मुस्लिम समुदाय (Muslims Community) के लोग रमजान (Ramzan) के दौरान रोजा (Roza) रखते हैं। सूरज निकलने से अस्त होने तक, कुछ खाते-पीते नहीं हैं। मुंह का थूक भी नहीं निगलते और न ही कुछ देखकर मुंह में पानी आना चाहिए।
नई दिल्ली। मुस्लिम समाज (Muslim Community) का पवित्र महीना रमजान (Ramzan) आज से शुरू हो रहा है। हालांकि, यह सवाल अक्सर पूछा जाता है कि यह दिन कब से शुरू होता है। वैसे तो रमजान की शुरुआत चांद देखने के बाद ही होती है। इसे चांद रात (Chand Raat) भी कहते हैं। रमजान मुस्लिम कैलेंडर के हिसाब से नौवें महीने में आता है। यह पवित्र महीना ईद-उल-फितरा (Eid-ul-fitra) के ठीक बाद वाला होता है।
मुस्लिम रमादान (Ramadhan) यानी रमजान के दौरान रोजा रखते हैं। सूरज निकलता है, तब से जब तक अस्त होता है, तब तक कुछ खाते-पीते नहीं हैं। इस ईद में सेवइयां बनती हैं। वैसे तो रमजान को लेकर लोगों के कई सवाल होते हैं, लेकिन यहां ऐसे कुछ सवालों के जवाब हैं, जिनके बारे में आप जानना चाहेंगे।
सही क्या है रमजान या रमादान
रमजान यानी रमादान को लेकर लोगों में भ्रम की स्थिति रहती है। कुछ लोग रमादान लिखते हैं तो कई रमजान। इस पर अक्सर बहस शुरू हो जाती है कि रमजान सही है या रमादान। दरअसल, रमादान अरबी भाषा का शब्द है। वहीं, रमजान उर्दू भाषा का लफ्ज है। अरब में लोग इसे रमादान कहते हैं, क्योंकि अरबी भाषा में ज्वाद अक्षर का स्वर अंग्रेजी के जेड की जगह डीएच की संयुक्त ध्वनि है। ऐसे में इसे रमादान कहते हैं।
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क्या है रमजान
रमजान मुस्लिम कैलेंडर में इस समुदाय का पवित्र महीना है। पैगंबर मुहम्मद साहब के अनुसार, जब रमजान का पवित्र माह शुरू होता है, तो जहन्नुम के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं और जन्नत के दरवाजे खुल जाते हैं। यह महीना नेक काम है। इसमें मुस्लिम रोजा रखने के अलावा कुरान पढ़ने की पूरी क्षमता से है। कहा जाता है कि जितना कुरान पढ़ेंगे, सवाब उतना मिलेगा। बंदे का गुनाह उतना माफ होगा। जन्नत जा सकेंगे। रोजा 30 दिन का भी हो सकता है और 29 दिन का भी। वैसे यह बात चांद पर भी निर्भर करती है कि कब उसके दर्शन होंगे। जिस रात चांद दिखता है, उसके अगली सुबह ईद-उल-फितरा होता है। माना यह भी जाता है मुस्लिम धर्मग्रंथ कुरान इसी महीने दुनिया में आया।
कैसे रखते हैं रोजा, किसे है छूट
दरअसल, रोजा मुस्लिम समुदाय के पांच स्तंभों में एक है। ये पांचों स्तंभ कलमा, नमाज, जकात, रोजा और हज हैं। यह इस समुदाय के सभी बालिग पर लागू है। पूरे महीने रोजा रखना ही रखना है। बीमार लोग, यात्रा के दौरान, गर्भवती औरतें और बच्चों को रोजा रखने की छूट होती है। जिस्मानी रिश्ते बनाने पर पाबंदी होती है। अगर पाक रोजा हैं तो मुंह का थूक भी अंदर नहीं जाना चाहिए। किसी व्यंजन को देखकर मुंह में पानी आया तो वह भी गलत है। इस पूरे महीने किसी से जलिए मत, चुगली मत किजिए, गुस्सा मत किजिए, गलत चीजों से परहेज किजिए। तभी रोजा पूरा हुआ माना जाएगा।
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मुश्किल काम है रोजा रखना
गर्मियों में रोजा रखना सबसे मुश्किल काम है। भारत में गर्मियों में दिन लगभग 15 घंटे का होता है। जून में रोजा रखना कठिन काम है। सूरज की तपिश और लू के थपेड़े को सहते हुए रोजेदार बिना पानी के रहते हैं। शरीर में पानी की कमी होती है, मगर कुछ कर नहीं सकते। सहरी के लिए जल्दी उठना पड़ता है। नमाज पढ़नी होतती है। शाम को कुरान पढ़ना होता है, जिसमें लगभग एक घंटा लगता है। तो समय काफी खर्च होता है।
क्या रोजे रखने से वजन कम होता है
रोजा रखने वाले दिनभर कुछ नहीं खाते। माना जाता है कि वजन घट जाता है, मगी ऐसा नहीं है। यहां उल्टा होता है यानी वजन कम नहीं ज्यादा हो जाता है, क्योंकि सहरी और इफ्तार में खाना काफी गरिष्ठ होता है। प्रोटीन और वसा वजन कम नहीं होने देता। भूख प्यास नहीं लगे, इसके लिए चलते फिरते कम हैं और वजन पर असर पड़ता है।
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तारीख क्यों बदल जाती है रमजान की
मुस्लिम कैलेंडर चांद के मुताबिक होता है। साल में इसके 354 दिन होते हैं। वहीं, अंग्रेजी कैलेंडर 365 दिन का होता है, इसलिए हर साल 13 दिन कम होते जाते हैं। इस तरह मुस्लिम समुदाय का हर त्योहार 11 दिन पहले आ जाता है। पहले सर्दी में आने वाला रमजान अब कुछ साल से गर्मी में आ रहा है।
शिया और सुन्नी के रोजे एक हैं या अलग-अलग
वैसे, रोजा रखने में कोई फर्क नहीं होता है। सहरी और इफ्तार में अंतर जरूर होता है। सुन्नी मुस्लिम सूरज छिपने पर रोजा खोलते हैं, जबकि शिया मुस्लिम अंधेरा छाने तक का इंतजार करते हैं। सुबह सुन्नी से दस मिनट पहले ही शिया अपना रोजा खोलते हैं।