महामारी के दौरान तमाम रिपोर्टर्स, कई गुमनाम लोग, अलग-अलग देशों से स्वतंत्र रूप से काम कर रहे लोगों ने अस्पष्ट दस्तावेजों को जोड़ा, सूचनाओं को एकत्र किया और कोविड वायरस के संबंध में बड़ी सूचनाएं दी। इन लोगों ने खुद को DRASTIC ग्रुप कहा। डिसेंट्रलाइज्ड रेडिकल ऑटोनामस सर्च टीम इन्वेस्टिगेटिंग कोविड।
वाशिंगटन। कोरोना वायरस के चीन के वुहान की एक प्रयोगशाला से लीक होने के सिद्धांत को अधिकतर लोगों ने खारिज कर दिया था। लेकिन राष्ट्रपति जो बाइडेन के खुफिया एजेंसियों को तीन महीने में जांच करने के आदेश के बाद अब सब कोई इसको गंभीरता से लेने लगा है। हालांकि, वुहान लैब की साजिश का खुलासा करने वाले वैज्ञानिक, पत्रकार या जासूस नहीं हैं बल्कि शौकिया खोज करने वालों का एक समूह है जिसके पास जिज्ञासा है और इंटरनेट पर समय बिताने की इच्छा है। महामारी के दौरान तमाम रिपोर्टर्स, कई गुमनाम लोग, अलग-अलग देशों से स्वतंत्र रूप से काम कर रहे लोगों ने अस्पष्ट दस्तावेजों को जोड़ा, सूचनाओं को एकत्र किया और कोविड वायरस के संबंध में बड़ी सूचनाएं दी। इन लोगों ने खुद को DRASTIC ग्रुप कहा। डिसेंट्रलाइज्ड रेडिकल ऑटोनामस सर्च टीम इन्वेस्टिगेटिंग कोविड।
‘न्यूजविक’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, लंबे समय तक ड्रास्टिक की खोज ट्विटर की अजीब दुनिया तक ही सीमित रही और इनको शरारती काम करने वाला माना जाता रहा। हालांकि, शुरूआती असहमतियों के बाद इनको कई पेशेवर वैज्ञानिकों और पत्रकारों ने इनका अनुसरण करना शुरू कर दिया।
अनजाने में शुरू की सदी की सबसे बड़ी स्टोरी की पड़ताल
DRASTIC समूह ने कोविड-19 के वायरस और वुहान लैब के संबंधों पर पड़ताल शुरू की। उसने हमको विभिन्न साक्ष्यों के माध्यम से बताया कि वुहान इंस्टीट्यूट आॅफ वायरोलाॅजी में कोरोना वायरस का संग्रह बना रहा था। इसके लिए उसने गुफाओं से चमगादड़ों को एकत्र किया था। यह साल 2012 की बात थी जब सार्स-2 कोविड वायरस जिस खदान से आया था वहां तीन मजदूर संदिग्ध परिस्थितियों में मरे थे। क्योंकि बिना सुरक्षा प्रोटोकाॅल का पालन किए हुए वायरस पर काम हो रहा था ताकि इस रिसर्च की बात दुनिया से छुपाई रखी जा सके। हालांकि, पैनडेमिक के हफ्तों पहले वुहानन मार्केट से वायरस के फैलने की बात हम जानते हैं। लेकिन इन सब के बाद भी ‘लैब लीक सिद्धांत’ प्रूव नहीं हो पाया। लेकिन ड्रास्टिक (DRASTIC) समूह ने सबूतों-दस्तावेजों के आधार पर पूरी पड़ताल की। शायद यूएस या अन्य देश भी अपने इन्वेस्टिगेशन में चीन की मदद के बिना ऐसा कर पाएं। लेकिन अगर यूएस ऐसा कर पाता है तो यह 21वीं सदी की सबसे बड़ी स्टोरी होगी जिसे शौकिया लोगों के एक छोटे से समूह ने ब्रेक किया है।
अजीब संयोग
कोविड के शुरू होने के दौरान ही भारत का एक व्यक्ति जो ट्वीटर पर खुद को सीकर (The Seeker) बताता है, ने कहा कि वायरस जंगली जानवरों से मनुष्यों में वुहान के वेट मार्केट से आया था। 27 मार्च के ट्वीट में उसने कहा कि कोई भी अपने माता-पिता या दादी और दादाजी को एक विदेशी पशु बाजार से आए एक बेवकूफ वायरस से मरते नहीं देखना चाहता। सीकर ने ऐसा इसलिए माना क्योंकि प्रमुख वैज्ञानिक ऐसा मानते थे।
इन वैज्ञानिकों में प्रमुख एक गैर-लाभकारी अनुसंधान समूह इकोहेल्थ एलायंस के अध्यक्ष पीटर दासजक नामक एक वायरोलाॅजिस्ट भी था। दासजक ने महामारी पैदा करने की क्षमता वाले प्राकृतिक वायरस का सर्वेक्षण करने के लिए एक बड़ा अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम चलाया। दासजक वर्षों से वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के निदेशक शी झेंगली और एक प्रसिद्ध बैट वायरोलॉजिस्ट के साथ सहयोग कर रहे था। दासजक ने शी के साथ लगभग एक दर्जन पत्र-पत्रिकाओं का सह-लेखन किया। दोनों ने इस कार्यक्रम के लिए यूएसए से 600,000 यू.एस. डाॅलर ग्रांट भी लिया। लेकिन जब दुनिया में कोरोना वायरस से महामारी फैली तो वुहान लैब पर अटकलें लगाई जाने लगी। लेकिन द लैंसेट में 19 फरवरी 2020 को दासजक समेत 26 वैज्ञानिकों के समूह ने लैब निर्मित वायरस की थ्योरी को नकार दिया था।
दासजक के झांसे में आ गई पूरी दुनिया
अब हम समझ रहे हैं कि दासजक ने लैब लीक थ्योरी पर पर्दा डालने के लिए पूरी कहानी तैयार की और अपने साथी वैज्ञानिकों से लैब निर्मित वायरस की थ्योरी को खारिज कराया। वैज्ञानिकों के समूह के खारिज किए जाने वाले लेटर पर षडयंत्र के तहत दासजक ने अपनी कंपनी आदि का लोगो या नाम नहीं दिया। जिससे यह पत्र मीडिया में तथ्य के रूप में इस्तेमाल किया गया। क्योंकि तबतक दासजक की भूमिका पर सवाल नहीं उठे थे। दासजक उन वैज्ञानिक रिसर्च पर भी अटैक करता था जिसमें लैब निर्मित वायरस होने की आशंका जताई जा रही थी। हालांकि, इस दौरान किसी भी मीडिया समूह या वैज्ञानिक समूह ने दासजक की भूमिका पर सवाल नहीं उठाए। अलबत्ता डोनाल्ड ट्रंप ने उसका अनजाने में साथ ही दिया क्योंकि जो सवाल वैज्ञानिक सिद्धांतों के आधार पर विशेषज्ञों द्वारा पूछे जाने चाहिए थे वह सवाल उन्होंने राजनीतिक रुप से उठा दिया। जिससे मामला और दब गया।
ट्रम्प प्रशासन ने इकोहेल्थ एलायंस के एग्रीमेंट्स को रद कर दिया जिसने नए वायरस के रिसर्च पर लाखों डाॅलर खर्च किए, तो कुछ ही देर में दासजक को दक्षिणपंथी साजिश का शिकार बताते हुए हीरो बना दिया गया। और दुश्मन का दुश्मन दोस्त वाली थ्योरी पर काम होने लगा जिससे लैब थ्योरी के दबने में और मदद मिली।
सेंसरशिप की एक लहर
हालांकि, 2020 की शुरुआत तक, द सीकर उस दृष्टिकोण पर सवाल उठाने लगा था। वह उन लोगों से बातचीत करने लगा था जो यह मानते थे कि वायरस की लैब थ्योरी में कुछ सच्चाई है। इसके बाद एक महत्वपूर्ण लीड तब मिली जब एक कनाडाई उद्यमी यूरी डिगिन ने आरएटीजी13 (RaTG13) नामक एक वायरस के बारे में शी झेंगली के रिसर्च पेपर से जाना जो ‘नेचर’ में फरवरी में छपा था। शी झेंगली के पेपर में सार्स-कोविडवायरस-2 के बारे में बताया गया था जो सार्स से अलग था। सार्स वायरस ने 2002-2004 में 774 लोगों को मारा था। हालांकि, अपने पेपर में, शी ने आरएटीजी13 वायरस भी पेश किया जो कि सार्स-कोव-2 से आनुवंशिक रुप से समान था। लेकिन पेपर में यह साफ नहीं था कि आरएटीजी13 (RaTG13) वायरस आया कहां से था। बस इतना कहा गया था कि यह दक्षिणी चीन के युन्नान प्रांत के एक चमगादड़ में पाया गया था। कागज ने डिगिन के संदेह को जगाया। उन्होंने सोचा कि क्या सार्स-कोव-2 का आरएटीजी13 से आनुवंशिक रिलेशन प्रयोगशाला में मिलान के दौरान पता चला होगा। सीकर ने रेडिट पर डीगिन के सिद्धांत को पोस्ट किया। इसके बाद तुरंत उसके खाते को स्थायी रूप से निलंबित कर दिया।
सेंसरशिप के उस शुरुआती झटके ने सीकर की जिज्ञासा को बढ़ा दिया। फिर उसने इस मुद्दे पर बहस के लिए कुछ जिज्ञासु लोगों का एक जीवंत ग्रुप मिला। यह उदार लोगों का ग्रुप था। इसमें राॅसाना सेग्रेटो नाम के इन्नसब्रंक यूनिवर्सिटी के इंटरप्रेनर, इंजीनियर्स, और एक माइक्रोबायोलॉजिस्ट थे। उनमें से कोई भी एक दूसरे को पहले से नहीं जानता था। किसी को भी कोविड-19 की उत्पत्ति के पारंपरिक ज्ञान का कोई मतलब नहीं था। सभी एक मंच पर आए। इस ग्रुप को बिली बोसिकसन नाम के एशिया के किसी कोने में रहने वाले किसी समन्वयक से चलाया गया। तबतक वायरस हजारों जान ले रहा था। सीकर बताता है कि नागरिक कर्तव्यों के नाते हमको यह पता लगाना था और दुनिया को वायरस की उत्पत्ति जानने का हक था।
खोज का सबसे बड़ा आधार बना इंटरनेट
हम लोगों ने आरएटीजी13(RaTG13) से पड़ताल करने का मन बनाया ताकि किसी भी पेपर या वुहान लैब के रिसर्च से कुछ तो क्लू मिल सकेगा। समूह के लोगों ने डब्ल्यूआईवी के पुराने पेपर्स इंटरनेट पर खंगालने शुरू कर दिए। फिर रियल टाइम में इस समूह ने डेटा बेस्ड रिसर्च के साथ अपनी परिकल्पनाओं का परीक्षण कर दुनिया के सामने रखने लायक साक्ष्य जुटा लिए थे। आरएटीजी 13 का जेनेटिक सिक्वेंस शी झेंगली द्वारा वर्षों पहले लिखे गए एक पेपर के हिस्से के रूप में पोस्ट किए गए आनुवंशिक कोड के एक छोटे से टुकड़े से मेल खाता था। युन्नान के चमगादड़ में मिले वायरस से यह कोड आया था। फिर पुराने अखबारों में विवरण को टीम ने खंगाला। फिर यह साफ हुआ कि आरएजीटी 13 वायरस युन्नान प्रांत के मोजियान काउंटी के खदान से यह वायरस आया था। यह वायरस छह लोगों में विकसित किया गया था जिसमें तीन लोगों की मौत हो गई थी। यह बात साल 2012 की है। समूह ने सोचा कि शायद यह पहला केस था जिसमें आरएजीटी 13 या उससे मिलते जुलते वायरस जोकि सार्स-कोविड वायरस-2 से रिलेटेड था, से संक्रमण हुआ।
झेंगली ने भी स्वीकार कि खदान में किया रिसर्च
इसके बाद इस खोजी समूह ने एक दूसरी बात का पता लगाया कि साइंटिफिक अमेरिकन के एक प्रोफाइल में शी झेंगली ने मोजियांग काउंटी के एक खदान में रिसर्च की बात स्वीकार की है। यह वही खदान है जहां तीन मजदूर मरे थे। लेकिन उन्होंने आरएटीजी 13 से कनेक्ट करने से हमेशा परहेज किया। बताया कि फंगस की वजह से तीन मजदूर मारे गए। हालांकि, खोजी समूह को इस तथ्य पर संदेह बना रहा। इनको संदेह था कि खनिकों को फंगस ने नहीं बल्कि सार्स जैसे वायरस ने मारा है और किन्हीं कारण से डब्ल्यूआईवी उस तथ्य को छिपाने की कोशिश कर रहा था। लेकिन इनके पास इसको साबित करने का कोई तरीका नहीं था।
अब इसका पता लगाने के लिए समूह ने आनलाइन रिसर्च से जानकारियां हासिल करने की कोशिश की। इन लोगों को अकादमिक जर्नल का एक चीनी डेटाबेस मिला जिसका नाम था सीएनकेआई। फिर इन लोगों ने गूगल ट्रांसलेट से सार्स, मोजियांग, डब्ल्यूआईवी जैसे की-वर्ड डालकर चीनी भाषा के हजारों शोधपत्रों को खंगाला।
कई हफ्तों की दिन-रात की मेहनत ने मंजिल को किया आसान
कई हफ्तों की मेहनत के बाद उनको एक महत्वपूर्ण जानकारी हाथ लगी। कुनामिंग मेडिकल यूनिवर्सिटी के एक छात्र द्वारा 2013 में लिखी गई अपनी 60 पेजों की थीसिस। विषय था ‘अज्ञात वायरस के कारण गंभीर निमोनिया के साथ 6 रोगियों का विश्लेषण’। इस थीसिस में खदान में मरे छह मजदूरों की स्थितियों और चरण-दर-चरण उपचार का वर्णन था। इसकी वजह बताई गई थी चीनी घोडे़ की नाल वाला चमगादड़ या अन्य चमगादड़। सीकर ने 18 मई, 2020 को लिंक को छोड़ दिया। फिर चीनी सीडीसी में एक पीएचडी छात्र की दूसरी थीसिस के साथ पहले में बहुत सारी जानकारी की पुष्टि की। पता चला कि चार खनिकों ने सार्स जैसे संक्रमण से एंटीबॉडी के लिए पाॅजिटिव किए गए थे। और डब्ल्यूआईवी ने इसका परीक्षण किया था। दावा किया गया है कि द सीकर द्वारा थीसिस पोस्ट करने के कुछ ही समय बाद, चीन ने सीएनकेआई पर एक्सेस कंट्रोल बदल दिया ताकि कोई भी इस तरह की खोज दोबारा न कर सके।
वायरस वुहान लैब जा रहा था और मीडिया चुप्पी साधी रही
लेकिन सार्स जैसा वायरस अगर 2012 में पाया गया और डब्ल्यूआईवी लोगों को और अधिक नमूनों के लिए खदान में वापस भेज रहा था। फिर उन नमूनों को वुहान ला रहा था तो वह सुर्खियां बननी चाहिए थी लेकिन एक भी सिंगल काॅलम खबर हफ्तों तक नहीं आई। कुछ स्टोरी यूके में छपीं। लेकिन अमेरिकी मीडिया ने पास दे दिया। हालांकि, 2020 में बीबीसी के संवाददाता जाॅन सुडवर्थ ने मोजियांग माइन की मिस्ट्री को खोजने की पहली कोशिश की लेकिन उनके रास्ते को ट्रक और गार्ड्स से ब्लाॅक कर दिया गया। एपी ने भी ऐसा किया लेकिन सफल नहीं हुआ। एनबीअी, सीबीएस, टूडे सहित कईयों ने फिर कोशिशें की लेकिन कोई सफल नहीं हुआ। तरह तरह की कहानियां बताकर उनको रोक दिया गया और खदान की सीक्रेसी बनी रही।
ग्रुप को सब-ग्रुप में बांटकर अलग-अलग फोकस किया
हालांकि, मई 2020 तक मोजियांग माइन पर कहीं किसी का फोकस नहीं था। लेकिन ड्रास्टिक समूह ने इस पर रिसर्च किया। खोजी समूह के समन्वयक ने कई सब ग्रुप बना दिए। एक मेंबर इस मिला फ्रांसिस डी एसिस डी रिबेरा, जोकि मैड्रिड में डेटा साइंटिस्ट है, ने डब्ल्यूआईवी के वायरस हंटिंग प्रोजेक्ट्स को खंगालना शुरू किया। सीकर और रिबेरा ने मिलकर पता लगाया कि क्या आरएटीजी 13 के मिलने के बाद सात सालों तक वुहान लैब इस पर रिसर्च करता रहा। लेकिन पीटर दासजक ने इससे इनकार किया। उसने बताया कि वायरस मूल सार्स वायरस के समान नहीं था इसलिए उसे फ्रीजर में रख दिया गया था।
9 वायरस मिले थे मोजियांग माइन में
हालांकि, खोजी समूह के रिबेरा ने यह पता लगा लिया कि आरएटीजी 13 पर वुहान लैब में 2017-2018 में रिसर्च हुआ। मोजियांग माइन में नौ वायरस मिले थे लेकिन एक सार्स-कोविड वायरस-2 के समान नहीं था। इसको फरवरी 2021 में शी झेंगली ने एक रिसर्च पेपर में स्वीकार किया है। चूंकि, वुहान लैब अपने वायरस कलेक्शन का डेटा सर्वर पर आनलाइन रखता है लेकिन जनवरी 2021 में ऐसा नहीं किया। इसके पीछे शी झेंगली का तर्क है कि साइबर अटैक की वजह से ऐसा नहीं किया गया। हालांकि, ड्रास्टिक टीम ने पता लगाया कि लैब का डेटा बेस सर्वर सितंबर 2019 से ही डाउन कर दिया गया था। यही वह समय है जब महामारी की शुरूआत हो रही थी। यही नहीं ग्रुप ने यह भी पता लगाया कि वुहान लैब कई प्रकार के ग्रांट सार्स जैसे वायरस के प्रभाव को जानने के लिए पा रहे थे। हालांकि, यह सारे खोज कुछ खोजी लोगों के समूह ने किए हैं। उन्होंने दर्जनों दिन की मेहनत हजारों घंटों को गंवाकर कुछ कड़ियां जोड़ी है। अगर अमेरिकी जांच एजेंसी वुहान लैब के रोल पर कुछ पता लगा पाती है तो इस समूह को सदी की सबसे बड़ी स्टोरी ब्रेक करने का श्रेय दिया जा सकता है।
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