Babu Jagjivan Ram Jayanti 2025: बाबू जगजीवन राम, 'बाबूजी' के नाम से मशहूर, स्वतंत्रता सेनानी और सामाजिक न्याय के प्रतीक थे। दलितों के अधिकारों के लिए उन्होंने जीवनभर संघर्ष किया। आज 5 अप्रैल को उनकी जयंती पर पूरा देश उन्हें याद कर रहा है। जानिए

Babu Jagjivan Ram Birth Anniversary: हर साल 5 अप्रैल को देश एक ऐसे महानायक को याद करता है, जिसने जीवनभर समाज के सबसे वंचित वर्गों के लिए आवाज उठाई। बाबू जगजीवन राम, जिन्हें पूरे सम्मान के साथ 'बाबूजी' कहा जाता है, केवल स्वतंत्रता सेनानी ही नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय के मजबूत स्तंभ भी थे। उन्होंने न सिर्फ आजादी की लड़ाई में भाग लिया, बल्कि स्वतंत्र भारत में दलित समुदाय को बराबरी दिलाने के लिए ऐतिहासिक प्रयास किए। उनकी जयंती पर आज पूरा देश उन्हें श्रद्धांजलि देता है और उनके योगदान को याद करता है, जिसने भारत को एक समतामूलक समाज की दिशा में आगे बढ़ाया। जानिए बाबू जगजीवन राम के जीवन से जुड़ी रोचक बातें।

दलित आइकन बाबू जगजीवन राम

भारत की आजादी की लड़ाई से लेकर सामाजिक समानता की पैरवी तक, बाबू जगजीवन राम का जीवन संघर्ष और सेवा की मिसाल है। उन्हें लोग सम्मानपूर्वक "बाबूजी" कहकर बुलाते हैं। उनका जन्म 5 अप्रैल 1908 को बिहार के चंदवा गांव में हुआ था। उनके पिता शोभी राम और माता वसंती देवी थीं।

जातीय भेदभाव के बावजूद जगजीवन राम शिक्षा में बढ़े आगे

बचपन में ही बाबूजी ने समाज में छुआछूत और जातीय भेदभाव का सामना किया, लेकिन मां के सहयोग से उन्होंने हार नहीं मानी। उन्होंने मैट्रिक परीक्षा पास की और फिर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से इंटर साइंस की पढ़ाई की। इसके बाद कोलकाता विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की।

छात्र आंदोलन से शुरू हुआ था जगजीवन राम का सार्वजनिक जीवन

बाबू जगजीवन राम ने अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत एक छात्र नेता और स्वतंत्रता सेनानी के रूप में की। 1935 में उन्होंने इंद्राणी देवी से विवाह किया, जो स्वयं भी स्वतंत्रता सेनानी और शिक्षाविद थीं।

Babu Jagjivan Ram अछूतों के अधिकारों की लड़ाई में रहे सबसे आगे

1935 में बाबूजी ने 'ऑल इंडिया डिप्रेस्ड क्लासेस लीग' की स्थापना की, जिसका उद्देश्य अछूत माने जाने वाले वर्गों को बराबरी का हक दिलाना था। यह संगठन सामाजिक न्याय की दिशा में एक बड़ा कदम था।

बाबू जगजीवन राम का सरकारी जिम्मेदारियों में शानदार योगदान

बाबू जगजीवन राम ने पंडित नेहरू और इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल में श्रम मंत्री, संचार मंत्री जैसे कई अहम पदों पर काम किया। 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान वे देश के रक्षा मंत्री थे और उनकी भूमिका निर्णायक रही।

बाबू जगजीवन राम ने इमरजेंसी के विरोध में छोड़ दिया था कांग्रेस का साथ

1977 में उन्होंने इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल के विरोध में कांग्रेस छोड़ दी और 'कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी' नामक नई पार्टी बनाई। बाद में वे जनता पार्टी के साथ गठबंधन में शामिल हुए और देश के उप प्रधानमंत्री बने।

बाबू जगजीवन राम का संसद में 50 साल तक लगातार मौजूदगी का रिकॉर्ड

बाबू जगजीवन राम ने 1936 से 1986 तक यानी लगातार 50 वर्षों तक संसद में सेवा दी। वे भारत के सबसे लंबे समय तक कैबिनेट मंत्री रहने वाले नेता भी हैं। उन्होंने 30 वर्षों तक विभिन्न मंत्रालयों में योगदान दिया।

बाबू जगजीवन राम की बेटी मीरा कुमार ने भी बढ़ाया नाम

उनकी बेटी मीरा कुमार भी एक जानी-मानी राजनेता और पूर्व राजनयिक हैं। वे 2009 से 2014 तक लोकसभा अध्यक्ष रहीं और भारत की पहली महिला स्पीकर बनीं।

‘समता स्थल’ में बाबू जगजीवन राम की अमर स्मृति

6 जुलाई 1986 को बाबू जगजीवन राम का निधन हुआ। उनकी याद में दिल्ली में उनकी समाधि बनाई गई, जिसे “समता स्थल” यानी समानता का स्थान कहा जाता है। यह स्थान आज भी उनके आदर्शों की गवाही देता है।