सार
भारत 2025 तक ब्रिटेन को पीछे छोड़ कर फिर दुनिया की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा और 2030 तक तीसरे स्थान पर पहुंच जाएगा। यह बात सेंटर फॉर इकोनॉमिक्स एंड बिजनेस रिसर्च (CEBR) की रिपोर्ट में कही गई है।
बिजनेस डेस्क। भारत 2025 तक ब्रिटेन को पीछे छोड़ कर फिर दुनिया की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा और 2030 तक तीसरे स्थान पर पहुंच जाएगा। यह बात सेंटर फॉर इकोनॉमिक्स एंड बिजनेस रिसर्च (CEBR) की रिपोर्ट में कही गई है। बता दें कि कोरोना महामारी (Covid-19 Pandemic) के दौर में भारतीय अर्थव्यवस्था एक पायदान नीचे खिसक कर छठे स्थान पर आ गई है। वहीं, 2019 में भारतीय अर्थव्यवस्था ब्रिटेन से आगे निकल कर पांचवें स्थान पर पहुंच गई थी।
रिपोर्ट में कही गई यह बात
ब्रिटेन के प्रमुख संस्थान सेंटर फॉर इकोनॉमिक्स एंड बिजनेस रिसर्च (CEBR) की सालाना रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोना महामारी की वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था कुछ लड़खड़ा गई है। यही कारण है कि साल 2019 में ब्रिटेन से आगे रहने वाली भारतीय अर्थव्यवस्था इस साल उससे पीछे हो गई। रिपोर्ट में यह उम्मीद जताई गई है कि 2024 तक ब्रिटेन भारत से आगे रह सकता है, लेकिन उसके बाद भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी से आगे बढ़ेगी।
रुपए की कमजोरी है वजह
रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसा लगता है कि रुपए के कमजोर होने से 2020 में ब्रिटेन अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में भारत से आगे निकल गया। रिपोर्ट में अनुमान जताया गया है कि 2021 में भारत की अर्थव्यवस्था के विकास की दर 9 फीसदी और 2022 में 7 फीसदी रहेगी। सेंटर फॉर इकोनॉमिक्स एंड बिजनेस रिसर्च (CEBR) का कहना है कि यह स्वाभाविक है कि भारत जैसे-जैसे आर्थिक रूप से ज्यादा विकसित होगा, वृद्धि दर धीमी होगी और 2035 तक यह 5.8 फीसदी पर आ जाएगी।
जर्मनी और जापान से आगे निकल जाएगा भारत
रिपोर्ट में जताए गए आर्थिक विकास के इस अनुमान के मुताबिक, अर्थव्यवस्था के मामले में भारत 2025 में ब्रिटेन से आगे निकल जाएगा। वहीं, 2027 में भारत जर्मनी से और 2030 में जापान से आगे निकल सकता है। रिपोर्ट में अनुमान व्यक्त किया गया है कि चीन 2028 में अमेरिका से आगे निकल कर दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हो जाएगा। सेंटर फॉर इकोनॉमिक्स एंड बिजनेस रिसर्च (CEBR) की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की गति कोरोनावायरस महामारी के पहले से ही धीमी पड़ने लगी थी। 2019 में आर्थिक विकास दर 4.2 फीसदी रह गयी थी। यह 10 साल की न्यूनतम वृद्धि थी।