Shukra Pradosh 2022: 2 शुभ योगों में 23 सितंबर को किया जाएगा शुक्र प्रदोष व्रत, जानें शुभ मुहूर्त और उपाय

Shukra Pradosh 2022: इस बार 23 सितंबर, शुक्रवार को आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि होने से प्रदोष व्रत किया जाएगा। ये व्रत शुक्रवार को होने से शुक्र प्रदोष कहलाएगा। इस व्रत में भगवान शिव की पूजा की जाती है।
 

उज्जैन. धर्म ग्रंथों में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए अनेक व्रतों के बारे में बताया गया है। प्रदोष व्रत भी इनमें से एक है। ये व्रत प्रत्येक महीने के दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि पर किया जाता है। इस बार 23 सितंबर, शुक्रवार को ये व्रत किया जाएगा। इस दिन शुक्रवार होने से शुक्र प्रदोष (Shukra Pradosh 2022) कहलाएगा। इस दिन शिव और साध्य नाम के 2 शुभ योग बनेंगे, जिसके चलते इसका महत्व और भी बढ़ गया है। पूजा का शुभ मुहूर्त इस प्रकार है- शाम 06:17 से रात 08:39 तक।

इस विधि से करें व्रत-पूजा (Shukra Pradosh Vrat 2022)
शुक्रवार की सुबह स्नान आदि करने के बाद व्रत-पूजा का संकल्प लें। दिन भर निराहार रहें यानी कुछ भी खाए-पीएं नहीं। शाम को प्रदोष काल (06:17 से रात 08:39) में
किसी मंदिर या घर पर ही शिवजी की पूजा करें। पहले शिवजी का अभिषेक शुद्ध जल से करें, फिर पंचामृत से और फिर दोबारा शुद्ध जल चढ़ाएं। इसके बाद बिल्व पत्र, धतूरा, आंकड़ा, फूल, फल आदि चीजें चढ़ाएं। अंत में भोग लगाकर शिवजी की आरती करें। इस तरह पूजा करने से आपकी हर परेशानी दूर हो सकती है।

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ये उपाय करें (Shukra Pradosh Upay)
1.
प्रदोष व्रत की सुबह जल्दी उठकर पहले शिवजी की पूजा करें और इसके बाद शिव चालीसा का पाठ करें
2. शिव का चावल अर्पित करें। ध्यान रखें की चावल टूटे हुए न हों। शिव पुराण के अनुसार, शिवजी को चावल चढ़ाने से धन लाभ के योग बनते हैं।
3. प्रदोष व्रत की सुबह बिल्व वृक्ष के नीचे शुद्ध घी का दीपक जलाएं। इस पेड़ के तने में कुबेरदेव का स्थान माना गया है। इससे भी धन लाभ हो सकता है।

शिवजी की आरती (Shivji Ki Aarti)
जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव…॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय शिव…॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव…॥
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी ।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव…॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव…॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥ ॐ जय शिव…॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ जय शिव…॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ जय शिव…॥
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ जय शिव…॥
जय शिव ओंकारा हर ॐ शिव ओंकारा|
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अद्धांगी धारा॥ ॐ जय शिव ओंकारा…॥


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