सार
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और गांधीजी की संवाद कला' विषय पर आयोजित व्याख्यान को संबोधित करते हुए प्रो. रमेश चंद भारद्वाज ने कहा कि संवाद की तरकीबों को महात्मा गांधी ने ललित कला के रूप में विकसित किया।
नई दिल्ली. ''महात्मा गांधी जनता से संवाद की कला के सबसे बड़े जानकार थे। उनके हर आंदोलन की बुनियाद में अपनी बात को कह देने और सही व्यक्ति तक उसको पहुंचा देने की क्षमता की सबसे प्रमुख भूमिका थी। संवादहीनता को खत्म करने के लिए हम सभी को गांधी के जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए। यह विचार गांधी भवन, दिल्ली विश्वविद्यालय के निदेशक प्रो. रमेश चंद भारद्वाज ने गांधी जयंती की पूर्व संध्या पर भारतीय जन संचार संस्थान द्वारा आयोजित विशेष व्याख्यान में व्यक्त किए। कार्यक्रम में आईआईएमसी के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी एवं अपर महानिदेशक के. सतीश नंबूदिरीपाड भी मौजूद थे। आयोजन की अध्यक्षता संस्थान के डीन (अकादमिक) प्रो. गोविंद सिंह ने की।
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'भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और गांधीजी की संवाद कला' विषय पर आयोजित व्याख्यान को संबोधित करते हुए प्रो. रमेश चंद भारद्वाज ने कहा कि संवाद की तरकीबों को महात्मा गांधी ने ललित कला के रूप में विकसित किया। उनके व्यक्तित्व का यह पक्ष भारत में उनके कदम रखने के साथ ही देखा जा सकता है। उनकी भारत दर्शन की यात्राएं, देश की जनता से संवाद स्थापित करने के संदर्भ में ही देखी जानी चाहिए।
प्रो. भारद्वाज के अनुसार स्वतंत्रता आंदोलन में महात्मा गांधी पहले ऐसे व्यक्ति थे, जिनकी प्रामाणिकता को लेकर कोई संदेह नहीं था। गांधी की कथनी और करनी में कभी अंतर नहीं रहा। इसीलिए उन्होंने कहा कि 'मेरा जीवन ही मेरा संदेश है।' गांधी ने देश की भाषा में देशवासियों से संवाद किया और भारत की 80 प्रतिशत आबादी की समस्याओं के समाधान हेतु प्रामाणिक प्रयास किए। इस कारण वे हर देशवासी के दिल को छू पाए। हिन्दुस्तान की जनता के साथ एकात्म स्थापित कर उन्होंने जो संवाद किया, वो अपने आप में संवाद कला का अनूठा उदाहरण है।
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प्रो. भारद्वाज ने कहा कि संवाद स्थापित करने की दिशा में महात्मा गांधी द्वारा किए गए प्रयोग उनकी विरासत का हिस्सा हैं। उनका मानना था कि संवाद तभी बेहतर होगा, जब हम अपने पाठक या दर्शक के नैतिक बल को ऊपर उठाने का काम करेंगे। महात्मा गांधी ने अपनी बात हमेशा साधारण भाषा में रखी। उन्होंने जो कहा, उसका वही असर हुआ, जो वे चाहते थे।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रो. गोविंद सिंह ने कहा कि वकालत के दौरान ही गांधीजी का झुकाव पत्रकारिता की और था। इस दौरान उन्होंने 'द वेजीटेरियन' अखबार में बारह लेखों की एक सीरीज लिखी। उन्होंने 'इंडियन ओपिनियन' के माध्यम से अफ्रीका में रह रहे भारतीय मूल के लोगों की समस्याओं को उठाया। प्रो. सिंह ने कहा कि अपनी संचार कला से गांधी ने पूरे देश में अपने 'क्लोन' खड़े किए, जो उनके विचारों को देश के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाने में सफल रहे।