सार

अगर किसी को निराशा है, हताशा है, अभावों और गरीबी से परेशान है, तो रिंकू सिंह राही से मिले। यह बंदा बताएगा कि कम संसाधनों में कैसे सफलता हासिल की जाती है। सपने कैसे पूरे किए जा सकते हैं और तो और जान हथेली पर रखकर ईमानदारी से काम कैसे किया जाता है। 

नई दिल्ली। एक पुरानी कहावत है, जाको राखों साइयां मार सके न कोय। एक और प्रचलित कहावत है- जब-जब जो-जो होना है, तब-तब सो-सो होता है। ये दोनों ही कहावत रिंकू सिंह राही पर खूब फिट बैठती है। जी हां, रिंकू उत्तर प्रदेश सरकार में बतौर पीसीएस अधिकारी रिंकू इस समय हापुड़ जिले में बतौर समाज कल्याण अधिकारी पोस्टेड हैं। मगर बहुत जल्द वह आईएएस की पदवी हासिल करेंगे। ऐसा इसलिए, क्योंकि अलीगढ़ के रहने वाले रिंकू ने कमाल कर दिया है। उन्होंने बीते सोमवार को जारी हुई यूपीएससी-2021 परीक्षा में सफलता हासिल की है। उनकी 683वीं रैंक आई है और अब वे आईएएस हो गए हैं। 

वैसे, किस्मत रिंकू की शुरू से परीक्षा लेती आई है और यह भी गजब है कि रिंकू बेहद शांति और धैर्य के साथ इस परीक्षा को देते हैं और सफलता हासिल कर लेते हैं। उन्होंने अपने जीवन में जितनी चुनौतियों का सामना किया, जितने कष्ट सहे, उतने मजबूत होते गए। इसी का नतीजा है कि वह आज सफलता के ऐसे मुकाम पर हैं, जहां हर युवा पहुंचना चाहता है। 

सौ करोड़ का घोटाला उजागर करने की भारी कीमत चुकाई रिंकू ने 
रिंकू सिंह राही 2008 में मुजफ्फरनगर जिले में समाज कल्याण अधिकारी पद पर थे। सभी जानते थे कि वह बेहद ईमानदार अधिकारी हैं, इसलिए वहां पोस्टिंग होते ही विभाग से जुड़े कई लोगों की सांसें अटक गई थीं। रिंकू ने काम संभाला, तो कुछ गड़बड़ियां दिखीं। जांच लंबी चली। पुख्ता सबूत जुटाए। इसमें समय लगा। 2009 में उन्होंने खुलासा किया कि करीब सौ करोड़ का छात्रवृत्ति घोटाला हुआ है। उनकी काफी मिन्नत की गई, कि इसे सामने न लाएं। जो कीमत हो वो बताएं। मगर रिंकू कहां मानने वाले थे। गरीब जनता का पैसा घोटाला में जाए, उन्हें यह बर्दाश्त नहीं था। 

जान तो बच गई, मगर चेहरा और शरीर बुरी तरह बिगड़ गया 
घोटाला उजागर किया, तो अपने ही विभाग के लोग दुश्मन बन गए। एक दिन ठिकाने लगाने की नीयत से उन्हें सात गोलियां मारी गईं। इस हमले में उनकी जान तो बच गई, मगर एक कान से सुनाई देना बंद हो गया। जबड़ा बुरी टूट गया। एक आंख की रोशनी भी लगभग न के बराबर है। सौ करोड़ का स्कैम एक्सपोज करने के बदले भारी कीमत चुकाई। मगर हिम्मत नहीं हारी। ईमानदारी भी नहीं छोड़ी। उसी तरह आज भी अपने काम में डटे हुए हैं। 

अफसर रहते छात्रों को यूपीएससी की तैयारी कराते, छात्र बोले- आप भी परीक्षा दीजिए  
हमले के बाद जब ठीक हुए तो सरकार ने भदोही जिले में पोस्टिंग दी। इसके बाद कई और जिलों में तैनाती पाई। हापुड़ में जब वे समाज कल्याण अधिकारी थे, तब सरकार ने उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से चलाए जा रहे सिविल कोचिंग संस्थान में निदेशक बना दिया। यहां वे छात्रों को पढ़ाते भी थे और सिविल सर्विस की तैयारी कराते। एक दिन छात्रों ने उन्हीं से कहा कि सर आप भी परीक्षा दीजिए। रिंकू को बात जंच गई। उन्होंने भी तैयारी शुरू कर दी। 2021 की परीक्षा में बैठे और पहली ही बार में 683 रैंक हासिल  की। उनकी इस सफलता से न सिर्फ घर वाले बल्कि, कोचिंग के छात्र और तमाम दूसरे लोग भी बेहद खुश हैं। 

परिवार बेहद गरीब, मगर मेहनती रिंकू पढ़ने में मास्टर रहे हैं शुरू से ही 
अब बात रिंकू के शुरुआती जीवन, उनके संघर्ष और पीसीएस क्रैक करने की। रिंकू के पिता का नाम शिवदान सिंह है। वह अलीगढ़ के डोरी नगर में रहते हैं। परिवार की आर्थिक स्थिति शुरू से अच्छी नहीं रही है। बेहद गरीबी में जीवन बीता। पैसे नहीं थे तो कॉन्वेंट स्कूल की जगह सरकारी स्कूल में पढ़े। मगर रिंकू पढ़ने और मेहनत करने में मास्टर थे, इसलिए सफल होते रहे। इंटर में अच्छे नंबर आए तो छात्रवृत्ति मिली। इसके बाद उनका एडमिशन टाटा इंस्टीट्यूट में हो गया। यहां से उन्होंने बीटेक किया और 2008 में वह पीसीएस में चुने गए। पहली पोस्टिंग मुजफ्फरनगर मिली और यही पर अपना कमाल उन्होंने दिखा दिया। 

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