2 सितंबर को गुरुवार और एकादशी का शुभ योग, इस दिन तुलसी की पूजा करने से मिलते हैं शुभ फल

2 सितंबर, गुरुवार (September 2, Thursday) को भाद्रपद महीने के कृष्णपक्ष की एकादशी है। इसे जया (Jaya Ekadashi) और अजा एकादशी (Aja Ekadashi) कहा जाता है। (पंचांग भेद के कारण कुछ स्थानों पर 3 सितंबर को भी एकादशी का व्रत किया जाएगा।) इस दिन भगवान विष्णु (Vishnu) की पूजा और व्रत किया जाता है। 

Asianet News Hindi | Published : Sep 2, 2021 5:01 AM IST / Updated: Sep 02 2021, 12:53 PM IST

उज्जैन. इस बार 2 सितंबर, गुरुवार को भाद्रपद महीने के कृष्णपक्ष की एकादशी है। इसे जया (Jaya Ekadashi) और अजा एकादशी (Aja Ekadashi) कहा जाता है। भगवान विष्णु का ही दिन होने से इसे हरिवासर कहा गया है। इस शुभ संयोग में भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण सहित उनके अन्य अवतारों के साथ तुलसी की विशेष पूजा की भी परंपरा है।

ऐसे करें तुलसी पूजा
इस एकादशी पर दोनों समय यानी सुबह और शाम तुलसी पूजा की जाती है। साथ ही भगवान विष्णु की पूजा और नैवेद्य लगाते वक्त तुलसी का इस्तेमाल खासतौर से किया जाता है। इस एकादशी की शाम तुलसी के पास दीपक जलाकर मंत्र जाप करना चाहिए। सूर्योदय के वक्त तुलसी को जल चढ़ाना चाहिए लेकिन सूर्यास्त होने के बाद न तो जल चढ़ाएं और न ही इसे छूना चाहिए। तुलसी पूजा के वक्त तुलसी मंत्र जरूर पढ़ें…

तुलसी मंत्र
वृंदा वृंदावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी।
पुष्पसारा नंदनीय तुलसी कृष्ण जीवनी।।
एतनामांष्टक चैव स्त्रोतं नामर्थं संयुतम।
य: पठेत तां च सम्पूज्य सौश्रमेघ फलंलभेत।।

एकादाशी पर तुलसी पूजा
- एकादशी तिथि पर सूर्योदय से पहले उठकर नहाएं फिर दिनभर व्रत रखने और भगवान विष्णु के साथ तुलसी पूजा करने का संकल्प लेना चाहिए।
- इसके बाद तुलसी को प्रणाम कर के उसमें शुद्ध जल चढ़ाएं। फिर पूजा करें। तुलसी को गंध, फूल, लाल वस्त्र अर्पित करें। फल का भोग लगाएं।
- घी का दीपक जलाएं। तुलसी के साथ भगवान शालग्राम की भी पूजा करनी चाहिए। इसके बाद प्रणाम कर के उठ जाएं।

तुलसी दान से मिलता है कई यज्ञों का फल
- एकादशी के दिन सुबह जल्दी तुलसी और भगवान शालग्राम की पूजा के साथ तुलसी दान का संकल्प भी लेना चाहिए। इसके बाद भगवान विष्णु की भी पूजा कर लें।
- फिर गमले सहित तुलसी पर पीला कपड़ा लपेट लें। जिससे पौधा ढंक जाए। इस पौधे को किसी विष्णु या श्रीकृष्ण मंदिर में दान कर दें।
- तुलसी के पौधे के साथ ही फल और अन्नदान करने का भी विधान ग्रंथों में बताया गया है। ऐसा करने से कई यज्ञों को करने जितना पुण्य फल मिलता है और जाने-अनजाने हुई गलतियां और पाप खत्म हो जाते हैं।

Share this article
click me!