सार
देश में अप्रेजल और प्रमोशन का सीजन चल रहा है। ऐसे में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर एक इंजीनियर का पोस्ट वायरल हो रहा है। जिसने भारत में अप्रेजल सिस्टम को मजाक बताया है।
बिजनेस डेस्क : अगर आप भी अप्रेजल का इंतजार कर रहे हैं तो आपको यह दिलचस्प पोस्ट पढ़नी चाहिए। इंक्रीमेंट-प्रमोशन वाले सीजन में एक इंजीनियर ने नौकरी करने वालों को सलाह दी है कि अप्रेजल का इंतजार करने की बजाय अपनी जॉब को स्विच करें। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर किए गए पोस्ट में अक्षय सैनी नाम के इंजीनियर ने भारत में अप्रेजल सिस्टम को मजाक बताया है और एक सलाह दी है। उनकी पोस्ट को अब तक बड़ी संख्या में लोग देख चुके हैं। बहुत से लोग उनकी बातों को सही भी बता रहे हैं। चलिए जानते हैं अप्रेजल को लेकर क्या है इंजीनियर की पोस्ट...
इंक्रीमेंट का इंतजार न करें
देहरादून (Dehradun) के रहने वाले अक्षय सैनी ने अपनी पोस्ट में लिखा- 'भारतीय कंपनियों के अप्रेजल सिस्टम ही मजाक है। सैलरी बढ़ाने का एकमात्र तरीका है जॉब बदल लेना।' सैनी आगे कहते हैं कि 'देश में महंगाई लगातार बढ़ती जा रही है। भारतीय कंपनियों में इंटरनल प्रमोशन और सैलरी इंक्रीमेंट काफी कम मिलती है। ज्यादातर कंपनियां 10 प्रतिशत से कम ही इंक्रीमेंट देती हैं, जिससे घर चलाना भी मुश्किल है। ऐसे में सैलरी बढ़ाने का एकमात्र तरीका स्विच करना ही है।' सैनी की इस पोस्ट पर अब तक 5 लाख से ज्यादा व्यूज आ चुके हैं।
सैलरी बढ़ाने का एकमात्र तरीका है स्विच करना
सैनी ने आगे कहा कि 'सैलरी बढ़ाना चाहते हैं तो तुरंत जॉब स्विच करें।' उन्होंने कहा,' एवरेज से बेहतर इंजीनियरों को अपनी सैलरी बढ़ाने को लेकर काफी परेशान होना पड़ रहा है। ऐसे में विकल्प एक ही रह जाता है।' उन्होंने अपनी पोस्ट में लिखा, 'अगर आपको अपने टैलेंट के हिसाब से पैसा नहीं मिल रहा है तो इसमें भी आपकी ही गलती है। कम सैलरी मिल रही है तो नौकरी स्विच करिए, न कि लालची बनें, क्योंकि लालच का तो इलाज ही नहीं है।'
यूजर्स का रिएक्शन
सैनी की पोस्ट में बड़ी संख्या में यूजर्स और प्रोफेशनल्स ने रिएक्शन दिया है। एक यूजर ने लिखा- कंपनी आपीक फैमिली नहीं है। कंपनी के साथ आपका ट्रांजैक्शनल रिलेशनशिप है। वहीं, एक अन्य यूजर ने लिखा कि लंबी-चौड़ी एक्सरसाइज के बाद कंपनियां सैलरी में 5-10 परसेंट इंक्रीमेंट करती हैं। एक यूजर ने जल्दबाजी से बचने की सलाह देते हुए कई फैक्टर्स पर ध्यान देने की बात की है। इनमें जॉब सैटिस्फैक्शन, करियर ग्रोथ और वर्क लाइफ बैलेंस जैसे फैक्टर्स शामिल हैं।
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