सार
लता मंगेशकर कभी अपना गाना नहीं सुनती थी। उन्हें अपना गाना सुनने में डर लगता था। लता मंगेशकर को लगता था कि वो अपने गाने को और बेहतर गा सकती थी।
मुंबई. लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) अब हमारे बीच नहीं हैं। 92 साल की उम्र में स्वर कोकिला ने मुंबई के एक अस्पताल में अंतिम सांस लीं। भले ही उनका शरीर अब हमारे बीच नहीं है, लेकिन वो गानों के जरिए हमेशा हमारे बीच जिंदा रहेंगी। गायिकी में लता मंगेशकर ने पूरी जिंदगी गुजार दी थीं। 4 साल की उम्र से संगीत की साधना करने वाली लता जी का आखिरी वक्त भी इसी तरह गुजरा। आखिरी पलों में भी वो संगीत को अपने अंदर उतारती दिखाई दीं।
लता मंगेशकर के जीवनीकार हरीश भिमानी ने एक चैनल को दिए गए इंटरव्यू में उनके आखिरी पलों के बारे में बताया। हरीश भिमानी ने बताया कि आखिरी पलों में लता मंगेशकर अपने पिता जी के गाने को सुन रही थी। उन्होंने बताया कि लता मंगेशकर की दो दिन पहले जब हालत ठीक हुई थी तो उन्होंने हेडफोन मंगवाया। वो अपने पिता दीनानाथ मंगेशकर के गाने सुन रही थी। उनके पिता दीनानाथ मंगेशकर नाटक में गाया करते थे। पिता जी के गाने को सुनकर वो पूरी तरह उसमें डूब गई। उसमें वो सुर मिला रही थी। ऐसा लग रहा था कि वो अपने पिता जी से संवाद कर रही हैं। डॉक्टर उन्हें मास्क हटाने से मना करते। लेकिन बीच-बीच में वो गाने के आवाज के साथ अपनी आवाज मिलाती रहीं। उन्होंने आगे कहा कि ऐसा लग रहा था कि वो उनसे सीख रही हैं। इसके बाद वो चुप हो गई। इसके बाद वो कुछ नहीं बोलीं।'
लता मंगेशकर अपना गाना नहीं सुनती थी कभी
हरीश भिमानी ने आगे बताया कि लता मंगेशकर कभी अपना गाना नहीं सुनती थी। उन्हें अपना गाना सुनने में डर लगता था। लता मंगेशकर को लगता था कि वो अपने गाने को और बेहतर गा सकती थी। वो जीवन भर खुद को छात्रा ही माना। वो जीवन भर खुद से सीखती रहीं। पूरी जिंदगी उन्होंने संगीत के लिए दे दीं।
गुलजार लताजी को याद करके हुए भावुक
गीतकार गुलजार ने भी लता मंगेशकर को श्रद्धांजलि दी। एक चैनल से बातचीत में वो लताजी को याद करके भावुक हो गए। लता जी को याद करते हुए उन्होंने बताया कि वो बहुत दिलदार इंसान थी। हर किसी के लिए वो गिफ्ट लेकर आती थीं।टेक्नीशियन से लेकर सेट पर काम करने वाले हर शख्स को कुछ ना कुछ तोहफा देती रहती थीं। उन्हें पता था कि मुझे बुद्ध की मूर्ति रखना पसंद है। वो जब भी मुझसे मिलती बुद्ध की मूर्ति तोहफे में देती थी। यहां तक की कही वो जाती और बुद्ध की मूर्ति दिखाई देती तो वो मेरे लिए लेकर मुझे भेज देती थीं। वो कभी किसी को जूनियर होने का एहसास नहीं कराया।
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