बांके बिहारी मंदिर: 50 सालों से बंद है खजाना, गहराता जा रहा तहखाने में छिपा रहस्य

बांके बिहारी मंदिर के बंद पड़े तोषाखाने का रहस्य लगातार गहराता जा रहा है। इस बीच कई प्रयासों के बाद भी इसे न खोला गया। बताया जाता है कि खजाना गर्भगृह श्री बांके बिहारी के सिंहासन के ठीक नीचे है। 

मथुरा: वृंदावन के ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर में तकरीबन बीते 50 साल से बंद पड़े तोषाखाने (खजाने) का रहस्य लगातार गहराता ही जा रहा है। इस खजाने को सेवायतों और भक्तों की वर्तमान पीढ़ी के आग्रह और अदालत के प्रयासों के बाद में भी नहीं खोला गया। मंदिर के ही सेवायत बताते हैं कि वैष्णव परंपरा के अनुसार 1864 में निर्मित मंदिर के गर्भगृह श्री बांके बिहारी के सिंहासन के ठीक नीचे वाले तोषाखाना में इस खजाना को स्थापित किया गया था। खजाने को सहस्त्री फनी रजत शेषनाग, स्वर्ण कलश में नवरत्न व बिहारी जी के लिए ही शहीद हुए गोस्वामी रुपानन्द महाराज, मोहनलाल महाराज को समर्पित उल्लेखपत्र पूजित कर स्थापित किया गया था। 

सीढ़ी उतरने के बाद ठीक बीचोबीच में है तोषाखाना
यहां ठाकुरजी को चढ़ाए गए पन्ना निर्मित मयूर आकृर्ति हार, अभूषण, सोने-चांदी के सिक्के, भेंट, दान में भूमि के दस्तावेज आदि चीजे सुरक्षित रखी हुई हैं। ऐसा इसलिए किया गया है जिससे सेवायत भविष्य में मंदिर के मालिकाना हक को लेकर होने वाले किसी भी विवाद का सबूत के साथ निपटारा कर सके। वहीं जब सरकार की ओर से प्रमाण मांगे जा रहे हैं तो तहखाने में मौजूद सबूत उजागर होने की बात भी सामने आ रही है। कहा जा रहा है कि उस खजाने को खोलकर उसमें एकत्रित संपत्ति को निकालकर बिहारीजी के हित में उसका प्रयोग होना चाहिए। यह तोषखाना बिहारीजी के दाहिने हाथ के ओर बने दरवाजे से तकरीबन दर्जनभर सीढ़ी उतरने के बाद बायें ओर की तरफ ठाकुरजी के सिंहासन के एकदम बीचोबीच में है। ब्रिटिश शासनकाल में यहां 1926 और 1936 में चोरी भी हुई। इन घटनाओं के चलते चार लोगों के खिलाफ कार्रवाई भी हुई थी। चोरी की घटना के बाद गोस्वामी महाराज ने तहखाने का मुख्य द्वार बंद कर सामान डालने के लिए एक छोटा सा मोखा यानी मुहाना बना दिया था। 

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कई कानूनी प्रयास के बाद भी रहे असफल
वर्ष 1971 में अदालत के आदेश पर खजाने के दरवाजे के ताले पर सील लगा दी गई और यह आज भी यथावत है। साल 2002 में मंदिर के तत्कालीन रिसीवर वीरेंद्र कुमार त्यागी को कई सेवायतों के द्वारा हस्ताक्षरित ज्ञापन देकर तोषाखाने को खोलने का आग्रह किया गया। इसके बाद साल 2004 में मंदिर प्रशासन ने गोस्वामीगणों के निवेदन पर पुनः तोषाखाना खोलने के कानूनी प्रयास किए, हालांकि वह असफल साबित हुए। बताया जाता है कि साल 1971 मंदिर कमेटी के अध्यक्ष प्यारेलाल गोयल के नेतृत्व में आखिरी बार खोले गए तोषखाने में से अत्यंत कीमती आभूषण, गहने आदि निकालने के बाद एक सूची बनाकर बक्से में सील बंद कर मथुरा के भूतेश्वर स्थित स्टेट बैंक में जमा करवा दिए गए थे। इस सूची की प्रतिलिपि समिति के 7 सदस्यों को मिली थी। उसके बाद से उस बक्से को वापस लाने का प्रयास कभी किया ही नहीं गया। 

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