई और एक बहन की । उनके पिता पांचवी पास है और किसान है । मां अनपढ़ है ।‌परिवार में और कोई पढ़ा लिखा नहीं है लेकिन 3 साल में तीनों बहन भाई डॉक्टर बन गए हैं और डॉक्टरी शुरू कर दी है ।

दो कमरों के कच्चे घर में रहता पूरा परिवार

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दरअसल झालावाड़ जिले की खानपुर तहसील में चलेट गांव में रहने वाले राजेंद्र कुमार और उनके परिवार की है । कहानी है राजेंद्र के दो बेटे और एक बेटी है । मकान के नाम पर उनके पास दो कमरे हैं, जिनमें एक कमरे में पशुओं का चारा भरा है । दूसरे कमरे में परिवार के पांचो सदस्य टीनशैड के नीचे रहते हैं ।

तीनों बच्चों ने पास की नीट परीक्षा

परिवार में राजेंद्र के अलावा पत्नी मनभर देवी, बेटी अंजलि , बेटा अविनाश और अजय है । पिता किसानी करते हैं और मां बच्चों के लिए कोटा में खाना बनाती है। 3 साल में तीनों बच्चों ने कोटा में रहकर पढ़ाई की और तीनों ही नीट परीक्षा पास करने के साथ डॉक्टर बंन रहे हैं ।

जानिए नीट में किसे मिली कितनी रैंक

अंजलि नागर की बात की जाए तो अंजलि ने 2022 में , छोटे भाई अविनाश ने 2023 में और सबसे बड़े भाई अजय ने हाल ही 2024 में नीट परीक्षा क्लियर कर ली है। अंजलि गुजरात के आयुर्वेद कॉलेज से डॉक्टरी कर रही है । जबकि अविनाश झारखंड में रहकर एमबीबीएस कर रहे हैं। अब अजय के लिए कॉलेज तलाशा जा रहा है । अजय ने हाल ही में नित कलियर की है ओबीसी वर्ग में उसकी 9203 रैंक आई है और 661 नंबर अजय ने हासिल किए हैं ।

पिता बोले-गरीब के बच्चे भी सफल होते हैं...

अजय के पिता राजेंद्र का कहना है कि ऐसा सपने में भी कोई नहीं सोच सकता कि गरीब व्यक्ति के तीनों बच्चे डॉक्टर बन जाए। लेकिन तीनों बच्चों ने समाज ही नहीं देश में नाम कर दिया है। चलेट गांव को कोई नहीं जानता था, लेकिन अब बच्चों के नाम से गांव पहचाना जा रहा है।

 

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