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चाणक्य नीति: गृहस्थ, मांसाहारी, लालची और स्त्री में आसक्त व्यक्ति से किन चीजों की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए?
उज्जैन. आचार्य चाणक्य की नीतियां यानी लाइफ मैनेजेमेंट सूत्रों को ध्यान में रखा जाए तो जीवन की अनेक परेशानियों से बचा जा सकता है। ये नीतियां हमें जीने की सही तरीका बताती हैं। आचार्य चाणक्य ने अपनी एक नीति में बताया है कि जिस व्यक्ति के मन में काम, लालच आदि बुरी भावनाएं हों, उनसे पवित्रता आदि अच्छे गुणों की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए। जानिए इस नीति के बारे में…
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1. घर-गृहस्थी में आसक्त व्यक्ति को विद्या नहीं आती
जो व्यक्ति घर-गृहस्थी यानी परिवार के प्रति हद से ज्यादा आसक्त रहता है वह विद्या से दूर रहता है। चाहकर भी वह विद्या प्राप्त नहीं कर पाता क्योंकि लिए उसे अपने परिवार का परित्याग करना पड़ेगा। ऐसा वो कर नहीं पाता और विद्या से सदैव दूरी बनाए रखता है।
2. स्त्री में आसक्त व्यक्ति में पवित्रता नहीं होती
जिस व्यक्ति के मन में स्त्री यानी काम की अधिकता होती है उसमें पवित्रता का भाव स्वतं ही समाप्त हो जाता है। ऐसा व्यक्ति काम की अग्नि में जलता रहता है और इसी वजह से उसके मन की पवित्रता समाप्त हो जाती है।
3. मांस खाने वाले को दया नहीं आती
जो व्यक्ति मांस खाता है यानी जीव हत्या करता है, उसके मन में दया का भाव नहीं आ सकता क्योंकि किसी पशु या पक्षी का मांस खाकर उसके मन से इस भावना का लोप हो जाता है। ऐसा व्यक्ति न सिर्फ जीव-जंतु बल्कि मनुष्यों के लिए भी दया का भाव अपने मन में नहीं रखता।
4. धन के लालची को सच बोलना नहीं आता
जिस व्यक्ति के मन में धन का लालच होता है उस पर विश्वास नहीं किया जा सकता, क्योंकि अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए ऐसा आदमी किसी भी हद तक गिर सकता है और किसी को भी नुकसान पहुंचा सकता है। ऐसा व्यक्ति झूठ बोलकर ही लोगों में विश्वास हासिल करता है।