Game Changer Movie Review: कैसा है राम चरण का 'गेम चेंजर'
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काफी समय से अनप्रिडिक्टेबल बताते हुए 'गेम चेंजर' सिनेमाघरों में आ गया है. भारी बजट से शंकर द्वारा निर्देशित इस फिल्म को लेकर लोगों में उम्मीदें और आशंकाएँ दोनों हैं. खासकर इंडियन 2 के गायब होने के बाद से इस फिल्म को लेकर नकारात्मक प्रचार शुरू हो गया था. हालांकि, ट्रेलर रिलीज़ के साथ ही फिल्म ने फिर से बज्ज क्रिएट किया और सकारात्मक रुख़ अपना लिया.
यह फिल्म निर्देशक शंकर, निर्माता दिल राजू और लंबे अंतराल के बाद सोलो हीरो के रूप में राम चरण के लिए महत्वपूर्ण है. इसलिए सबकी निगाहें इस फिल्म पर टिकी हैं. आइए रिव्यू में जानते हैं फिल्म कैसी है, कहानी क्या है, क्या शंकर ने फिर से धमाकेदार वापसी की है और क्या फिल्म वाकई में अनप्रिडिक्टेबल है.
कहानी
राम नंदन (राम चरण) अपने शहर विजाग में कलेक्टर बनकर आता है. ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ इस आईएएस अफसर का गुस्सा थोड़ा ज़्यादा है. ड्यूटी जॉइन करते ही वह भ्रष्टाचारियों पर लगाम कसना शुरू कर देता है. यह बात भ्रष्ट मंत्री बोब्बिली मोपिदेवी (एस.जे. सूर्या) को बिल्कुल पसंद नहीं आती.
अपने हर काम में रोड़ा बन रहे राम नंदन को रास्ते से हटाने की सोचता है मोपिदेवी. मोपिदेवी इतना दुष्ट है कि सत्ता के लिए अपने पिता, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बोब्बिली सत्यमूर्ति (श्रीकांत) को भी मार डालता है. लेकिन अपने बेटे को अच्छी तरह समझने वाले सत्यमूर्ति, सबको चौंकाते हुए राम नंदन को अपना उत्तराधिकारी और राज्य का मुख्यमंत्री घोषित कर देते हैं. यह बात पार्टी के किसी भी सदस्य को पसंद नहीं आती, खासकर मोपिदेवी को.
इसलिए मोपिदेवी, राम नंदन को मुख्यमंत्री बनने से रोकने के लिए चाल चलता है और खुद मुख्यमंत्री बन जाता है. लेकिन राम नंदन भी कम नहीं है. वह भी मोपिदेवी को ट्विस्ट देता है. यहीं से दोनों के बीच सीधी टक्कर शुरू हो जाती है. एक आईएएस अफसर और भ्रष्ट नेता के बीच इस जंग में कौन जीतेगा, यह तो सबको पता है.
लेकिन राम नंदन कैसे जीतता है, यह जानना ज़रूरी है. यह कैसे होता है, राम नंदन असल में कौन है? उसका फ्लैशबैक क्या है? अचानक सत्यमूर्ति ने राम नंदन को मुख्यमंत्री क्यों घोषित किया? और अप्पन्ना (राम चरण) का राम नंदन से क्या रिश्ता है, यह जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी.
विश्लेषण
निर्देशक शंकर ने अपने करियर की शुरुआत से ही राजनीतिक ड्रामा फिल्मों से की है. साथ ही, वह अपनी हर फिल्म में कोई न कोई सामाजिक संदेश देने की कोशिश करते हैं. यही उन्हें एक खास निर्देशक बनाता है. इस बार तेलुगु में राम चरण के साथ उनकी सीधी फिल्म होने के कारण उम्मीदें काफी बढ़ गई थीं. उन्हें यह बात पता थी. लेकिन पिछले कुछ समय से उनकी कहानियां लीक से हटकर नहीं रही हैं, उनमें दम नहीं है.
इस फिल्म की कहानी भी प्रेडिक्टेबल है. कहानी कैसी भी हो, अगर स्क्रीनप्ले दिलचस्प हो तो कोई समस्या नहीं है. लेकिन इस फिल्म में कहानी और स्क्रीनप्ले दोनों ही बहुत धीमे हैं. ऐसा लगता है कि फिल्म को फॉर्मूला के हिसाब से बनाया गया है. खासकर पहले भाग में हीरो को कहीं भी कोई चुनौती नहीं मिलती. वह संघर्ष नहीं करता. बहुत निष्क्रिय रहने के कारण कुछ खास प्रभाव नहीं पड़ता. भव्य निर्माण के कारण हम देखते रहते हैं, लेकिन कहानी के लिहाज से कोई दिलचस्पी नहीं बनती.
दूसरे भाग में, मंत्री और एक आईएएस अधिकारी के बीच की कहानी भी उसी फॉर्मूले पर चलती है. कहीं भी कोई अप्रत्याशित मोड़ नहीं आता. साथ ही, हाई देने वाले तत्व बहुत सीमित हैं. आजकल ऐसी बड़ी फिल्मों में हाई देने वाले दृश्यों को ही महत्व दिया जा रहा है. लोग इन्हीं का इंतजार करते हैं. लेकिन इसमें वे दृश्य गायब हैं. बार-बार शंकर की फिल्में 'ओके ओक्काडु' और 'शिवाजी' याद आती हैं.
फिल्म में शंकर का प्रभाव केवल विजुअल्स और दूसरे भाग में आने वाले अप्पन्ना एपिसोड में ही दिखता है. शंकर की फिल्मों में दिखने वाले भावनात्मक दृश्य भी इसमें नदारद हैं. कहानी अपने हिसाब से चलती रहती है, लेकिन हमारे दिलों में उतरकर यह हमारी कहानी है, हीरो को जीतना चाहिए, ऐसा एहसास कराने वाले भावनात्मक दृश्य नहीं हैं. बार-बार यही लगता है कि 'अपरिचित', 'जेंटलमैन' और 'ओके ओक्काडु' जैसा जादू कहाँ चला गया.
अच्छे पहलू
गाने, भव्य विजुअल्स
राम चरण के अभिनय कौशल को उभारने वाले दृश्य
अप्पन्ना एपिसोड
कमज़ोर पहलू
पुरानी लगने वाली कहानी, और उसी तरह धीमा स्क्रीनप्ले
कियारा आडवाणी और चरण के बीच के दृश्य
इस बड़ी फिल्म के लिए भावनात्मक दृश्यों का कमजोर होना
तकनीकी रूप से
शंकर जैसे निर्देशक की फिल्म में तकनीकी मानकों की कोई कमी नहीं हो सकती. छायाकार तिरु ने शानदार विजुअल्स दिए हैं. शंकर के निर्देशन में हर दृश्य भव्य लगता है. तमन के गानों से ज़्यादा उनके बैकग्राउंड स्कोर को सराहना मिलती है.
'जरगंडी' और 'रा मच्चा' गानों को अच्छा रिस्पांस मिला है. 'नाना हैराना' गाने को फिल्म में शामिल नहीं किया गया है. एडिटर ने फिल्म को कहीं भी धीमा नहीं होने दिया है. लेकिन कहानी में ही धीमापन और रूढ़िवादिता होना एक समस्या है. कुछ जगहों पर संवाद अच्छे हैं. खासकर विलेन एस.जे. सूर्या के संवाद अच्छे हैं. दिल राजू के निर्माण मूल्यों में कोई कमी नहीं है.
अभिनय
राम चरण को अलग-अलग रंग दिखाने वाला किरदार मिलने से वह अपने अभिनय का लोहा मनवा पाए हैं. कियारा आडवाणी के बारे में कुछ खास नहीं है. वह सिर्फ़ गानों में आती-जाती हैं. पार्वती के रूप में अंजलि को अच्छा रोल मिला है. उनका मेकअप भी अलग है.
मंत्री मोपिदेवी के रूप में एस.जे. सूर्या ने 'नानी शनिवारं नाडी' के बाद एक बार फिर अपना जलवा दिखाया है. श्रीकांत के लुक को अलग अंदाज़ में पेश करके चौंकाया गया है. जयराम, समुद्रखानी और राजीव कनकाला ठीक-ठाक हैं. सुनील का सहायक किरदार अच्छा है. ब्रह्मानंदम का गेस्ट अपीयरेंस है. पृथ्वी और रघुबाबू जैसे कलाकारों का होना न होना बराबर है. उनके किरदार ऐसे ही हैं.
अंतिम विचार
शंकर जैसे निर्देशक को सुजाता जैसा लेखक फिर से नहीं मिल पाया, यह बात इस फिल्म से एक बार फिर साबित हुई है. अगर पटकथा कमजोर हो तो कोई कितनी भी मेहनत कर ले, खेल कुछ हद तक ही टिक पाता है. पूरी तरह से बदलाव नहीं आता.
---सूर्य प्रकाश जोश्युला
रेटिंग: 2.5
पर्दे के पीछे..और आगे
कलाकार: राम चरण, कियारा आडवाणी, अंजलि, एस.जे. सूर्या, श्रीकांत, सुनील, जयराम, नवीन चंद्र, वेंनेला किशोर, ब्रह्मानंदम, राजीव कनकाला आदि;
संगीत: तमन;
छायांकन: तिरु;
संपादन: समीर मोहम्मद, रूबेन;
कहानी: कार्तिक सुब्बाराज;
निर्माता: दिल राजू;
पटकथा, निर्देशन: एस. शंकर;
रिलीज़ तारीख: 10-01-2025