सार
लोन लेने के लिए आपका क्रेडिट स्कोर ठीक रहना ही काफी नहीं है। कई फैक्टर हैं, जिसे बैंक चेक करते हैं। बैंक में लोन लेने वाले के प्रोफाइल से लेकर उसके अकाउंट का डिटेल तक जांच किया जाता है।
बिजनेस डेस्कः अक्सर लोगों को लोन लेने की जरूरत पड़ जाती है। कई तरह के कामों के लिए लोग लोन लेते हैं। लोन की कई कैटेगरी है। कुछ लोग घर के लिए लोन लेते हैं, तो कुछ कार के लिए। बच्चों की उच्च शिक्षा के लिए भी लोग लोन लेते हैं। वहीं, बिजनेस के लिए भी लोगों को लोन लेने की जरूरत पड़ती है। कोई भी लोन मंजूर करने के पहले बैंक कई बातों पर ध्यान देते हैं। आम तौर पर लोग सोचते हैं कि अगर उनका क्रेडिट स्कोर सही हो, तो लोन आसानी से मंजूर हो जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं है। क्रेडिट स्कोर ज्यादा होने से लोन अप्रूव होने की संभावना ज्यादा रहती है, लेकिन इसके अलावा दूसरे फैक्टर भी मायने रखते हैं।
लोन लेने वाले की उम्र
बैंक लोन लेने वाले की उम्र का ध्यान खास तौर पर रखते हैं। बैंक लोन के लिए अप्लाई करने वाले की उम्र के साथ लोन की अवधि को भी देखते हैं और इसका मिलान करते हैं। जो लोग अधिकतम और न्यूनतम उम्र के ब्रैकेट में नहीं आते, उनका लोन स्वीकृत नहीं किया जाता।
रिटायरमेंट के करीब पहुंचे लोग
ऐसे लोगों को भी लोन लेने में परेशानी होती है, जो रिटायरमेंट की उम्र के करीब पहुंच चुके हैं। लोन देने वालों की प्राथमिकता यह होती है कि वे ऐसे व्यक्ति को लोन दें, जो रिटायरमेंट तक उसकी पेमेंट कर दे। इसलिए इस उम्र को लोगों को एक को-एप्लिकेंट अपने साथ जोड़ना चाहिए।
न्यूनतम आय
लोन अप्रूव होने में तब भी दिक्कत होती है, जब व्यक्ति कर्ज देने वाले बैंक या वित्तीय संस्थान द्वारा तय की गई न्यूनतम आय के मापदंड को पूरा नहीं कर पाता है। न्यूनतम आय के मापदंड मेट्रो, शहरी, सेमी-अर्बन और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए अलग-अलग होते हैं।
जॉब प्रोफाइल
इनकम के अलावा लोन देने वाले बैंक इस बात को भी देखते हैं कि आपकी नौकरी किस तरह की है। वे नौकरी की स्थिरता और नियोक्ता की प्रोफाइल को भी देखते हैं। बैंक सरकारी, कॉरपोरेट या मल्टीनेशनल कंपनियों के कर्मचारियों को आसानी से लोन दे देते हैं। इसके साथ जिन आवेदकों की जॉब प्रोफाइल में रिस्क फैक्टर जुड़ा हो, उन्हें लोन मिलने की संभावना कम होती है। जो लोग बार-बार नौकरी बदलते हैं, उन्हें भी लोन लेने में मुश्किल हो सकती है।
लोन रिकवरी के अनुपात की होती है जांच
फिक्स्ड ऑब्लिगेशन टू इनकम रेश्यो (FOIR) का मतलब कुल आय का वह अनुपात है, जो कर्ज के रिपेमेंट जैसे लोन ईएमआई, क्रेडिट कार्ड बकाया वगैरह पर खर्च किया जा रहा है। कर्जदाता आम तौर पर उन्हें ही प्राथमिकता देते हैं, जिनका FOIR 40 फीसदी से 50 फीसदी के बीच रहता है। इससे ज्यादा होने पर लोन एप्लिकेशन को रिजेक्ट किया जा सकता है।
लोन गारंटर का सवाल
अगर कोई किसी व्यक्ति के लोन का गारंटर बनता है, तो लोन के भुगतान लिए समान तौर पर जिम्मेदार बन जाता है। प्राइमरी कर्जदार के डिफॉल्ट करने पर बकाया राशि के रिपेमेंट की जिम्मेदारी गारंटर की हो जाती है। इसलिए लोन गारंटर बनने से पहले अपनी शॉर्ट और मिड टर्म वित्तीय जरूरतों को देख लेना जरूरी होता है।
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