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अंबेडकर जयंती 2023 : बड़ौदा राजपरिवार से वजीफा पाकर विदेश गए, लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से मास्टर्स की डिग्री
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अंबेडकर का शुरुआती जीवन
संविधान निर्माता और भारत रत्न बाबा साहब भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल, 1891 मध्यप्रदेश के महू में हुआ था। पिता रामजी मालोजी सकपाल और माता भीमाबाई थीं। जब बाबा साहब की उम्र 15 साल थी, तभी उनकी शादी 9 साल की रमाबाई से परिवार ने कर दी थी।
9वीं क्लास में अंबेडकर उपनाम अपनाया
बाबा साहब अपने इलाके से इकलौते दलित थे, जो परीक्षाएं पास करते हुए हाईस्कूल तक पहुंचे। इस बीच उनके सामने कई चुनौतियां आई लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। दलित होने की वजह से उन्हें कई बार उपेक्षा का शिकार भी होना पड़ा. 9वीं क्लास में एक टीचर ने उन्हें अंबेडकर उपनाम अपनाने की सलाह दी थी।
बाबा साहब अंबेडकर का ग्रेजुएशन
1897 में उन्हें बॉम्बे के एलफिंस्टन हाईस्कूल में एडमिशन मिला। यहां दाखिला पाने वाले बाबा साहब इकलौते अस्पृश्य थे। इसके बाद 1913 में उन्होंने बॉम्बे यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र और राजनीति शास्त्र में ग्रेजुएशन की डिग्री ली और पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए अमेरिका के कोलंबिया यूनिवर्सिटी पहुंचे।
अंबेडकर का पोस्ट ग्रेजुएशन
बाबा साहब को कोलंबिया यूनिवर्सिटी में एडमिशन के लिए बड़ौदा राजपरिवार से वजीफा भी मिला था। इसी की मदद से वे विदेश जा सके थे। लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से उन्होंने मास्टर की डिग्री हासिल की।
आजाद भारत के पहले कानून मंत्री
बाबा साहब अंबेडकर जब बॉम्बे हाईकोर्ट में प्रैक्टिस कर रहे थे, तब उन्होंने दलित समाज को आगे ले जाने के लिए जमकर काम किया। 1936 में उनका सबसे पॉपुलर लेख 'जाति का बीजनाश' भी आया। भारत की आजादी के बाद 1947 में बाबा साबह देश के पहले कानून मंत्री बने।
संविधान सभा की ड्राफ्टिंग समिति के चेयरमैन
29 अगस्त, 1947 में बाबा साहब को संविधान सभा की ड्राफ्टिंग समिति का चेयरमैन बनाया गया था। दो साल बाद 26 नवंबर, 1949 को इसी सभा ने संविधान को अपनाया था। संविधान निर्माण में उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया।
अंबेडकर का कानून मंत्री पद से इस्तीफा
साल 1951 की बात है, जब संसद में बाबा साहब ने महिलाओं के संपत्ति में अधिकार की मांग की, लेकिन उनके इस ड्राफ्ट को लेकर देरी की गई, जिससे नाराज होकर उन्होंने कानून मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था।
बाबा साहब अंबेडकर का निधन
अपनी पूरी लाइफ बाबा साहब ने बौद्ध धर्म को काफी करीब से समझा। 1956 में नागपुर में उन्होंने बौद्ध धर्म को स्वीकार किया और उसी साल 6 दिसंबर, 1956 को उनका निधन हो गया।