सार
बिहार के रहने वाले तपेश्वर को पढ़ाई के दौरान आर्थिक समस्या का सामना करना पड़ा, लेकिन अपने माता-पिता के सपोर्ट ने उनकी हिम्मत को टूटने नहीं दिया। जानिए
बिहार के बरगाही के साधारण गांव से भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) में टेक्निकल असिस्टेंट बनने तक तपेश्वर कुमार की सफलता की कहानी दृढ़ संकल्प और विपरीत परिस्थितियों में भी सकारात्मक दृष्टिकोण का प्रमाण है। तपेश्वर के माता-पिता, श्याम बिहारी कुशवाहा और चंद्रावती देवी आर्थिक रूप से कमजोर थे। अपने बेटे को शिक्षा देने के लिए उन्हें कई चुनौतियों का सामना किया। एक दिन ऐसा भी आया जब इस गरीब माता-पिता ने अपने बेटे तपेश्वर के सपनों को पूरा करने के लिए अपनी जमीन गिरवी रख दी।
बिहिया हाई स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास की
तपेश्वर ने अपनी स्कूली पढ़ाई बरगाही गांव के सरकारी स्कूल से पूरी की। 2018 में बिहिया हाई स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास की। फिर उन्होंने पटना न्यू गवर्नमेंट पॉलिटेक्निक कॉलेज से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में अपना डिप्लोमा पूरा किया।
टीचर ने यूट्यूब पर अपोलो मिशन के वीडियो से परिचित कराया
जब तपेश्वर 9वीं कक्षा में थे उनके जीवन में महत्वपूर्ण मोड़ आया। उनके एक शिक्षक ने उन्हें यूट्यूब पर अपोलो मिशन के वीडियो के बारे में बताया। इससे तपेश्वर की स्पेस साइंस में गहरी रुचि जगी और वह स्पेस प्रोग्राम के मामले में भारत के टॉप संस्थान इसरो में शामिल होने का सपना देखने लगे।
मुफ्त ऑनलाइन शिक्षा का विकल्प चुना
आर्थिक परेशानियों का सामना करते हुए, तपेश्वर ने दृढ़ संकल्प के साथ मुफ्त ऑनलाइन शिक्षा का विकल्प चुना जिससे उन्हें अंततः सफलता मिली। उनके माता-पिता ने गांव में 10 कट्ठा जमीन गिरवी रख दी, जिससे उन्हें 40,000 रुपये मिले और इस पैसे से तपेश्वर की एक साल तक पढ़ाई चलती रही। अपने सपने को पूरा करने के लिए, तपेश्वर ने इसरो के लिए टीसीएस परीक्षा दी। कोलकाता में एक लिखित परीक्षा और तमिलनाडु के नागरकोइल में एक स्किल टेस्ट के बाद, उन्हें टेक्निकल असिस्टेंट के रूप में चुना गया। 22 दिसंबर को फाइनल रिजल्ट में उन्हें सफलता मिली।
माता-पिता के अटूट समर्थन के लिए आभार व्यक्त किया
तपेश्वर ने अपने माता-पिता के अटूट सपोर्ट के लिए उनका आभार व्यक्त किया, जिन्होंने उनकी सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके चाचा, नंद जी महतो ने भी उन्हें आर्थिक रूप से पूरी मदद की तपेश्वर की निरंतर शिक्षा सुनिश्चित हो सके इसके लिए जरूरत पड़ने पर उन्होंने भी अपनी जमीन गिरवी रख दी। तपेश्वर कुमार जनवरी के अंत तक इसरो में टेक्निकल असिस्टेंट के रूप में अपनी जर्नी शुरू करते हुए श्रीहरिकोटा, आंध्र प्रदेश में योगदान देने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं।
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