रिपोर्ट: भारी बारिश के बाद भी गंगा को नहीं मिल रहा पानी, धीमी होने वाली है धारा की रफ्तार, बेहद खतरनाक है वजह

विशेषज्ञों का मानना है कि गंगोत्री के ग्लेशियर तेजी से पिघलते रहे तो आने वाले करीब पंद्रह सौ साल में गंगा नदी का अस्तित्व खत्म हो सकता है। मगर इसी बीच अगर ग्लेशियर बढ़ गए तो नदी का अस्तित्व बचा रहेगा। 

Asianet News Hindi | / Updated: Sep 28 2022, 07:31 AM IST

देहरादून। देश की प्राचीन नदियों में से एक और भारत की तीसरी सबसे लंबी नदी गंगा का अस्तित्व धीरे-धीरे कमजोर पड़ता जा रहा है। इस पतित-पावनी नदी का जल जहां आश्चर्यजनक रूप से दूषित हो रहा है, वहीं अब इसकी धारा भी कमजोर पड़ती जा रही है। धारा कमजोर होने की प्रमुख वजह को लेकर वैज्ञानिकों का मानना है कि ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं और यही स्थिति बनी रही तो वे धारा को और ज्यादा प्रभावित करेंगे। 

विशेषज्ञों की ओर से इस संबंध में एक रिसर्च रिपोर्ट जारी की गई है, जिसमें हैरतअंगेज तथ्य सामने आए हैं। देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालया जियोलॉजी के वैज्ञानिक डॉक्टर राकेश भांबरी के मुताबिक, बीते 87 साल में यानी 1935 से लेकर 2022 तक गंगोत्री ग्लेशियर के मुहाने पर जो हिस्सा था, वह 1700 मीटर तक यानी करीब पौने दो किलोमीटर की दूरी में पिघल चुका है। 

गंगोत्री है गंगा नदी का मुख्य स्रोत 
डॉक्टर भांबरी की मानें तो यह लगातार बढ़ते तापमान और कम बर्फबारी के साथ-साथ ज्यादा बारिश की वजह से हो रहा है। ये ग्लेशियर जितनी तेजी से पिघल रहे हैं गंगा पर खतरा उतना ही गहराता जा रहा है, क्योंकि गंगोत्री ही गंगा नदी का मुख्य स्रोत है। इसके पिघलने से सहायक ग्लेशियरों के पिघले का प्रभाव नदी की धारा और प्रवाह पर पड़ सकता है। रिसर्च के अनुसार, सबसे ज्यादा असर चतुरंगी ग्लेशियर पर हुआ है और वो भी बीते सिर्फ 27 साल में। ग्लेशियर की सीमा 1172 मीटर से ज्यादा कम हुई है। इससे इसके पूरे क्षेत्र में 0.626 वर्ग किलोमीटर की कमी आई है। साथ ही, 0.139 घन किलोमीटर की बर्फ कम हो गई है। रिसर्च के मुताबिक, गंगोत्री का ग्लेशियर लगभग 30 किलोमीटर की दूरी में फैला है। अब जबकि यह 1935 से 2022 तक में करीब पौने दो किलोमीटर तक पिघल चुका है और यह बढ़ता जा रहा है, तो मात्रा आने वाले वर्षों में और तेजी से बढ़ेगी। 

ग्लेशियर के बढ़ने या घटने पर निर्भर है नदी का अस्तित्व 
वैज्ञानिकों के अनुसार, गंगोत्री ग्लेशियर के पिघलने की दर बीते एक साल में 19.54 मीटर तक है। ऐसे में गंगोत्री ग्लेशियर लगभग अगले पंद्रह सौ साल में पूरी तरह पिघल सकती है। हालांकि, आंकड़े और स्थिति बदल भी सकती है। हो सकता है आने वाले वर्षों में बर्फबारी अधिक हो, तो स्थिति और अच्छी हो जाए। बारिश के होने पर भी असर होगा और तापमान बढ़ने या घटने पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा। ग्लेशियर पिघलने की कई वजह हो सकती हैं और उसे फिर से बढ़ने में कई वजहें कारक बन सकती हैं। 

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